विद्वानों का मानना है कि प्राचीन भारत में महिलाओं को जीवन के सभी क्षेत्रों में पुरुषों के साथ बराबरी का दर्जा हासिल था।
हालांकि कुछ अन्य विद्वानों का नजरिया इसके विपरीत है। पतंजलि और कात्यायन जैसे प्राचीन भारतीय व्याकरणविदों का कहना है कि प्रारम्भिक वैदिक काल में महिलाओं को शिक्षा दी जाती थी।
साम्वेदिक चाएं यह बताती हैं कि महिलाओं की शादी एक परिपक्व उम्र में होती थी और संभवतः उन्हें अपना पति चुनने की भी आजादी थी।
वैदिक काल में “महिलाओं की स्थिति समाज में काफी ऊंची थी और उन्हें अभिव्यक्ति की पूर्ण स्वतंत्रता प्राप्त थी। वे धार्मिक क्रियाओं में भाग ही नहीं लेती थीं बल्कि क्रियाएं संपन्न कराने वाले पुरोहितों और अपियों का दर्जा भी महें प्राप्त था उस समय महिलाएं धर्म शास्त्रार्थ इत्यादि में पुरुषों की तरह ही भागलेती थी।
उन्हें गृहणी अर्धागिनी कहकर संबोधित किया जाता था पुत्र पुत्री के पालन-पोषण में कोई भेदभाव नहीं किया जाता था।” उपनयन संस्कार और शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार भी स्त्रियों को पुरूषों की भांति समान रूप से प्राप्त था।
तत्कालीन युग में महिलाएं सार्वजनिक जीवन में भाग लेती थी। “अस्पृश्यता, सती प्रथा, पर्दा प्रथा तथा बाल विवाह जैसी कुप्रथा का प्रचलन भी इस युग में नहीं था।
” “महिलाओं की शादी एक परिपक्व उम्र में होती थी, संभवतः उनको अपना जीवन साथी | के चुनाव का पूर्ण अधिकार प्राप्त था।
” “यद्यपि विधवा पुनर्विवाह प्रचलित नहीं था लेकिन विधवाओं के साथ सम्मानजनक व्यवहार किया जाता था और उन्हें अपने पति की सम्पत्ति पर अधिकार प्राप्त था।
” यूं कहा जा सकता है कि, स्त्रियां किसी भी क्षेत्र में पुरुषों से पीछे | नहीं थी। “भारतीय समाज के वैदिक काल में नारी को पुरूषों के समाज में शिक्षा, धर्म, राजनीति और सम्पत्ति के अधिकार एवं सभी | मामलों में समानाधिकार प्राप्त थे।”
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