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प्रशासनिक प्राधिकरण के गुण य दोष तथा सुरक्षा उपायों का विवरण दीजिए।

गुण

प्रशासनिक प्राधिकरण के निम्नलिखित गुण हैं:

  • ·         जल्द निर्णय के लिए क्रियाविधि प्रदान करता है।
  • ·         प्रभावी लागत
  • ·         बोझ तले दबी न्यायापालिका को राहत प्रदान करता है।
  • ·         सरल प्रक्रिया
  • ·         स्थापित करना आसान
  • ·         जटिल और तकनीकि मामलों से निपटने में सक्षम
  • ·         सामाजिक-आर्थिक विकास को सुगम बनाना।

दोष

हालांकि, प्रशासनिक निर्णयन की क्रियाविधि शासन का एक अभिन्‍न अंग बन गया है, परन्तु यह समस्याओं से परे नहीं हैं। प्रशासन की यह बढ़ती हुई निर्णयन शक्तियों के कारण कई मुद्दे और आपत्तियाँ सामने आई हैं, जो निम्नलिखित हैं:

1. तेजी से बढ़ती हुई प्राभ्िकरणों की संख्या और अनावश्यक जटिलताएँ

प्राधिकरण के बारे में आम समस्याओं में से एक उनकी अनियोजित और तेजी से बढ़ती हुई संख्या है। प्रत्येक वैधानिक निकाय के पास निर्णयन लेने के लिए अपनी एक मशीनरी होती है। इस कारण ये सामानान्तर निकाय के रूप में कार्य करते हैं और एक ही प्रकार के विवाद से सम्बन्धित भिन्न-भिन्न निर्णय देते हैं। इससे भ्रम उत्पन्न होते हैं और यह विवादों को और जटिल बना देते हैं। इस कारण इन पर एकसमान सिद्धांत बनाना अत्यधिक कठिन हो जाता है।

2. एक समान प्रक्रिया का अभाव

प्रशासनिक प्राधिकरण न्याय को देते हुए जिन प्रक्रियाओं का पालन करते हैं, उनमें एकरूपता नहीं दिखाई देती है। प्राधिकरण प्रायः सरसरी रूप से निर्णयन करते हैं और पूर्ववर्तीयों का पालन नहीं करते हैं | ऐसी स्थितियों में भविष्य में निर्णयों का पथ प्रदर्षित नहीं किया जा सकता है।

3. कानून के नियम का उल्लंधन

प्रत्येक प्राधिकरण अपने स्वयं के अलग-अलग कानूनों और प्रक्रियाओं के कारण कानून के शासन में विघ्न पैदा करता है। कानून प्रत्येक व्यक्ति को अपने समक्ष समान मानता है और सरकरी स्वेच्छाचारिता पर कानून की श्रेष्ठता भी सुनिश्चित करता है। इसका प्रायः प्राधिकरणों के कानूनों और प्रक्रियाओं में अभाव पाया जाता है।

4. प्राकृतिक न्याय के सिद्धान्त को कम आंका गया

प्रशासनिक प्राधिकरण प्राकृतिक न्याय के सिद्धान्त का उल्लंघन करते हैं। कोई भी व्यक्ति अपने स्वयं के मामले में न्याय करने वाला न्यायाधीश नहीं हो सकता है, इसमें सम्मिलित पक्षों को सुनने की आवश्यकता होती है और निर्णय लेने के लिए तर्क को व्यक्त किया जाना भी आवश्यक होता है। इसी तरह, प्राधिकरण द्वारा तथ्यों की जाँच गुणवत्ता के प्रति क्षीण होती है।

5. निर्णयों की अदृश्यता

न्यायिक अदालतों के विपरित, अधिक से अधिक प्राधिकरण अपने निर्णयों को प्रकाषितनहीं करते। यह आमतौर पर कहा जाता है कि प्रशासनिक प्राधिकरण जनता में विश्वास नहीं जगा पाता है क्योंकि प्रशासनिक प्राधिकरण की प्रक्रिया के नियमों के अनुसार कार्यवाही का कोई प्रचार नहीं होता है। कोई भी विशिष्ट निर्णय लेते समय ये उसका तर्क नहीं देते हैं। रॉबसन के अनुसार, "प्रचार के बिना भविष्य के निर्णयों की प्रवर्षत की भविष्यवाणी करना असम्भव है और गोपनीयता के कारण निरंकुश नौकरशाही का वातावरण आरम्भ हो जाता हैकृकू इसका कोई अंतनिर्हित कारण नहीं है।

   प्रशासनिक प्राधिकरण को नियमित अंतराल पर अपनी प्रतिवेदन प्रकाषित करने की आवश्यकता है और ये तर्क-संगत होने चाहिए।

