Recents in Beach

व्यक्तित्व का मनोवेगीय सिद्धांत की व्याख्या कीजिए।

व्यक्तित्व के मनोवेगीय सिद्धांत के प्रवर्तक फ्रायड थे। यह व्यक्ति के व्यक्तित्व को निर्धारित करने में अचेतन अभिप्रेरणाओं, इच्छाओं तथा ताकत पर बल देता है। इसे गतिशील कहा जाता है क्‍योंकि इसमें सचेतन एवं अचेतन मनोवैज्ञानिक ताकतों के बीच सतत टकराव या संघर्ष होता है। फ्रायड के अनुसार, हमारा व्यवहार एवं व्यक्तित्य अचेतन आवश्यकताओं, स्मृतियों एवं अभिप्रेरणा के द्वारा निर्धारित होता है। हमारे व्यवहार में अंतर्निहित विचार, भावनाएं और इरादें ज्यादातर अचेतन होते हैं। फ्रायड अचेतन भाग को पानी के अंदर स्थित एक हिमशैल के बड़े हिस्सें के रूप में प्रस्तुत करते हैं वहीं पानी के ऊपर स्थित छोटे हिस्से को सचेनत जागरूकता के रुप में प्रस्तुत करते हैं। अचेतन में वे मानसिक प्रक्रियाएं निहित होती हैं जो व्यक्ति के लिए आसानी से उपलब्ध नहीं होती हैं।

   जब व्यक्ति इन अचेतन ताकतों से संचालित होता है जिनके बारे में वह जागरूक नहीं है तब यह व्यक्तित्व की तीनों संरचनाओं इड (id), अहं (ego) तथा पराहम्‌ (superego) के बीच संघर्ष की तरफ ले जाता है। इस प्रकार से फ्रायड व्यक्तित्व की तीन आधारभूत / प्राथमिक संरचनाओं को प्रस्तावित करते हैं तथा इनके बीच पारस्परिक क्रिया व्यक्ति के व्यक्तित्व की प्रकृति निर्धारित करती है। 'इड' अचेतन स्तर पर रहता है जो अचेतन इच्छाओं से संबंधित है तथा सुखेप्सा सिद्धांत के द्वारा संचालित होता है जिसमें आप इच्छाओं की तुरन्त पूरा या संतुष्ट करना चाहते हैं। 'पराहम' नैतिक पक्ष से संबंधित है जो समाज की आचार संहिता के नियमों एवं मानदण्डों के द्वारा संचालित होता है। अभिभावकीय नियंत्रण एवं सामाजिक अपेक्षाएं पराहम्‌ के विकास को प्रभावित करती हैं। यह नैतिकता के रक्षक के रूप में कार्य करता है और इड की अवांछनीय इच्छाओं को रोकता है। 'अहं' जो वास्तविकता के सिद्धांत पर कार्य करता है, यह इड की अवांछनीय इच्छाओं तथा पराहम्‌ के नैतिक कथन के बीच संतुलन बनाने की कोशिश करता है। यह तर्कयुक्त चिंतन एवं समस्या समाधान का इस्तेमाल करता है। इस प्रक्रिया में अहम्‌ संघर्ष का सामना करने के लिए रक्षा युक्तियों का प्रयोग करता है और संघर्ष के कारण उत्पन्न हुई चिन्ता को कम करता है। रक्षा युक्त्यां मानसिक युकतियां हैं जो व्यक्ति को इड एवं पराहम्‌ के बीच संघर्ष में टूटने से बचाती हैं। ये अचेतन स्तर पर काम करती है। कुछ सामान्य रक्षा युक्तियों के उदाहरण नीचे दिए गए हैं।

युक्तीकरण : अपने व्यवहार के लिए स्पष्टीकरण या तर्कयुक्त कारण देना जिसे अनुचित या गलत माना गया हो, जैसे-परीक्षा में परीक्षक की संक्षिप्त अनुपस्थिति के दौरान विद्यार्थी द्वारा नकल करना क्‍योंकि अन्य विद्यार्थी भी नकल कर रहे थे।

अस्वीकरण : तथ्य को स्वीकार करने से मना करना क्‍योंकि यह चिन्ता की तरफ ले जाएगा और संकट का कारण होगा, जैसे - माता पिता के द्वारा यह स्वीकार करने से इंकार करना कि उनका बच्चा कक्षा परीक्षा में अनुर्त्तीण हो गया है (क्योंकि यह उन पर बुरी तरह प्रतिबिंबित होगा)।

उदारीकरण : अवांछनीय आवेगों को सामाजिक रूप से स्वीकार्य एवं संरचनात्मक व्यवहार में परिवर्तित करना, जैसे - आक्रामकता को फुटबाल या बागवानी आदि में अच्छा प्रदर्शन करने के लिए लगाना।

प्रतिगमन : विकास की पूर्व अवस्था तथा उस अवस्था के व्यवहार एवं आदतों की विशेषता की तरफ वापस लौटना, जैसे - जब उसके माता-पिता उच्च शैक्षिक प्रदर्शन के लिए उसके ऊपर दबाव डालते हैं, तो किशोर बिस्तर गीला करना शुरू कर देता है।

