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भाषा विज्ञान का ज्ञान की अन्य शाखाओं से संबंध स्पष्ट कीजिए।

 भाषा विज्ञान में भाषा या भाषाओं का वैज्ञानिक अध्ययन किया जाता है। और भाषा जीवन का प्रमुख अंग है. क्योंकि भाषा के बिना जीवन और जगत का कोई भी कार्य नहीं हो सकता जो भामा मानब जोजन की समस्त गतिविधियों की मूल आधार होती है। भाषा से ही हम परस्पर एक-दूसरे के विचारों से अवगत होते हैं।

अपनी इच्छा वह अभिलाषा व्यक्त करते हैं और लोग व्यवहार में प्रभावित होते हैं तथा दूसरों को प्रभावित करने की प्रेरणा प्रदान करते है। भागी तो हम ज्ञान विज्ञान के अनुसमानों में सहायता प्रदान करती है और भाषा से हम प्रगति के पथ पर अग्रसर होकर प्रकृति के विविध रहस्य का उद्घाटन करने में सहमत होते हैं।

जब भाषा हमारे जीवन जगत ज्ञान विज्ञान आदि के सभी क्षेत्रों में अपना अधिकार रखती है। जब भाषा का बनानिक मारामन कारब साल भाषा विनास का समान लान विज्ञान की अन्य शाखा एवं प्रशाखाओं के प्रतिपादक विविध शास्त्रों से होना स्वाभाविक है। 

इसके अतिरिक्त जब सभी शब्द अपने-अपने ज्ञान विज्ञान द्वारा जीवन और जगत के रहस्यों का अनुसंधान से सर्वेक्षण करते हुए अपने-अपने विषयों का प्रतिपादन करते हैं, तब सभी शास्त्रों का परस्परिक संबंध भी अपरिहार है। 

इसका कारण यह है कि विषय प्रतिपादक के प्रमुख साधन भाषा के वैज्ञानिक अध्ययन करने में भाषा विज्ञान का विविध शास्त्रों से निकट एवं घनिष्ठ संबंध है।

भाषा विज्ञान और व्याकरण- किसी भी भाषा का शुद्ध उच्चारण शुद्ध प्रयोग एवं शुद्ध लेखन संबंधित सम्पूर्ण ज्ञान प्राप्त करने के लिए उसके व्याकरण जानना आवश्यकता होता है। व्याकरण भाषा का केवल मूलाधार ही नहीं होता, अपितु मेरूदंड भी होता है।

वह किसी भी भाषा का ही दर्शन ही नहीं होता, बल्कि पथ प्रदर्शक भी होता है।

व्याकरण और भाषा विज्ञान में कुछ अंतर भी हैं

व्याकरण किसी एक भाषा तक ही सीमित रहता है, जबकि भाषाविज्ञान विभिन्न भाषाओं का भी तुलनात्मक विवेचन करता है।

2 व्याकरण किसी एक भाषा के सिद्ध एवं निष्पन्न रूपों की ही मोमंसा करता है, जबकि भाषा विज्ञान सिद्ध एवं असिद्ध सभी प्रकार की मीमांसा एवं विवेचना करता है।

3 व्याकरण में केवल संता, सर्वनाम, क्रिया, बचन अव्यय आदि रूपों का ही विवेचन किया जाता है। और जबकी भाषा विज्ञान में इन भाषा रूपों के अतिरिक्त ध्वनियों, वाक्यों, अर्थों. शब्दों आदि का भी अध्ययन किया जाता है।

4 व्याकरण केवल इतना तक ही बता सकता है कि ‘आग’ शब्द संज्ञा है. एकवचन, स्त्रीलिंग आदि, जबकि भाषा विज्ञान यह भी बताता है कि किस तरह अपनी मूल रूप अग्नि से कालांतर में अग्नि से आग हो गया।

5 व्याकरण हमेशा किसी एक निश्चित समय तक सीमित रहता है, जबकि भाषा विज्ञान का क्षेत्र असीमित और अनंत है। 

साहित्य और भाषा-विज्ञान-भाषा के प्रचलित वर्तमान स्वरूप को छोड़ कर शेष सारी अध्ययन सामग्री भाषा-विज्ञान को साहित्य से ही उपलब्ध होती है। यदि आज हमारे सामने संस्कृत, ग्रीक और अवेस्ता साहित्य न होता तो भाषा-विज्ञान कभी यह जानने में सफल न होता कि ये तीनों भाषाएँ किसी एक मूल भाषा से निकली हैं।

इसी प्रकार आदिकाल से लेकर आधुनिक काल तक का हिंदी साहित्य हमारे सामने न होता तो भाषा-विज्ञान हिंदी भाषा के ऐतिहासिक विकास का अध्ययन किस प्रकार कर पाता।

साहित्य भी भाषा-विज्ञान की सहायता से अपनी अनेक समस्याओं का समाधान खोजने में सफल हो जाता है। डॉ. वासुदेवशरण अग्रवाल ने भाषा-विज्ञान के सिद्धान्तों के आधार पर जायसीकृत ‘पद्मावत’ के बहुत से शब्दों को उनके मूल रूपों से जोड़कर उनके अर्थों को स्पष्ट किया है।

