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आपका बंटी' के शीर्षक की उपयुक्तता

 किसी भी उपन्यास का शीर्षक उसकी कथा केंद्रीय विचार, भाव, चरित्र, युग, समस्या और परिवेश आदि को व्यक्त करने वाला होता है। प्रेमचंद का उपन्यास ‘गोदान’ कृषक समाज के आर्थिक अभाव और जीवन में होरी नाम के किसान की एक साधारण-सी इच्छा के पूरे न होने को प्रतीकित करता है।

प्रेमचंद रचित ‘निर्मला’, जैनद्र के उपन्यास ‘सुनौता’, मैत्रयी पुष्पा के ‘अल्मा कबूतरी’ आदि उपन्यासों के शेर्षक कथा के केंद्रीय चरित्रों के नाम पर आधारित है। इसी तरह रेणु का मैला आंचल’. श्रीलाल शुक्ल का रागदरबारी, यशपाल का ‘बठा-सच’. भीष्म साहनी का ‘तमस’ उमश: परिवेश, युगीन समस्याओं और प्रवृत्तियों को उभारने वाले शीर्षक हैं. जिनका कथा की आधरभूमि से गहरा तादात्म्य है। ‘आपका बंटी’ उपन्यास का शीर्षक दो धरातलों पर पाठक का ध्यान आकर्षित करता है। इस उपन्यास से गुजरते हुए पाठक अनुभव करता है कि कथा में घटित घटनाओं का बंटी नाम के बच्चे पर व्या और कितना गहरा असर पड़ रहा है।

उसका जीवन इनसे प्रभावित होकर लगातार उसे अपने मम्मी-पापा से दूर अकेलेपन की ओर धकेल रहा है। उपन्यास की भूमिका में उपन्यासकार ने स्पष्ट किया है कि यह बंटी कवल अजय और शकन की उपेक्षित संतान ही नहीं है।  बल्कि यह कहानी आधुनिक जीवन में उन सभी तलाकशुदा परिवारों की कहानी बन जाती है, जहाँ बच्चों को बंटी की तल जीवा को विपरीत परिस्थितियों का शिकार होकर जीना पड़ता है। उपन्यासकार के मंतव्य और इस उपन्यास के शीर्षक के विषय में निर्मला जैा का कहना है वो हराका में मन्नू मंडारी के उपन्यारा आपका बंटी” का प्रकाशन साहित्य जगत में एक बड़ी घटना थी।

इसका कारण यह था कि तलाकशुदा दन्यत्ति के बच्चों की समस्या को पूरे विस्तार से परखने का पयस्ता मीनिक और उन्लेखनीय प्रयास था। लपन्यास का सीर्थक हो जसको कल्य की ओर संकेत करता ही था, उसका अंत भी जिस बिंदु पर ले जकर किया गया है, उससे भी इस बात की पुष्टि होती है कि समाज की यह ऐसी समस्या है जिसका निश्चित हल किसी के पास नहीं हो सकता है कि लेखिका का मंतव्य कुछ ऐसा रहा हो।

निर्मला जैन आपनी आलोचना में इस उपन्यास को बंटी की नहीं, राकुन के नजारिए और उससे सहानुभूति का कहानी अधिक मानता है।  शकुन से सहानुभूति रखने के बावजूद हम जपन्याम में स्थितियों से संघर्षरत बंटी की कथा पातक को विचलित करती है। बंटी की जिज्ञासाएं, उसकी चंचलता, माँ के प्रति गहरा अनुराग और चिंता, फूफी और दोस्त टीटू संग उसके लड़ाई- झगडे, पिता से उसका प्रेम. जोशी से उसकी नफरत, माँ के प्रति बदला दृष्टिकोण-सभी घटनाओं के केंद्र में बंटी ही है और वही इन घटनाओं का भोक्ता भी है।

घटनाएँ चाहे किसी भी पात्र के साथ घटित हों, पाठक की दृष्टि बंटी पर केंद्रित रहती है। अंत की दृष्टि से भी देखें तो बंटी के हॉस्टल जाने का प्रसंग बेहद मार्मिक है। इस तरह उपन्यास का शीर्षक एक ओर बंटी के चरित्र को केंद्र में रखता है, तो दूसरी ओर लेखिका आधुनिक एकाकी परिवारों में जीवन बिता रहे अनेक बटियों की ओर भी इशारा करती हैं।

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