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भारतीय लोकतंत्र में 73वें और 74वें संवैधानिक संशोधनों के महत्व की चर्चा कीजिए।

 73वाँ संशोधान-73वाँ संशोधान अधिानियम एक त्रि-पंक्ति पंचायती राज व्यवस्था मुहैया कराता है-ग्राम, माधयमिक द्धखण्ड अथवा तालुकाऋ तथा जिला स्तर। बीस लाख से कम आबादी वाले छोटे राज्यों को माधयमिक स्तर पर पंचायत गठित करने या न करने की छूट दी गई है। इस अधिानियम ने ग्रामीण लोगों के सशक्तीकरण में ग्राम सभा द्धजनसाधारण की सभाऋ की भूमिका को स्वीकारा और पंचायती राज संस्थाओं के सलतापूर्वक कार्य-सम्पादन के लिए ग्राम सभाओं को मजबूत किए जाने की व्यवस्था दी। इस अधिानियम का अभिप्राय इसे एक सशक्त निकाय बनाना था, ग्राम सभा में एक गाँव के सभी राज्य अधिानियम ग्राम सभा के प्रकार्यों का उल्लेख करते हैं। 

ग्राम सभा के इन प्रकार्यों में शामिल हैं-वार्षिक लेखा विवरण प्रशासन, सरकारी बयान, दरिद्रता-विरोधी कार्यक्रमों के लाभग्राहियों का चुनाव आदि विजयक चर्चा। हरियाणा, पंजाब, व तमिलनाडु के राज्य अधिानियम ग्राम सभा को बजट स्वीकृति का अधिकार प्रदान करते हैं। ग्राम सभा द्वारा एक ग्राम प्रधान चुना जाता है। वह ग्राम पंचायत के अन्य सदस्यों को भी चुनती है। सदस्य-संख्या राज्य-राज्य में भिन्न-भिन्न होती है, और उनकी आबादी के अनुसार उनमें से कुछ स्थान अनुसूचित जातियों व अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षित किए गए हैं तथा कुल सीटों की एक-तिहाई संख्या महिलाओं के लिए आरक्षित की गई है।

ग्राम पंचायत के अनिवार्य कायामें शामिल होते हैं-स्वच्छ पेयजल की व्यवस्था, सार्वजनिक कुओं, तालाबों ओषधालयों, प्राथमिक व माध्यमिक विद्यालयों का रखरखाव आदि। अब ग्राम पंचायतों को विकासात्मक कार्य भी सौंपे गए हैं, जैसे लघु सिंचाई योजनाएँ, ग्रामीण वैद्युतीकरण, कुटीर व लघु उद्योग तथा दरिद्रता उन्मूलन कार्यक्रम खण्ड स्तरीय पंचायती राज संस्थाओं को देष के विभिन्न भागों में विभिन्न नामों से जाना जाता है। गुजरात में उन्हें तालुका पंचायत कहा जाता है, उत्तर प्रदेश में क्षेत्र समिति और मध्य प्रदेश में उन्हें जनपद पंचायत कहा जाता है। इनमें शामिल हैं1. पंचायतों के सरपंच 2. उस क्षेत्र के संसद सदस्य, विधायक व पार्षद, 3. जिला परिषद् के निर्वाचित सदस्य तथा 4. उस क्षेत्र की नगरक्षेत्र समिति का अध्यक्ष।

पंचायत समिति की शक्तियों में शामिल हैं-बीजों व उर्वरकों की उन्नत किस्मों का प्रावधान, स्कूलों, अस्पतालों का रखरखाव, दरिद्रता-विरोधी कार्यक्रम लागू करना और ग्राम पंचायतों के कार्यप्रणाली करी देखरेख करना। जिला परिषद ही पंचायती राज संस्थाओं का षीर्श निकाय है। यह पंचायत समितियों की गतिविधियों का समन्वय करती है।  इसमें होते हैं-जिले की पंचायत समितियों के प्रधान, जिले से निर्वाचित सांसद व विधायकगण, जिले की प्रत्येक सहकारी समिति से एक-एक प्रतिनिधि, और जिले की नगरपालिकाओं का अध्यक्ष भी। जिला परिषद् पंचायत समितियों के बजट स्वीकृत करती है।

