वायु के समान कोई भी भौतिक, रासायनिक अथवा जैविक परिवर्तन जिससे जल की गुणवत्ता घट जाती हो, जल-प्रदूषण पैदा करता है| जल एक सार्वत्रिक विलायक होने के नाते अपने भीतर विविध प्रकार के पदार्थों को घुला सकता है। इस गुणवत्ता के कारण जल का संदूषित हो जाना स्वाभाविक ही होता है।
प्रदूषित जल हमारे स्वास्थ्य, जलीय जीवन तथा अन्य जीवों के लिए एक खतरा है। जल- निकायों, जैसे कि तालाबों, झीलों तथा भूमिगत जल में, पाया जाने वाला प्रदूषण स्थानीकृत होकर वहीं सीमित रहता है। इससे प्रदूषण की गंभीरता बढ़ जाती है। मानव- जनित जल प्रदूषण के मुख्य स्रोतों में आते हैं: जल-मल, कचरा, कूड़ा, औद्योगिक तथा कृषि अपशिष्ट जैसे कि उवेरक एवं पीड़कनाशी |
जल प्रदूषकों को निम्नलिखित तीन मुख्य वर्गों में
विभाजित किया जा सकता है|
1. जैविकीय कारक
जहां तक मानव स्वास्थ्य का संबंध है, रोगजनक जीव जैसे विषाणु, जीवाणु तथा प्रोटोजोआ गंभीर
प्रकार के जल प्रदूषक हैं। हैजा. जीवाणुवीय तथा अमीबी पेचिश, जठरांत्रशोध, टाइफाइड, पोलियों,
वाइरल हेपेटाइटिस, कृमि संक्रमण, फ्लू आदि कुछ खास जल-वहनी रोग हैं। कुछ कीट जिनके जलीय लार्वा होते हैं,
मलेरिया, डेंगू, पीत
ज्वर तथा फाइलेरिऐसिस फैलाते हैं। भारत में वर्षा ऋतु के आरम्भ होने पर प्रायः ऐसी
महामारियां शुरू हो जाया करती है। घनी आबादी वाले क्षेत्र, अनियोजित
औद्योगिक एवं मानव बस्तियाँ तथा उचित नागरिक सुविधाओं के अभाव आदि से अक्सर इन
बीमारियों को योगदान मिलता है। मानव अपशिष्टों, जानवरों के
अपशिष्टों, घरेलू जल-मल तथा चमड़ा-शोधशालाओं एवं बूचड़खानों
से निकले अपशिष्ट जल विसर्जनों से जल का प्रदूषण होता है। प्रदूषण श्यगान रवरूप
जैरो कि जल का र॑गवार हो जाना अथवा उरागें झाग बन जाना, जल
के उपयोग को हतोत्साहित करता है। अतः कभी-कभार इस प्रकार के दृष्यमान प्रदूषक अधिक
महत्वपूर्ण मुद्दे बन जाया करते है, जबकि इनसे भी ज़्यादा
गंभीर प्रदूषक वे होते हैं जो जल में घुल जाते हैं तथा कोरी आखों को दिखायी नहीं
पड़ते।
2. रासायनिक कारक
रासायनिक प्रदूषक अकार्बनिक हो सकते हैं, जैसे नाइट्रेट्स, अम्ल, लवण
तथा विषैली भारी धातुएं। कार्बनिक रासायनिक प्रदूषकों में आते हैं तेल, गैसोलीन, पीड़कनाशी, रंग-रोगन,
प्लास्टिक्स, धुलाई मेँ काम आने वाले विलायक,
डिटर्जेंट तथा जैविक अपशिष्ट जैसे घरेलू जल-मल, पशु जल अपशिष्ट आदि रेडियोसक्रिय पदार्थ जो तीसरी श्रेणी के रासायनिक
प्रदूषक से होते हैं, यूरेनियम अयस्क के संसाधन के फलस्वरूप
तथा शोध प्रयोगशालाओं से निकले अपशिष्ट होते हैं।
जैविक
अपशिष्ट तथा अकार्बनिक पोषक जैसे कि विविध फॉस्फेट तथा नाइट्रेट जल निकायों को
सम्पन्न बना देते हैं जिससे वहां जलसुपोषण हो जाता है। अकार्बनिक लवण जल में
आयनीकृत हो कर एकत्र हो जाते हैं तथा जल को कठोर बना देते हैं।
अनेक
प्रकार के रसायन जैसे अम्ल, क्षार, डिटर्जेंट तथा ब्लीचिंग साधन विविध उद्योगों से निकल कर आते हैं। इनसे जल
निकायों में कुछ परिवर्तन आ जाते हैं जैसे पानी के रंग में परिवर्तन होना (आयरन
ऑक्साइड से लाल रंग आता है तथा आयरन सल्फेट से पीला रंग), डिटर्जेटों
से झाग पैदा होना आदि। इस प्रकार के परिवर्तनों से इन जल निकायों पर निर्भर जीवों
को हानि पहुंचती है।
3. भौतिक कारक
निलम्बित ठोस पदार्थ, अवसादी ठोस पदार्थ और तापमान ऐसे भौतिक कारक हैं जिनसे जल की गुणवत्ता
प्रभावित होती है। इन जल प्रदूषकों से कई प्रकार के कुप्रमाव होते हैं, जैसे गाद बनना, जल मार्यों का अवरुद्ध हो जाना,
बांधों का भर जाना तथा पानी का गंदा हो जाना। जलीय जीवों को इस
प्रकार के जल में अपने गिलों (क्लोमों) से सांस लेना समस्या बन जाती है। निलम्बित
कार्बनिक तथा खनिज ठोस पदार्थ, विषैले पदार्थों, जैसे भारी धातुओं को अधिशोषण कर लेते हैं और उन्हें खाद्य- श्रृंखला में
पहुंचा देते है। जल निकाय में ऊष्मा-धारी जल के मिलने से जल निकाय में ताप प्रदूषण
पैदा होता है।
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