साथ ही शुद्ध पाठ के निर्धारण में भी इससे पर्याप्त सहायता ली है। अतः साहित्य और भाषा-विज्ञान दोनों एक-दूसरे के सहायक हैं। 

मनोविज्ञान और भाषा-विज्ञान-भाषा हमारे भावों-विचारों अर्थात् मन का प्रतिबिम्ब होती है अतः भाषा की सहायता से बहुत से समस्याओं को सुलझाया जा सकता है। विशेष रूप से अर्थविज्ञान को मनोविज्ञान पर पूरी तरह से आधारित है।

वाक्य-विज्ञान के अध्ययन में भी मनोविज्ञान से पर्याप्त, सहायता मिलती है। कभी-कभी ध्वनि-परिवर्तन का कारण जानने के लिए भी मनोविज्ञान हमारी सहायता करता है।

भाषा की उत्पत्ति तथा प्रारम्भिक रूप की जानकारी ममी बाल मनोविज्ञान तथा अविकसित लोगों का मनोविज्ञान जमारी सहायता करता है। 

  • शरीर-विज्ञान और भाषा-विज्ञान-भाषा मुख से निकजस वाली क्षति को कहते । अतः भाषा-विज्ञान में हवा भातगासे केसे चलती है, स्वरयंत्र, स्वरतंत्री, नासिकाविवर, कौवा, तालु, दाँत, जीभ, आठ, कंठ, मूर्द्धा तथा नाक के कारण उसमें क्या परिवर्तन होते हैं तथा कान द्वारा केसे ध्वनि ग्रहण की जाती है. इन सबका अध्ययन करना पड़ता है। इसमें शरीर-विज्ञान ही उसकी सहायता करता है। लिखित भाषा का ग्रहण आँख द्वारा होता है और इस प्रक्रिया का अध्ययन भी भाषा-विज्ञान के अन्तर्गत ही होता है। इसके लिए भी उसे शरीर विज्ञान का ऋणी होना पड़ता है।

भूगोल और भाषा-विज्ञान-भाषा-विज्ञान और भूगोल का भी-गहरा सम्बन्ध है। कुछ लोगों के अनुसार किसी स्थान की भौगोलिक परिस्थितियों का उसकी भाषा पर गहरा प्रभाव पड़ता है।

किसी स्थान में बोली जाने वाली भाषा में वहाँ के पेड़-पौधे, पक्षी, जीव-जन्तु एवं अन्न आदि के लिए शब्द अवश्य मिलते हैं, परन्तु यदि उनमें से किसी को समाप्ति हो जाए तो उसका नाम वहाँ की भाषा से भी जुदा हो जाता हैं। ‘सोमलता’ शब्द का प्रयोग आज हमारी भाषा में नहीं होता।

इस लोप का कारण सम्भवतः भौगोलिक ही है। किसी स्थान में एक भाषा का दूर तक प्रसार न होना, भाषा में कम विकास होना तथा किसी स्थान में बहुत सी बोलियों का होना भी भौगोलिक परिस्थितियों का ही परिणाम होता है।

दुर्गम पर्वतों पर रहने वाली जातियों का परस्पर कम सम्पर्क होने के कारण उनकी बोली प्रसार नहीं कर पाती। नदियों के आर-पार रहने वाले लोगों की बोली-भाषा सामान्य भाषा से हट कर भिन्न होती है।

देशा, नगरों, नदियों तथा प्रान्तों आदि के नामों का भाषा-वैज्ञानिक अध्ययन करने में भूगोल बड़ी मनोरंजक सामग्री प्रदान करता है।

अर्थ-विचार के क्षेत्र में भी भूगोल भाषा-विज्ञान की सहायता करता है। ‘उष्ट्र’ का अर्थ भैसा से ऊँट कैसे हो गया तथा ‘सैंधव’ का अर्थ घोड़ा और नमक ही क्यों हुआ, आदि समस्याओं पर विचार करने में भी भूगोल सहायता करता है।

भाषा-विज्ञान की एक शाखा भाषा-भूगोल की अध्ययन-पद्धति तो ठीक भूगोल की ही भांति होती है। इसी प्रकार किसी स्थान के प्रागौतिहासिक काल के भूगोल का अध्ययन करने में भाषा-विज्ञान भी पर्याप्त सहायक होता है।

इतिहास और भाषा-विज्ञान-इतिहास का भी भाषा-विज्ञान से घनिष्ठ सम्बन्ध है। इतिहास के तीन रूपों
(1) राजनीतिक इतिहास,

(2) धार्मिक इतिहास,

(3) सामाजिक इतिहास-को लेकर यहाँ भाषा-विज्ञान से उसका सम्बन्ध दिखलाया जा रहा है

(क) राजनीतिक इतिहास-किसी देश में अन्य देश का राज्य होना उन दोनों ही देशों की भाषाओं को प्रभावित करता है। हिंदी एवं अन्य भारतीय भाषाओं में अंग्रेजी के कई हन्नार शब्दों का प्रवेश तथा अंग्रेजी भाषा में कई हजार भारतीय भाषाओं के शब्दों का प्रवेश भारत की राजनीतिक पराधीनता या दोनों देशों के परस्पर सम्बन्ध का परिणाम है।

