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हिंदी में साक्षात्कार की परंपरा

 हिंदी में साक्षात्कार की परंपरा- हिंदी साहित्य में साक्षात्कार का प्रारंभ बनारसी दास चतुर्वेदी द्वारा ‘रत्नाकर जी से बातचीत’ (1931) तथा ‘प्रेमचंद जी के साथ दो दिन’ (1932) से हुआ। बेनीमाधव शर्मा की पुस्तक ‘कवि दर्शन’ साक्षात्कार विधा की प्रथम स्वतंत्र कृति मानी जाती है। इसमें रामचंद्र शुक्ल, हरिऔध, श्यामसुंदर दास, मैथिलीशरण गुप्त आदि के साक्षात्कार संकलित हैं। डॉ. पद्मसिंह शर्मा ‘कमलेश’ कृत ‘मैं इनसे मिला’ (1952) एक प्रमुख साक्षात्कार रचना है।

इसके दो भाग हैं। इस पुस्तक के साक्षात्कारों से संगृहीत साहित्यकारों के कृतित्व और जीवन दर्शन को समझने में मदद मिलती है। कुछ काल्पनिक सोक्षात्कार भी हिंदी में लिखे गए हैं। राजेन्द्र यादव का ‘एंटन चेखव : एक इंटरव्यू’ इसी प्रकार की रचना है जिसे चेखव की रचनाओं, पात्रों, संस्मरणों, आलोचनाओं आदि पर लिखा गया है।

इसमें चेखव के जीवन, कृतित्व, देश, पात्र, कला की समस्याओं, साहित्यिक आलोचनाओं आदि का प्रामाणिक आधार पर सर्वेक्षण हुआ है।  लक्ष्मीचंद जैन, शरद देवड़ा आदि ने साक्षात्कार संबंधी पुस्तकें लिखी हैं।

साहित्यकारों के व्यक्तित्व को केंद्र रखकर स्वतंत्र साक्षात्कार पुस्तकों के प्रकाशन के साथ प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं में साहित्यकार-कलाकार चिंतकों के साथ सीधा विचार-विमर्श भी किया गया है। कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि हिंदी में साक्षात्कार विधा प्रगति के पथ पर अग्रसर है।

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