दमन : अपनी जानकारी से संकट एवं चिंता के स्रोत का दमन करना या हटाना जिससे यह सचेतन में उपलब्ध न रहे, जैसे - व्यक्ति बचपन की शोषण की घटनाओं को भूल जाता है।

प्रतिक्रिया निर्माण : स्वयं के बारे में एक अस्वीकार्य, असहज एवं संकटयुक्‍त विचार (जो कि वास्तविक है) को उसके विपरीत सोचकर अनदेखी करना, जैसे - कंजूस होने के विचार की अनदेखी करने के लिए अत्यधिक उदार बनना।

प्रक्षेपण : अपने अस्वीकृत विचारों एवं गुणों को किसी अन्य पर प्रक्षेपित करना या जिम्मेदार ठहराना जैसे अपनी क्रोध भावना के लिए ट्रैफिक स्थिति या किसी अन्य को उत्तरदायी ठहराना।

विस्थापन : सांवेगिक प्रतिक्रिया को एक व्यक्ति,/स्थिति से दूसरे पर प्रतिस्थापित करना जैसे कार्यस्थल में अधिकारी पर आए गुस्से को जीवनसाथी या बच्चे पर प्रकट करना।

 

फ्रायड ने इस बात पर बल दिया कि प्रारंभिक बाल्यावस्था के अनुभव व्यक्तित्व में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। उसके अनुसार, व्यक्तित्व का विकास पाँच अवस्थाओं में घटित होता है जिसे उन्होंने विकास की मनोलैंगिक अवस्थाएं कहा है जो बच्चों के द्वारा काम प्रवृत्ति की इच्छाओं को संतुष्ट करने के लिए उनकी अचेतन इच्छा द्वारा चिह्िनत की जाती हैं। ये हैं - मौखिक अवस्था (जन्म से 18 महीने तक), युवीय अवस्था (18 महीने से 3 वर्ष तक), लिंयीय अवस्था (३ से 6 वर्ष तक), कामप्रशुप्ति अवस्था (6 से 12 वर्ष तक) तथा जननायीय अक्स्था (12 से 20 वर्ष तक)। इनमें से प्रत्येक अवस्था में, बच्चे की खुशी का स्रोत मुँह, गुदा या जननेंद्रिय जैसे किसी एक वासनोत्तेजक क्षेत्र पर केंद्रित रहता है। मौखिक अवस्था में शिशु माँ का दूध पीकर अपनी भूख को शांत करते हैं, इसलिए वे मुख के साथ खुशी को संबंधित करते हैं। गुदा अवस्था में, उन्हें टॉयलेट के लिए प्रशिक्षित किया जाता है अतः उनका ध्यान गुदा पर रहता है। इसके बाद लिंगीय अवस्था आती है जिसमें बच्चे अपने जननेंद्रियों के बारे में उत्सुक हो जाते हैं। काम प्रसुप्ति अवस्था में, कामेच्छा को दबाया जाता है। अंततः: जननांगीय अवस्था को लैंगिकता, शारीरिक संबंधों और प्रजनन के प्रति परिपक्व एवं स्वस्थ रूचि एवं अभिवृत्ति से चिट्दिनतत किया जाता है। इन पाँच अवस्थाओं से व्यक्ति का आगे बढ़ना व्यक्तित्व के विकास को चिहिनत करता है। बच्चों को एक अवस्था से दूसरी अवस्था में सफलतापूर्वक बढ़ने की आवश्यकता होती है तथा किसी विशेष अवस्था में स्थिर नहीं होना होता है। माता-पिता के द्वारा बच्चों के पालन-पोषण के तरीकों एवं प्रयोग में लाई गई अनुशासनात्मक विधियों के द्वारा एक अवस्था में स्थिरण हो सकता है। उदाहरणार्थ यदि अभिमावक सख्त टॉयलेट प्रशिक्षण अपनाते हैं तब यह बच्चे को उचित अनुशासन के प्रयोग के बजाय एक भिन्न तरीकें से प्रभावित कर सकता है। इसी प्रकार से मौखिक अवस्था में अत्यधिक आसक्ति उसी अवस्था पर बच्चे का स्थिरण हो जाता है; और बच्चा एक वयस्क के रूप में मुख के द्वारा प्रसन्‍नता पाने के प्रति तलाश में रहता है जैसे कि धूम्रपान। इस प्रकार, बच्चा इन मनोलैंगिक अवस्थाओं से कैसे आगे बढ़ता है, वह एक परिपक्व वयस्क व्यक्तित्व के विकास को प्रभावित करता है।

   फ्रायड के सिद्धात की बहुत आलोचना की गई है, विशेष रूप से कामुक इच्छाओं कं प्रति बल देने के कारण। हालांकि, फ्रायड का प्रभाव लाभदायक रहा है और नव-फ्रायडिक के रूप में सामने आया है जिन्होंने फ्रायड के सिद्धांत के कुछ पहलुओं को अस्वीकार करते हुए अचेतन ताकतों की अवधारणा को स्वीकार किया है तथा स्व और सामाजिक पारस्परिक क्रियाओं जैसे बहुत से अन्य प्रभावों को ध्यान में लाए हैं।


Subcribe on Youtube - IGNOU SERVICE

For PDF copy of Solved Assignment

WhatsApp Us - 9113311883(Paid)

Post a Comment

0 Comments

close