हिन्दी में अरबी, फारसी, तुर्की, पुर्तगाली शब्दों के आने के कारणों को जानने के लिए भी हमें राजनीतिक इतिहास का सहारा लेना पड़ता है।

(ख) धार्मिक इतिहास-भारत में हिंदी-उर्दू-समस्या धर्म या साम्प्रदायिकता की ही देन है। धर्म का भाषा से घनिष्ट सम्बन्ध है। धर्म का रूप बदलने पर भाषा का रूप भी बदल जाता है। यज्ञ का लोक-धर्म से उठ जाना ही वह कारण है जिससे आज हमारी भाषा से यज्ञ-सम्बन्धी अनेक शब्दों का लोप हो चुका है।

व्यक्तियों के नामों पर भी धर्म का प्रभाव पड़ता है। हिन्दू की भाषा में संस्कृत शब्दों की बहुलता होगी तो एक मुसलमान की भाषा में अरबी-फारसी के शब्दों की प्रचुरता देखने को मिलेगी।

इसी प्रकार बहुत-सी प्राचीन ध र्मिक गुत्थियों को भाषा-विज्ञान की सहायता से सुलझाया जा सकता है। धर्म के बल पर कभी-कभी कोई बोली अन्य बोलियों को पीछे छोड़कर विशेष महत्व पा जाती है। मध्य युग म अवयों और कि बिसयलयका कारण हमें धार्मिक इतिहास में ही प्राप्त होता है।

(ग) सामाजिक इतिहास-सामाजिक व्यवस्था तथा हमारी परम्पराएँ भी भाषा को प्रभावित करती हैं। भाषा की सहायता से किसी जाति के सामाजिक इतिहास का ज्ञान भी सरलता से प्राप्त किया जा सकता है भारतीय समाज में परिवारिक सम्बन्धों की विशेष महत्त्व दिया जाता है।

इसलिए भारतीय भाषाओं में, माँ-बाप, बहन-भाई, चाचा, मौसा, फका. बुआ.मौसी. साला, बहनोई, साद, साली. सास-ससुर जैसे अनेक शब्दों का प्रयोग किया जाता है

किन्तु सरापीय समाज में उन सभी सम्बन्धी क लिए मसल अन आम मदर फादर, ब्रदर, सिस्टर जैसे शब्द ही है जिनमें कुछ ‘इन लॉ’ आदि शब्द जोड़जाड़ कर अभिव्यक्ति की जाती है। अतः भाषा-विज्ञान के अध्ययन में सामाजिक इतिहास पूरी सहायता करता है।

इसी प्रकार सामाजिक व्यवस्था में शब्दों का किस प्रकार निर्माण हो जाया करता है, इस पर भाषा-विज्ञान प्रकाश डालता है। किसी समाज की भाषा में मिलने वाले शब्दों से उसकी समाज-व्यवस्था का परिचय प्राप्त होता है

समाज में संयुक्त परिवार व्यवस्था है, विशाल कुटुम्ब व्यवस्था है या एकल परिवार व्यवस्था है इस बात का उसमें व्यवहार किए गए शब्दों से पता चलता है।

भाषाविज्ञान तथा ज्ञान के अन्य क्षेत्र-भाषाविज्ञान के अध्ययन में तर्कशास्त्र, भौतिकशास्त्र एवं मानव-शास्त्र जैसे अन्य ज्ञान के क्षेत्र भी बड़ी सहायता पहुंचाते हैं। मनुष्य में अनेक प्रकार के अंधविश्वास घर कर लेते हैं, जिनका उसकी भाषा पर प्रभाव पड़ता है।

भारतीय सामज में स्त्रियाँ अपने पति का नाम घुमा-फिराकर लेती है, सीधा-स्पष्ट नहीं। रात्रि में विशाल कोड़ों का नाम नहीं लिया जाता है।

वे अपने लड़के का नाम मांगे (मांगा हुआ), छेदी (उसकी नाक छेद कर), बेचू (उसे दो-चार पैसे में किसी के हाथ बेच कर), घुरह(कूड़ा), कतवारू (कूड़ा) अलिचार (कूड़ा) आदि रखते हैं। अंधविश्वासों के अतिरिक्त अन्य बहुत-सी सामाजिक-मनोविज्ञान से सम्बद्ध गुत्थियों के स्पष्टीकरण के लिए मानव-विज्ञान की शाखा-प्रशाखाओं का सहारा लेना पड़ता है।

इस प्रकार ज्ञान के अनेक क्षेत्र-संस्कृति-अध्ययन, शिक्षाशास्त्र, सांख्यिकी, पाठ-विज्ञान-आदि भाषा विज्ञान से गहरा सम्बन्ध रखते हैं। 

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