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'टोटमवाद' क्या हैं? यह मनुष्यों संस्कृति) और प्रकृति के संबंध को कैसे प्रतिविंबित करता हैं?

 लेवि स्ट्रॉस को संरचनात्मक मानवशास्त्र के विकास के लिए जाना जाता है। बौद्धिक फ्रांसीसी यहूदी परिवार से संबद्ध लेवि-स्ट्रॉस का जन्म 28 नवम्बर, 1908 में ब्रूसेल्स में हुआ था। लेवि ने पेरिस के सॉरबोन में कानून तथा दर्शनशास्त्र का अध्ययन किया था। उन्होंने कानून का अध्ययन पीछे छोड़ दर्शन का अध्ययन जारी रखा और 1931 में, लोक सेवा की परीक्षा उत्तीर्ण की। 1935 में उन्होंने ‘फ्रेंच-कल्चरल मिशन’ में भाग लेने के प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया। 1935 से 1939 के बीच उन्होंने साओ पाओ विश्वविद्यालय में समाजशास्त्र का अध्ययन किया।

विश्व के बहुत सारे विद्वानों के विचारों का अध्ययन उन्होंने द्वितीय विश्व युद्ध के समय न्यूयॉर्क में रहकर किया। 1942 से 1945 तक उन्होंने न्यू स्कूल ऑफ सोशल रिसर्च में अध्यापन कार्य किया। जैकबसन, जो कि भाषाविज्ञान संबंधी संरचनावाद के प्रमुख प्रणेताओं में से एक थे, के साथ मित्रता ने उनकी मानवशास्त्रीय संरचना को आकार प्रदान करने में मदद की। यू.एस.ए. में वे फ्रेज बोआज के मानवशास्त्र संबंधी लेखों के संपर्क में रहे। डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त करने हेतु लेविस ने दो शोध प्रपत्र पेश किए। एक ‘द फैमिली एण्ड सोशल लाइफ ऑफ नाम्बिकवारा । इण्डियन्स’ तथा दूसरा ‘द एलिमेन्ट्री स्ट्रक्चर्स ऑफ किनशिप’।

1973 में ‘एकैडेमिक फ्रेंसाइज’ के लिए चुने जाने पर उनकी लोकप्रियता बहुत बढ़ गई। यह फ्रांस के बौद्धिक जगत का सर्वोच्च सम्मान होता है।  इसी वर्ष उन्हें इरैस्मस का पुरस्कार भी प्राप्त हुआ। ऑक्सफोर्ड, हावर्ड व कोलम्बिया विश्वविद्यालय ने उन्हें मानक डॉक्टरेट की उपाधि प्रदान की। स्ट्रॉस के लिए संरचनावाद से तात्पर्य ऐसी गहरी अदृश्य तथा स्वाभाविक संरचना से है जो मनुष्य जाति के लिए स्वाभाविक व सार्वभौमिक है। संरचना व्यवहार की ऊपरी सतह में परिलक्षित होती है जो एक संस्कृति में दूसरी संस्कृति से स्पष्टतः भिन्न होती है। चेतनापूर्ण संरचनाएं ‘अशुद्ध’ होती हैं। अतः अचेतन से चेतन में परिवर्तित संरचनाओं के रूपांतरण पर विचार करना चाहिए। नातेदारी संबंधी अपने अध्ययन में लेवि स्ट्रास ने ‘अलायन्स सिद्धांत’ की स्थापना करने का प्रयास किया।

स्ट्रॉस के अनुसार निकट संबंधी के साथ व्यभिचार पर निषेध ही संस्कृति का सार है। यह निषेध विभिन्न समूहों के मध्य विचारों में संबंध स्थापित करते हैं। प्रतिबन्धित संबंध स्ट्रॉस के विचारों में बेहद महत्त्वपूर्ण है। सूक्ष्म स्तर पर संरचनात्मक पद्धति को अपनाने की विधा को ‘नीयो-स्ट्रक्चरीलिज्म’ कहते हैं। लेवि स्ट्रॉस ने अपने सिद्धात से मानव विज्ञान जगत में हलचल पैदा कर दी। कुछ विद्वान उनके मत से सहमत थे तो कुछ ने उनके मत से बड़ी आलोचना व्यक्त की। परंतु वह सत्य है कि वे एक ‘शैक्षणिक वंश’ निर्मित नहीं कर पाए। यद्यपि ब्रिटिश मानवशास्त्री जैसे एडमण्ड लीच तथा रोडनी नीधम 1950 तथा 1960 के दशक में उनसे अत्यधिक प्रभावित थे। लुई ड्यूमो, जिन्होंने भारत के सामाजिक अध्ययन को ठीक से समझा था, वे भी स्ट्रॉस से बेहद प्रभावित थे। 

