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समावेशी विकास

समावेशी विकास एक ऐसी अवधारणा है जिसमें समाज के सभी लोगों को समान अवसरों के साथ विकास का लाभ भी समान रूप से प्राप्त हो, अर्थात सभी वर्ग, क्षेत्र, प्रान्त के व्यक्तियों का बिना भेदभाव, एकसमान विकास के अवसरों के साथ-साथ होने वाला देश का विकास ही समावेशी विकास कहलाता है।

  या यूँ कहा जाये कि समावेशी विकास, विकास की वह प्रक्रिया है जिसमें सभी लोग (गरीब और अमीर), सभी भौगोलिक क्षेत्र (महाराष्ट्र, उ0प्र0, बिहार, असम आदि सभी राज्य) और अर्थव्यवस्था के सभी क्षेत्र (कृषिउद्योग एवं सेवा) देश के आर्थिक विकास में बराबर योगदान देते हैं। अतः समावेशी विकास में देश के सभी वर्गों का बराबर योगदान रहता है तथा सभी वर्ग इस विकास से लाभाचित होते हैं।

   भारत सरकार द्वारा समावेशी विकास को महत्व प्रदान करते हुए ॥वीं पंचवर्षीय योजना में इसका उपयोग किया गया। विकास को और अधिक धारणीय एवं समावेशी बनाने के उद्देश्य से इसे 12वीं पंचवर्षीय योजना के केन्द्र में तीव्र, धारणीय और अधिक समावेशी विकास” को रखा गया। योजना बनाने में यह सुनिश्चित किया गया कि जनसंख्या के बड़े हिस्से मुख्यतः कृषक, अनुसूचित जाति/जनजाति एवं अन्य पिछड़ा वर्गों को सामाजिक एवं आर्थिक समानता दिलाई जाए। अतः समावेशी विकास को ध्यान में रखते हुए योजनाओं में ऊँची आर्थिक वृद्धि दर से प्राप्त लाभों का समान वितरण शामिल किया जाता है।

   भारत पीपीपी मॉडल के आधार पर विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है परन्तु यदि हम प्रति व्यक्ति आय की बात करें तो भारत विश्व में 122वें स्थान पर आता है। विश्व आर्थिक मंच द्वारा जारी किए गए “समावेशी विकास सूचकांक” में भारत का स्थान 63वां है तथा भारत से आर्थिक रूप से पिछड़े देश नेपाल (22वां स्थान), पाकिस्तान (47वां स्थान) भारत से आगे नजर आते है। अतः यह कहना गलत नहीं होगा कि पिछले कुछ दशकों में भारत ने आर्थिक विकास तो किया है परन्तु समावेशी विकास उस गति से नहीं हो पाया जिस गति से उसे होना चाहिए था।

·         बेरोजगारी की दर को घटाना - रोजगार में वृद्धि करने से शहरी एवं ग्रामीण क्षेत्र के बेरोजगारों को विकास की प्रक्रिया के साथ जोड़ो जा सकता है। स्किल इंडिया मिशन एवं स्टार्ट अप इण्डिया योजना इसी तरफ एक महत्वपूर्ण कदम है, इससे अकुशल श्रमिकों के कुशल बनाकर तथा नए स्टार्टअपों के जरिए रोजगार में वृद्धि करी जा रही हैं।

·         कृषि एवं ग्रामीण विकास - आज भी कृषि क्षेत्र ही सबसे अधिक रोजगार उपलब्ध कराने वाला क्षेत्र है। अतः इसका विकास, समावेशी आर्थिक विकास के लिए जरूरी है। प्रधान मंत्री ग्राम सड़क योजना से गाँवों में अवसंरचनात्मक सुधार एवं मुद्रा योजना, किसान क्रेडिट कार्ड से कृषि कार्यों हेतु आसान शर्तों पर ऋण उपलब्ध कराया जा रहा है। साथ ही प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना आदि से किसानों की हानि को कम किया जा रहा है। भारत सरकार द्वारा वर्ष 2022 तक किसानों की आय दुगनी करने का भी लक्ष्य रखा गया

·         आर्थिक असमानता को समाप्त करना असमानता को समाप्त करना - भारत का उच्च आय प्राप्त करने वाला 1% तबका जीडीपी में 50% की हिस्सेदारी रखता है, समावेशी विकास हेतु इस असमानता को समाप्त करना आवश्यक है। इसे दूर करने हेतु सरकार द्वारा जन- धन योजना शुरू की गयी है जिसके जरिए सरकार समाज के उस वर्ग को अर्थव्यवस्था की मुख्य धारा से जोड़ना चाहती है जिनके पास अभी बैंक खाते नहीं हैं।

·         आधारभूत आवश्यक वस्तुओं तक सबकी पहुँच सुनिश्चित करना - स्वास्थ्य, शिक्षा, खाद्य सुरक्षा, बिजली, स्वच्छ पानी एवं आवास जैसी आधारभूत आवश्यक वस्तुओं तक सबकी पहुँच सुनिश्चित करना। गरीब बीपीएल परिवारों को दीन दयाल उपाध्याय ज्योति योजना से सस्ती दरों पर बिजली एवं उज्जवला योजना से एलपीजी कनेक्शन उपलब्ध कराना सरकार की बड़ी उपलब्धि है।

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