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शीत्युद्ध काल के पश्चात्‌ भारत -अमेरिका संबंधों की व्याख्या कीजिए।

 शीतयुद्ध की समाप्ति के बाद तथा रूस के बिखराव के कारण भारत और अमेरिका के बीच मधुर संबंधों का दौर शुरू तो हुआ, फिर भी कुछ प्रश्नों पर अमेरिका और भारत के बीच मतभेदारहे हैं, जो निम्नलिखित हैं - 

(i) कश्मीर मसला-शीतयुद्ध की समाप्ति के बाद जब 1998 में कारगिल पर पाकिस्तान + आक्रमण कर दिया, तो भारत-पाकिस्तान युद्ध छिड़ गया,  जिसमें पाकिस्तान ने अमेरिकी अस्त्र-शस्त्रों का उपयोग किया, परंतु अमेरिका ने पाकिस्तान पर इस संबंध में कुछ भी प्रतिबंध नहीं लगाया, जिसके कारण भारत पाकिस्तान में व्यापक मतभेद है।

(ii) पाकिस्तान को अमेरिकी सुरक्षा सहायता-अमेरिका को यह पूर्णरूपेण मालूम है कि उसके द्वारा दिये गये हथियारों का उपयोग पाकिस्तान हमेशा भारत के विरोध में करता रहा है। इस प्रश्न को लेकर भारत और अमेरिका के बीच गहरे मतभेद हैं।

(iii) कारगिल युद्ध-कश्मीर की समस्या को लेकर पाकिस्तान हमेशा भारत के साथ सौतेला व्यवहार करता आया है।

बिल क्लिंटन से बार-बार मुशर्रफ ने कश्मीर के मामले में मध्यस्थता करने का निवेदन किया और पाकिस्तान द्वारा कश्मीर में समस्या उत्पन्न करने के बावजूद क्लिटन ने कोई कदम नहीं उठाया। अमेरिकी हथियारों का उपयोग पाकिस्तान कश्मीर में कर रहा है, लेकिन अमेरिका पाकिस्तान की इस संबंध में न तो निंदा ही करता है और न ही अस्त्र-शस्त्रों की सहायता ही बंद करता है। इसलिए इस समस्या को लेकर भारत और अमेरिका के बीच मतभेद हैं।

(iv) आतंकवाद-अमेरिका पर जब आतंकवादी हमला हुआ, तो अमेरिका ने अफगानिस्तान और इराक में आतंकवादियों का सफाया किया।

परंतु 13 दिसंबर, 2001 को भारतीय संसद पर जब आतंकवादियों ने हमला किया, तब अमेरिका ने भारत से संयम से काम लेने का आग्रह किया। अमेरिका के इस कथन से भारत को बहुत तकलीफ हुई। इस समस्या को लेकर भारत-अमेरिका का मतभेद बना हुआ है।

(v) परमाणु मुद्दा-अमेरिका के पास परमाणु तकनीक और बम विद्यमान हैं। ब्रिटेन, फ्रांस और रूस परमाणु शक्ति से पूर्णरूपेण संपन्न हैं, परंतु भारत ने जब परमाणु विस्फोट किया, तब अमेरिका को बहुत तकलीफ हुई।

अमेरिका बार-बार भारत पर परमाणु अप्रसार संधि तथा परमाणु परीक्षण निषेध संधि पर हस्ताक्षर करने के लिए दबाव डाल रहा है। इसके कारण भारत-अमेरिका के बीच मतभेद हैं।

21वीं शताब्दी में भारत-अमेरिकी संबंध-21वीं शताब्दी के प्रारंभ में शीतयुद्ध जैसी परिस्थिति नहीं रही और अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिटन ने इस बात को महसूस किया कि भारतीय उपमहादेश में वैसी स्थिति नहीं रखी जा सकती है।  विश्व स्तर पर आर्थिक मंदी के बावजूद भी भारत की अर्थव्यवस्था आगे बढ़ रही है। नये परिवेश (सन् 2000) में भारत की यात्रा कर बिल क्लिटन ने वाजपेयी के शासनकाल में भारत-अमेरिकी संबंध का श्रीगणेश किया और भारत के साथ मधुर संबंध बनाने पर बल दिया।

क्लिंटन ने पाँच दिनों की भारत यात्रा की उनका व्यापक स्वागत किया गया। भारत से लौटते हुए वे चार घंटे के लिए पाकिस्तान में रुके और मुशर्रफ को प्रजातंत्र की बहाली, आतंकवाद पर नियंत्रण आदि के संबंध में डांट भरे सुझाव देते हुए लौटे। कारगिल युद्ध के समय भारत के आचरण और संयम की उन्होंने सराहना भी की। क्लिंटन अपने शासन के अंतिम चरण में भारत आये थे और यह महसूस किया जाने लगा कि उनके बाद जो भी राष्ट्रपति होगा, उसका संबंध भारत के साथ अच्छा रहेगा। परंतु बुश की विजय ने भारत को एक नयी आशा प्रदान की। बुश भारत के प्रति विशेष रूप से मुखातिब हुए। उन्होंने चीन को सामरिक प्रतिद्वंद्वी और भारत को लोकतांत्रिक तथा सामरिक सहयोगी माना।

11 सितंबर के बाद का भारत-अमेरिकी संबंध-अमेरिका पर 11 सितंबर, 2001 के आतंकवादी हमले ने संपूर्ण विश्व को चौंका दिया।

बुश प्रशासन ने जब आतंकवाद के सफाये का आह्वान किया, तो भारत ने उन्हें व्यापक समर्थन दिया। फिर भारत और अमेरिका के बीच बहुत नजदीकी आयी, परंतु जब 2001 अक्तूबर में कश्मीर विधान सभा और 18 दिसंबर 2001 को भारतीय संसद पर आतंकवादियों के हमले हुए तो भारत-अमेरिकी संबंध में थोड़ी कडुवाहट पैदा हुई।

भारत ने पाकिस्तान के साथ संबंध तोड़ा और सीमा पर सेना की तैनाती की, तो अमेरिका भारत को संयम बरतने का निर्देश दिया उस समय भारतीय जनमानसा में यह भावना फैलागाईकि अमेरिका आतंकवादी हमले पर दोहरे मानदंड अपना रहा है।  जब कारगिल युद्ध चल रहा था, तब अमेरिका को इस बात की चिंता थी, कि कहीं यह आणविक युद्ध में न बदल जाये, परंतु संयोगवश ऐसा नहीं हुआ और अमेरिका की चिंता दूर हुई।

इराक में जब अमेरिका ने संयुक्त रूप में सैनिक कार्यवाही की तो भारत को यह अच्छा नहीं लगा। इससे भारत अमेरिकी संबंधों में थोड़ी कडुवाहट आयो। युद्ध के बाद इराक में अमेरिकी सैनिकों के अंतर्गत रहकर भारतीय सैनिकों को जब शांति स्थापित करने का परामर्श दिया गया, तो भारत ने इसे नहीं माना। इससे अमेरिका को बहुत दुःख हुआ। इस तरह भारत-अमेरिकी संबंध समुद्री तरंगों के समान ऊपर-नीचे उठता-गिरता हुआ चल रहा है।

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