Recents in Beach

'तीसरे दर्जे का श्रद्धेय' का प्रतिपाद्य

 ‘तीसरे दर्जे का श्रद्धेय’ निबंध का नायक बुद्धिजीवी लेखक है। वह दीनभावना से पीड़ित है। मिथ्या आदर्श और ढोंग के कारण उसमें आत्म-विश्वास की कमी है। ये बुद्धिजीवी-लेखक देश और समाज के प्रति अपने कर्त्तव्य का निर्वाह नहीं कर पाए हैं। ‘सादाचार का ताबीज’ निबंध में भी उन्होंने बुद्धिजीवियों की अकर्मण्यता पर व्यंग्य किया है। तीसरे दर्जे का श्रद्धेय’ में ‘आजादी के पच्चीस वर्ष वाले भाषण में आज के जीवन की कड़वी सच्चाई को दिखाया गया है।

आज हर चीज में स्वार्थ ढूंढ़ा जा रहा है। सिद्धांत कोरे नारे बनकर रह गए हैं। परसाई जी ने व्यंग्य द्वारा बुद्धिजीवियों को जगाने का प्रयास किया है। निबन्ध में बताया गया है कि बुद्धिजीवी थोड़े में सन्तोष कर लेता है, पहले दर्जे का। किराया पाकर तीसरे दर्जे में यात्रा करके जो पैसे बचते हैं, उन्हीं से सन्तुष्ट हो जाता है।

विश्वविद्यालय की पाठ्यक्रम समिति का सदस्य बनकर प्रकाशनों से मोल-तोल कर कुछ रुपये पाकर ही फूलकर कुप्पा हो उठता है। “पाठ्यक्रम में आ गया हूँ। कोर्स का लेखक हो गया हूं। कोर्स का लेखक वह पक्षी है, जिसके पांवों में धुंघरू बांध दिये गये हैं। उसे ठुमककर चलना पड़ता है। ये आभूषण भी हैं, और बेड़ियां भी।” किसी सभा में वक्ता की हैसियत से गले में फूलों की माला डलवाकर, थोड़े से श्रोताओं की करतल-६ पनि सुनकर और भाषण के बाद थोड़ी-सी तारीफ सुनकर ही अपने को अहोभाग्य समझता है।

बुद्धिजीवी का दूसरा अवगुण हे अहंकार और ढोंग! वह स्वयं को । सामान्यजन से अधिक बुद्धिमान, विवेकशील मानता है अतः उसकी गर्दन ऐंठी रहती है।  तीसरे दर्जे में यात्रा करता है, पर शर्म न उठानी पड़े, चोरी न पकड़ी जाये, इसलिए कभी गंतव्य स्टेशन पर पहुंचने से कुछ स्टेशन पहले पहले दर्जे में पहुंच जाता है, कभी तीसरे दर्जे के डिब्बे से भागकर पहले दर्जे के डिब्बे के सामने खड़ा हो जाता है, ताकि स्वागतार्थ आये लोग समझें कि उसने पहले दर्जे से ही यात्रा की है।

Subcribe on Youtube - IGNOU SERVICE

For PDF copy of Solved Assignment

WhatsApp Us - 9113311883(Paid)

Post a Comment

0 Comments

close