वह शैक्षणिक संस्थानों, सिंचाई परियोजनाओं का रखरखाव करती है, और कमजोर तबकों के लिए कार्यक्रम चलाती है। 74वाँ संशोधन-74वाँ संशोधन अधिनियम शहरी क्षेत्रों में तीन प्रकार की स्थानीय स्वशासी संस्थाओं के गठन हेतु व्यवस्था देता है। यह दिल्ली, मुम्बई, कोलकाता, इलाहाबाद, लखनऊ, पटना आदि जैसे प्रमुख शहरों के लिए नगर निगमों की व्यवस्था करता है। मध्यम श्रेणी के शहर नगर परिशदें तथा अपेक्षाकृत छोटे कस्बे नगर पंचायतें रखते हैं। प्रत्येक नगर निगम में एक महापरिषद् होती है। इसमें शहर के वयस्क नागरिकों द्वारा निर्वाचित सदस्य होते हैं।

इन सदस्यों को पार्षद कहा जाता है। निर्वाचित सदस्यों के अलावा, परिषद् में निर्वाचित पार्षदों द्वारा चुने गए वयोवृद्ध जन भी होते हैं। सांसद व विधायक भी इसके सदस्य होते हैं। महापौर सदस्यों द्वारा स्वयं के बीच से ही चुना जाता है। कुछ राज्य महापौर के सीधे चुनाव की व्यवस्था करते हैं। उसे शहर के प्रथम नागरिक के रूप में जाना जाता है। नगर-निगम आयुक्त निगम का मुख्य कार्यकारी अधिकारी होता है। महापौर निगम आयुक्त को किसी भी विषय पर रिपोर्ट तैयार करने व प्रस्तुत करने को कह सकता है।

एक नगर निगम के अनिवार्य कार्यों में शामिल हैं-अस्पतालों का रखरखाव, स्वच्छ पेयजल आपूर्ति, बिजली, स्कूल चलाना और जन्मों व मौतों का लेखा-जोखा रखना। नगर निगम के विकासात्मक प्रकार्यों में कमजोर वर्गों के लिए दरिद्रता उन्मूलन कार्यक्रम शुरू करना शामिल है।  नगर पालिका स्थानीय जनता द्वारा निर्वाचित पार्षदों से मिलकर बनती है। अनसचित जातियों व जनजातियों के लिए शहर में आबादी से उनके अनपात के अनसार सीटों का आरक्षण होता है और सीटों का एक-तिहाई महिलाओं के लिए आरक्षित होता है। नगर-निगम बोर्ड का पीठासीन अधिकारी अध्यक्ष कहलाता है। जो शहर के मतदाताओं द्वारा चुना जाता है। कुछ राज्यों में नगर-निगम बोर्ड का अध्यक्ष प्राथमिक स्कूल अध्यापकों और निचले स्तर के कर्मचारियों की नियुक्ति का अधिकार भी रखता है।

एक कार्यकारी अधिकारी नगरपालिका के दिन-प्रति-दिन के प्रशासन को देखता है। अनिवार्य कार्यों में आते हैं-बिजली, पेयजल, स्वास्थ्य सुविधाएँ, विद्यालय आदि मुहैया कराना और सड़कों का रखरखाव करना तथा समाज के कमजोर वर्गों का हिसाब रखना, छोटे शहर पंचायतें रखतें हैं। इसके सदस्य शहर के वयस्क नागरिकों द्वारा चुने जाते हैं। जैसा कि अन्य स्थानीय स्वशासी संस्थाओं में है, अनुसूचित जातियों व जनजातियों तथा महिलाओं के लिए सीटें आरक्षित हैं।

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