अकबर का मुख्य उद्देश्य दक्खन में युगल सत्ता की स्थापना और "सूरत भीतरी प्रदेश” की रक्षा करना था। वह जानता था कि केवल सैनिक अभियान की सहायता से इस उद्देश्य की पूर्ति नहीं की जा सकती है। अतः उसने कूटनीतिक चालों का भी सहारा लिया। जहांगीर चाहता था कि 1600 की संधि के तहत अकबर ने मुगल साप्राज्य का आधिपत्य दवख्षन में जहां तक स्थापित किया था, वह बना रहे। दब्खन की स्थिति को भांपते हुए और साप्राज्य की अंदरूनी समस्याओं को देखते हुए उसने यथास्थिति की यह नीति अपनाई । अहमदनगर द्वारा 1600 ई. की संधि का उल्लंघन किए जाने पर शाहजहां ने अहमदनगर के खिलाफ आक्रामक रुख अपनाया और 1636 ई. की संधि लागू कर दवखनीं समस्या को अगले 20 वर्षों तक के लिए सुलझा दिया। एक बार फिर कर्नटक प्रदेश में बीजापुर और गोलकुंडा के बढ़ते प्रभाव और साम्राज्य के वित्तीय संकट के कारण शाहजहां को अपनो नीति बदलनी पड़ी । याध्॑ तक कि औरंगजब, जो अपने राज्यारोहण के पूर्व दवखन में आक्रामक नीति का पश्चधर था, भी बीजापुर और गोलकंडा पर एकदम कब्जा जमाने के पक्ष में नहीं था । मराठों की बढ़ती शक्ति, मराठों और बीजापुर-गोलकुंडा के आपसी गठबंधन के खतरे और साम्राज्य के आंतरिक संकर ने औरंगजेब को 1680 के दशक में बीजापुर और गोलकुंडा पर कब्जा करने को बाध्य किया । इन सब बातों से यह स्पष्ट होता है कि मुगलों की दवखनी नीति मुगल शासकों की व्यक्तिगत इच्छा की अपेक्षा समकालीन परिस्थिति से पनपी जरूरतों से निर्देशित हुई ।
कुछ इतिहासकार मुगलों को दबखन नीति को यह
कहकर आलोचना करते हैं कि इसे गलत ढंग से संचालित किया गया और इसका परिणाम मुगल
साप्राज्य को अंतत: भोगना पड़ा | इस प्रकार
की टिप्पणो ऐतिहासिक तौर पर पलत है।दक्खन में मणठों के बढ़ते प्रभाव और दवखनी
राज्यों के आपसी झगड़े को देखते हुए यह कहना पड़ता है कि दकखन में मुगलों का
हस्तक्षेप अवश्यंभावी था। अगर हम मुगलों की दबखनी नीति के विभिन्न चरणों को ध्यान
से देखें तो पाएंगे कि मुगल दवखनी राज्यों की तरफ एक कदम रखने से फहले समकालीन
परिस्थितियों को भांप लिया करते थे। जैसा हमने देखा उनकी टकक््खनी नीति को
प्रभावित करने वाले कई कारक क्रियाशील थे। दक्खन में उन्हें कभी-कभी असफलताओं का
सामना करना पड़ा। इसका कारण केवल यह नहीं था कि उन्हें दकखनी समस्या का ज्ञान नहीं
था। इन असफलताओं का एक और प्रमुख कारण मुगल सरदारों का आपसी संघर्ष और उनकी दुलमुल
स्वामी भक्ति थी। इस करण भी मुग्लों को दक्खन में कई बार असफलताओं का सामना करना
पड़ा । अत: मुगलों की दक्खनी नीति पर विचार करते समय किसो एक तत्व पर अपने को
सीमित कर लेना सही नहीं है बल्कि इसके लिए खुले और व्यापक दृष्टिकोण को अपनाना
संगत होगा|
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