लेवि-स्ट्रॉस का टोटमवाद:-

लेवि स्ट्रास का टोटमवाद सन् 1962 में सर्वप्रथम फ्रेंच भाषा में प्रकाशित हुआ था। एक वर्ष पश्चात इसका अंग्रेजी भाषा में अनुवाद प्रसिद्ध मानवशास्त्री रोडनी नीधम ने किया। रोजर सी. पुल ने टोटमवाद की प्रशंसा में लिखा है-“टोटमवाद के अंतर्गत लेवि स्ट्रॉस ने ऐसी प्राचीन मानवशास्त्रीय समस्याओं का अध्ययन किया, जिससे उसका आमूल उपचार हुआ। साथ ही इस पुस्तक के माध्यम से हमने विश्व को नए दृष्टिकोण से देखा।” टोटमवाद की वास्तविकता- लेवि स्ट्रॉस टोटमवाद की वास्तविकता पर विश्वास नहीं करते थे। मनगढन्त बातों का ढकोसला से इसका सीधा संबंध है। इसकी रुचिपूर्ण बातों या मिथकों के कारण मानवशास्त्रियों के बीच यह लोकप्रिय रहा है।

स्ट्रॉस के अध्ययन का विषय टोटमवाद पर केन्द्रित न होकर टोटम संबंधी प्रघटना पर है। अन्य शब्दों में कहें तो यह एक विशेषण संबंधी अध्ययन है न कि ‘तात्त्विक’। कहने का तात्पर्य यह है कि लेवि स्ट्रॉस का अध्ययन बिन्दु यह है कि वे कौन-सी प्रघटनाएं हैं,  जिनके परिणामस्वरूप टोटम का अस्तित्व है, उन्होंने टोटम के अर्थ तथा प्रकारों का अध्ययन नहीं किया। अपने अध्ययन हेतु लेवि स्ट्रॉस के पास भी वही सामग्री थी, जो उनके पूर्व के विद्वानों के पास थी, लेकिन लेविस ने ही एक नवीन दृष्टिकोण का विकास किया। उन्होंने अपने पूर्व के मानवशास्त्रियों के समान यह नहीं पूछा कि टोटमवाद क्या है?

उनका प्रश्न यह था कि ‘टोटम संबंधी प्रघटनाएं किस प्रकार व्यवस्थित होती हैं?’ इस तरह साठ के दशक में ‘क्या’ से ‘किस प्रकार’ की ओर प्रस्थान होना अत्यन्त ही क्रांतिकारी प्रघटना थी। सर्वप्रथम उन्होंने अमेरिकन स्कूल के सदस्यों के शोध अभिलेखों को अस्वीकार किया, जिसके अनुसार टोटम संबंधी प्रघटना कोई स्वमूलक वास्तविकता नहीं है। टोटमवाद का अपना कोई अस्तित्व या नियम नहीं है, बल्कि यह व्यक्तियों तथा सामाजिक समूहों की पशु और वनस्पति जगत के साथ एकता सिद्ध करने की आदिवासियों की एक सामान्य प्रवृत्ति का परिणाम है। उनसे पूर्व के विद्वान दुर्थीम और मैलीनोव्सकी के विचार से स्ट्रॉस असहमति व्यक्त करते हैं।

विधि अथवा प्रणाली :- 

लेवि स्ट्रॉस का टोटमवाद मुख्यत: एक प्रणाली का अभ्यास है। उन्होंने टोटमवाद की प्रघटनाओं की एकता पर ध्यान केन्द्रित न करके इसको अनेक दृष्टिकोण से देखने का समुचित प्रयास किया है

1. अध्ययन के अंतर्गत दो अथवा अधिक शब्दों द्वारा वास्तविक या काल्पनिक के मध्य संबंध स्थापित करते हुए प्रघटना का विश्लेषण करना।

2. इन शब्दों के मध्य संख्याक्रम परिवर्तन की तालिका बनाना।

3. इस तालिका को विश्लेषण की सामान्य वस्तु की भांति, केवल इसी स्तर पर आवश्यक संबंध प्राप्त किए जा सकते हैं, आरम्भ में विचार किए गए अनुभवजन्य प्रघटना का दूसरों में एकमात्र संभव समुच्चय होने के कारण इसकी पूरी व्यवस्था का पहले ही खाका बना लेना चाहिए।

इसे समझने के लिए हम नातेदारी के क्षेत्र से एक सरल उदाहरण ले सकते हैं। उदाहरणार्थ, वंशानुक्रम को पिता अथवा माता से जाना जा सकता है। यदि वंश को पिता से लिया जाता है और उसे ‘p’ तथा माता के लिए ‘qसे अभिहित किया जाए, तथा उन्हें अलग-अलग मल्य दे दिए जाएं तो यदि माता अथवा पिता के वंश को पहचान लिया जाए तो उसे हम 1 से सचित करेंगे. और यदि वंशन पहचाना जाए, तो उसे ‘0’ द्वारा सूचित करेंगे।

अब हम संभव क्रम परिवर्तन से संबंधित तालिका निर्मित कर सकते हैं, जिसमें

(1) ‘p’ 1 है तथा q° 0 है। 
(2) ‘p’ 0 है तथा ‘q’ | है।
(3) ‘p’ भी 1 है तथा ‘q’ भी 1 है।
(4) ‘p’ भी 0 है तथा q’ भी 0 है।

