किसी देश के सामाजिक, आर्थिक तथा सांस्कृतिक उत्थान में, उस देश में उपलब्ध मानव संसाधन
अथवा आर्थिक रुप से क्रियाशील जनसंख्या की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। मानव शक्ति का आकार तथा उसका गुणात्मक स्वरूप देश के विकास की दिशा, एवं विकास के पथ को निर्धारित करती है। मानव ही उत्पादन का साधन बन कर आर्थिक विकास को गति प्रदान करता है। 1990 में सर्वप्रथम प्रकाशित मानव विकास प्रतिवेदन ने मानव विकास को, लोगों के सामने, विकल्प के विस्तार की प्रक्रिया के रूप में परिभाषित किया है। इनमें सवार् झिधिक महत्वपूर्ण है विस्तृत और स्वस्थ जीवन, शिक्षा प्राप्ति और अच्छा जीवन स्तर को पाना। अन्य विकल्प हैं, राजनीतिक स्वतंत्रता, मानवाधिकारों का आश्वासन और आत्म-सम्मान के विविध तत्व। ये सभी जरूरी विकल्प हैं जिनके अभाव में दूसरों अवसरों में बाधा पड़ती है। अत: मानव विकास, लोगों के विकल्पों में विस्तार के साथ-साथ प्राप्त होने वाले कल्याण के स्तर को ऊँचा करने की प्रक्रिया है। पॉल स्ट्रीटन ने ठीक ही लिखा है कि मानव विकास की संकल्पना, मानव को कई दशकों के अतंराल के बाद पुन: केन्द्रीय मंच पर प्रस्थापित करती है। इन बीते दशकों में तकनीकी संकल्पनाओं की भूल्र-भुलैया में यह बुनियादी इष्टि अस्पष्ट बनी है।
प्रसिद्ध अर्थशास्त्री महबूब
उल्न हक, जिनके निर्देशन में सर्वप्रथम मानव विकास सूचकांक
का निर्माण किया गया था, के अनुसार, “मानव
विकास में सभी मानवीय विकल्पों का विस्तार आ जाता है। ये विकल्प चाहे आर्थिक,
सामाजिक, सांस्कृतिक अथवा राजनीतिक हों।” यह
कभी-कभी कहा जाता है कि आय में वृद्धि से अन्य सभी विकल्पों का विस्तार होता है,
किन्तु यह सत्य नहीं है। मानव के सामने अनेक विकल्प हैं, जो आथिक कल्याण से कहीं आगे जाते हैं। ज्ञान, स्वास्थ्य,
स्वच्छ भौतिक पर्यावरण, राजनीतिक स्वतंत्रता
और जीवन के सरल आनन्द आय पर निभ॑र नहीं है। अत: संकुचित अर्थों में मानव विकास का
अर्थ है, मानव की शिक्षा तथा प्रशिक्षण पर व्यय करना जबकि
विस्तृत अर्थ में, स्वास्थ्य, शिक्षा
तथा समस्त सेवाओं पर किये जाने वाले व्यय से लगाया जाता है।
1.
सामाजिक नीति, कार्यक्रम व सेवाओं को बेहतर
बनाने के लिए एक एकीकृत उपागम को अपनाना व क्रियान्वित करना,
2.
मानव विकास व सामाजिक विकास में उन्नति के लिए राष्ट्रीय स्तर की
क्षमताओं का निर्माण करना,
3.
मानव विकास से सम्बन्धित विभिन्न प्रकार के नेटवर्क व साझेदारियों
को विकसित करना व सशक्त बनाना,
4.
सामाजिक व मानव विकास से संबंधित कार्यक्रमों व सेवाओं को बेहतर
बनाना व उनमें सामन्जस्य स्थापित करना,
5.
बेहतर मानव-विकास के लिए ज्ञान व उपागमों को सुद्दढ़ बनाना,
6.
प्राथमिक, माध्यमिक व उच्च स्तर पर शिक्षा की
उपयुक्त व्यवस्था करना,
7.
प्रौढ़ शिक्षा को बढ़ावा देना तथा उसकी समुचित व्यवस्था करना,
8.
कार्य-प्रशिक्षण को बढ़ावा देना, तथा
9.
ऐसी स्वास्थ्य सुविधाओं की व्यवस्था करना जो लोगों की
जीवन-प्रत्याशा, शक्ति, उत्साह तथा कार्यक्षमता
में वृद्धि कर सकें।
किसी देश का आर्थिक विकास उस
देश में उपलब्ध मानव पूँजी के स्टॉक तथा संचय की दर पर निर्भर करता है। विकासशील
देशों में नियोजित आर्थिक विकास की प्रक्रिया में मानव के विकास पर समुचित ध्यान
नहीं दिया जाता। यही कारण है कि इन देशों में विकास के वांछित लक्ष्य नहीं प्राप्त
हो पाते है तथा वहाँ विकास की दर निम्न रहती है। आज अधिकांश विकासवादी
अर्थशास्त्री इस बात के पक्षधर है कि मानव-पूँजी में अधिक से अधिक विनियोग किया
जाना चाहिए ताकि आर्थिक विकास के सर्वाधिक महत्वपूर्ण घटक मानव संसाधन का समुचित
विकास किया जा सके।
किसी भी देश की जनसंख्या का
जितना अधिक हिस्सा शिक्षित, कुशल एवं प्रशिक्षित, होकर रोजगार में लगा हुआ है, वह देश उतना ही तेजी से
विकास करेगा। आर्थिक विकास की दृष्टि से भौतिक पूँजी की अपेक्षा मानव पूँजी को
कहीं अधिक महत्वपूर्ण समझा जाता है क्योंकि मानवीय साधनों की कुशलता एवं दक्षता
पर ही आर्थिक विकास का ढांचा खड़ा किया जा सकता है। प्रसिद्ध अर्थशास्त्री माशल का
भी विचार था कि “सबसे मूल्यवान पूँजी वह है जो मानव-मात्र में विनियोजित की जाये।”
पॉल स्ट्रीटन के अनुसार--
1.
मानव विकास ऊँची उत्पादकता का साधन है। भली प्रकार से पोषित,
स्वस्थ, शिक्षित, कुशल और
सतक॑ श्रम शक्ति सर्वाधिक महत्वपूर्ण उत्पादक परिसंपत्ति है। अत: पोषण, स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा में निवेश उत्पादकता के आधार
पर उचित है।
2.
यह मानव पुनरूत्पादन को धीमा करके परिवार के आकार को छोटा करने में
सहायता पहुँचाता है। यह सभी विकसित देशों का अनुभव है कि शिक्षा के स्तर में सुधार,
अच्छी स्वास्थ्य सुविधाओं की उपलब्धता और बाल मृत्यु दर में कमी से
जन्म दर में गिरावट आती है। शिक्षा में सुधार से लोगों में छोटे परिवार के प्रति
चेतना पैदा होती है और स्वास्थ्य में सुधार व बाल मृत्यु दर में कमी से लोग ज्यादा
बच्चों की जरूरत महसूस नहीं करते।
3.
भौतिक पर्यावरण की दृष्टि से भी मानव विकास अच्छा है। गरीबी में
वनों के विनाश, रेगिस्तान के विस्तार और क्षरण में कमी आती
है।
4.
गरीबी में कमी से एक स्वस्थ समाज के गठन, लोकतंत्र
के निर्माण और सामाजिक स्थिरता में सहायता मिलती है।
5.
मानव विकास से सामाजिक उपद्रवों को कम करने में सहायता मिलती है और
इससे राजनीतिक स्थिरता बदती हैं।
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