6. अपील करने का सीमित अधिकार

किसी भी न्यायिक प्रणली की ताकत अपील करने के अधिकार में निहित है। वास्तविकता में, अपील प्रशासन में किसी भी त्रुटि के विरूद्ध एक सुरक्षा कवच होता है। कभी-कभी प्रशासनिक प्राधिकरण उनके स्वयं के निर्णयों के विपक्ष में कानून की अदालतों में किसी भी अपील को अस्वीकृत कर देता है। इसलिए, जनता प्राधिकरण प्रणाली के न्याय पर अपना विश्वास खो देती है।

7. निर्णयों की अननुमेयता

पूर्वानुमान की एक निश्चित मात्रा न्याय प्रशासन की एक अनिवार्य विशेषता है। चुँकि,नियमित अदालतें पूर्व उदाहरणों के सिद्धान्तों का पालन करती हैं, इसलिए समान तथ्यों के आधार पर मामलों से सम्बन्धित निर्णय लेना आसान होता है। परन्तु प्रशासनिक प्राधिकरण का व्यवहार इन सिद्धांतों पर बिलकुल ही आधारित नहीं है।

8. विशेषज्ञ न्यायधीशों की कमी

न्याय निर्णायकों में कानून व कानून की क्रिया विधियों में प्रशिक्षण का अभाव पायाजाता है। इस कारण से निर्णय दोषपूर्ण होते हैं। इसके अतिरिक्त, एक ही अधिकारी में विभिन्‍न प्रकार के कार्यों का संयोजन एक अनौपचारिक दृष्टिकोण पैदा करता है। जबकि, ऐसे कार्यों को करने के लिए विशेषज्ञों की आवश्यकता होती है। उदाहरण के लिए, एक अभियोजन और न्यायघधीश के कार्य या तो एक व्यक्ति या एक विभाग में संयुक्त होते हैं। ऐसे मामलों में, व्यक्तिगत पूर्वाग्रह या अधिकारिक पूर्वाग्रह होने की संभावना बढ़ जाती है।

सुरक्षा उपाय

उपरोक्त के संबंध में कुछ संगठनात्मक, प्रक्रियात्मक, और न्यायिक प्रकार के सुरक्षा उपायोंका पालन किया जा सकता है। इन उपायों से इनके दोशों को कुछ सीमा तक कम किया जा सकता है।

   संगठनात्मक सुरक्षा उपायों के अंतर्गत, आमतौर पर यह माना जाता है कि प्राधिकरणों को उन व्यक्तियों से सुसज्जित किया जाना चाहिए, जिन्हें कानूनी प्रशिक्षण और अनुभव हो।इसके अतिरिक्त, जहाँ तक संभव हो, प्राधिकरण को न्यायिक अधिकारी के रूप में एकल

अधिकारिक निकाय की जगह एक बहु निकाय होना चाहिए।

   प्रक्रियात्मक उपायों में, यह सुझाव दिया गया है कि निर्णयन अधिकारियों को मार्गदर्शन या परामर्ष प्रदान करने के लिए वरिष्ठ या सेवानिवष्त न्यायाधीशों ,“ अधिकारियों के एक निकाय का गठन किया जाना चाहिए।

अलग-अलग न्यायिक प्रक्रिया के स्थान पर एक न्यायिक प्रक्रिया संहिता को लागू किया जाना चाहिए।

   संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे देशों ने प्रशासनिक प्रक्रिया अधिनियम 1946 को लागू किया है। इसी तरह, मंत्री की शक्तियाँ समिति' यू के. ने ये सुझाव दिया है कि प्रशासनिक प्राधिकरण को आम न्याय के सिद्धान्तों का पालन करना चाहिए। इसी को ध्यान में रखते हुए ट्राइब्यूनल्स व इंक्वारिज अधिनियम को इंग्लैण्ड में पारित किया गया था। लेकिन भारत में आज तक ऐसा कोई कानून पारित नहीं हुआ है।

   तीसरा, यह अनुभव किया गया है कि न्यायिक नियंत्रण के अभाव में प्राधिकरण का कार्य पक्षपातपूर्ण निर्णयन होता है। आमतौर पर, विकसित देशों जैसे जर्मनी और फ्रांस में प्रशासनिक प्राधिकरण उच्चतम न्यायालयों की निगरानी में होते हैं, जिससे न्यायिक निर्णयों में पारदर्शिता लायी जाती है।

   भारतीय संविधान के अनुच्छेद 32, 136, 226, और 227 में प्रशासनिक प्राधिकरण पर सर्वोच्च न्यायालय का नियंत्रण प्रदान करते हैं। जैसे कि अनुच्छेद 32 नागरिकों को उनके मौलिक अधिकारों के उल्लंघन पर संवैधानिक उपचार प्रदान करता है। नागरिक, ऐसी अवस्था में, सर्वोच्च न्यायालय में जाने का अधिकार रखते हैं।

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