पहला क्रम परिवर्तन पितृसत्तात्मक सिद्ध हुआ, दूसरा मातृ-सत्तात्मक, तीसरा पितृ एवं मातृ सत्तात्मक दोनों तथा अंतिम न पितृसत्तात्मक न मातृसत्तात्मक पाया गया। लेवि स्ट्रॉस ने टोटमवाद को दो विभागों में बांटा है। पहला, प्राकृतिक वस्तु (पशु, पौधे) तथा दूसरा, सांस्कृतिक (व्यक्ति, गोत्र)। लेवि स्ट्रॉस के अनुसार टोटमवाद की समस्या तब उठती है जब दो गोत्र, जो कि अलग-अलग टोटम के अनुयायी हैं वे अनेक भ्रान्तियों से घिर जाते हैं। मनुष्य स्वयं को अनेक प्रकार से प्रकृति से संबद्ध करते हैं और एक अन्य बात यह है कि वे अपने सामाजिक समूहों को पशु तथा वनस्पति जगत के लिए गए नामों से अभिहित करते हैं। ये दोनों अनुभव भिन्न हैं किंतु जब इन क्रमों के बीच किसी प्रकार की परस्पर व्याप्त होती है तो इसका परिणाम टोटमवाद होता है।

स्ट्रॉस आगे लिखते हैं-“प्राकृतिक श्रृंखला में एक ओर श्रेणियां होती हैं तो दूसरी ओर विशिष्ट सांस्कृतिक श्रृंखला में समूह और व्यक्ति होते हैं।  वह प्रत्येक शृंखला में अस्तित्व के दो रूपों-सामूहिक और व्यक्तिगत में भेद करने के लिए तथा इन शृंखलाओं को अलग रखने के लिए अपेक्षाकृत मनमाने ढंग से इन शब्दावालियों का चयन करते हैं।” उनका कथन है कि किसी भी शब्दावली का प्रयोग करो, बशर्ते उसका अर्थ भिन्न हो

प्रकृति श्रेणी विशिष्ट
संस्कृति समूह व्यक्ति

शब्दावालियों के इन दो समूहों को चार तरह से संबद्ध किया जा सकता है, जैसाकि पूर्व में दिए गए उदाहरण के मामले में है।

प्रकृति श्रेणी श्रेणी विशिष्ट विशिष्ट

संस्कृति समूह व्यक्ति व्यक्ति समूह

इस प्रकार टोटमवाद मानव जाति तथा प्रकृति के बीच संबंध स्थापित करता है और जैसा कि ऊपर दर्शाया गया है इन संबंधों को चार प्रकारों में विभाजित किया जा सकता है और हम उनमें से प्रत्येक के अनुभवसिद्ध उदाहरण देख सकते हैं। ये चारों समीकरण समतुल्य हैं। इसका कारण यह है कि वे समान क्रिया के ही परिणाम हैं अर्थात तत्त्वों का क्रम परिवर्तन जिसमें एक प्रघटना है। 

किन्तु लेवि स्ट्रॉस का मानवशास्त्रीय साहित्य में प्रत्यक्ष रूप से केवल पहले दो ही शामिल हैं, शेष दो अप्रत्यक्ष रूप से शामिल हैं। अप्रत्यक्ष होने का तात्पर्य अंतिम दोनों निष्कर्ष मूल रूप से ‘अजनबीयत’ का बोध कराता है।

विश्लेषण:-

कुल मिलाकर लेवि स्ट्रॉस के टोटमिज्म के अंदर ही कई विद्वानों ने स्पष्टीकरण किया है। इस दृष्टि से फर्थ और फोर्टस का नाम महत्त्वपूर्ण है। 

इन दोनों का मानना है कि टोटमवादी व्यवस्था और प्राकृतिक उपागमों के बीच अन्तर्संबंध सदृश्य होते हैं। लेवि स्ट्रॉस ने इनके प्रयासों की भूरि-भूरि प्रशंसा की है।

अत: पशु-पक्षियों तथा पेड़-पौधों के साथ साहचर्य संबंध आन्तरिक व बाह्य दोनों होता है। लेवि स्ट्रॉस ने आन्तरिक साहचर्यता पर ज्यादा बल दिया।

टोटमवाद तथा वर्गीकरण :-

लेवि स्ट्रॉस ने टोटमवाद के वर्गीकरण को उपमान के रूप में माना है। अत: टोटमवाद स्थिर प्रक्रिया न होकर एक गतिशील प्रक्रिया । है जो परिवर्तन को स्वीकार करती है।

लेवि स्ट्रॉस ने इस संदर्भ में गोत्र संबंधी उदाहरण देकर समझाया है। जैसे-तीन गोत्र-भालू, गिद्ध, कछुआ; ये तीनों भूमि, आकाश और जल के प्रतीक हैं। 

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