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नुक्कड़ नाटक औरत का प्रतिपादय

'औरत' नुक्कड़ नाटक जो भुवनेष्ठवर के द्वारा लिखा गया है, औरत नाटक एक सामाजिक नाटक है जिसमें समाज में औरत की दशा का चित्रण किया गया है। एक बच्ची, बेटी, पत्नी, माँ, शिक्षित स्त्री के रूप में उसे किस तरह की यातनाओं में से गुजरना पड़ता है। औरत को विभिन्‍न रूपों में प्रस्तुत किया गया है। उदाहरण के लिए, घर की छोटी बच्चो और बेटी के रूप में अपने भाई की तुलना में वह भेदभाव झेलती है। पिता के रूढ़िवादी संस्कारों के अनुशासन में वह कैद है। पत्नी के रूप में पति का स्वामित्व उसकी स्वतंत्रता में बाधक है ही। गृहस्थी, बाल-बच्चें, रसोई सबका बोझ ढोंते-ढोते वह अभिशप्त जिंदगी जी रही है। शहरी छात्रा और सुशिक्षित युवती के रूप में एक और जहाँ शोहंदों की छेड्छड़ का उसे मुकाबला करना होता है, वहीं घर के बुजुर्ग और बिरादरी के अंगूठे के नीचे उसे आजादी भी मयस्सार नहीं है। बुढ़िया मजदूरनी के रूप में पूंजीपति के जुल्मोसितम और शोषण का सामना करने को वह विवश है।

   इस नुक्कड् नाटक में स्त्री समुदाय के बारे में पितृसत्तात्मक पुरुष-प्रधान समाज के दृष्टिकोण, वैचारिक संस्कार और दकियानूसी व्यवहार की कलई खोली गई है। भंडाफोड़ के लिए आमतौर पर स्त्रियों के साथ जैसा सलूक होता है उसे घटना के रूप में नाटकीय ढंग से दोहराया गया है और हरेक पहलू की झलकियाँ दिखा दो गई हैं। इसके साथ ही पूंजीवाद समाज के उत्पीड़नमय संसार में मजदूरिन स्त्री की दुर्दशा के आम रूप क्‍या हैं और विशिष्ट रूप क्या हैं, इसे भी दर्शाया गया है।

   स्त्री के साथ की जा रही गैर-बराबरी और उसे शारीरिक उपभोग की वस्तु समझने की पुरूषवादी भावना को सामने लाकर इस आख्थान में क्षोभ, क्रोध, करुणा, व्यंग्य और हास्य का सम्मिलित पुट नाटक को दिलचस्प और रोचक बनाने के साथ-साथ विचारोत्तेजक भी बनाता है।

   “औरत' नाटक को किसी स्त्री विशेष या व्यक्ति के कथा कहना उचित नहीं है बल्कि यह संपूर्ण स्त्री समाज की वास्तविक स्थिति को दर्शाता है।

   'औरत' नुक्कड नाटक कथ्य विचार के रूप में यह है कि औरत के बारे में हमारे समाज का दृष्टिकोण बदलना चाहिए और उसे बराबरी का दर्जा मिलना चाहिए अर्थात्‌ उसकी महत्ता को स्वीकार किया जाना चाहिए । इस विचार को पाठक और दर्शक तक पहुँचाने के लिए पुरूष प्रधान समाज और परिवार के उत्पीड़न की शिकार औरत की व्यथा-कथा, अपमान-उपेक्षा, अन्याय-शोषण को घटना विशेष और परिस्थिति विशेष के माध्यम से चित्रित किया गया है।

   इस नाटक को कई स्तरों में जोड़ा गया है पहले स्तर पर स्त्री के आम उत्पीड़न को ईरानी कविता के माध्यम से साथ अभिनेता और एक अभिनेत्री क्रमवार ढंग से रखते है। दूसरे स्तर पर परिवार के लड़के-लड़की के लिंगगत भेदभाव को वर्णित किया गया है! लड़के को अधिक लाड़ दुलार, पुत्र की इच्छापूर्ण करना, उसे पढ़ाना इत्यादि। लेकिन लड़की को तिरस्कृत करना, शिक्षा, खेल-कूद से वंचित रखना, घर के काम-काज, डँट फटकार से उसका बचपन छीन लेना इत्यादि शामिल है। तीसरे स्तर पर युवावस्था मेंविवाहोपरांत पति की अधीनता में पत्नी यानी औरत की दुःखभरी यंत्रणा। दिन रात घर-गष्टहस्थी में पिसते हुए पति की डौट, मार  और अपमान फिर भी भूखे पेट रहकर भी सबकी सेवा करना।

   यही कथ्य चौथे स्तर पर एक भिन्‍न रूप में इस तरह आता है कि जब औरत अर्थात्‌ लड़की घर की चारदीवारी से निकल कर यदि बाहर आती है, चाहे शिक्षा के लिए ही क्‍यों न जा रही हो तो बाहरी दबावों का जुल्म एवं कॉलेजों के निजी प्रबंधकों की मनमानी उन्हें झेलनी पढ़ती है। और इस तरह बाहर की दुनिया उसकेलिए और अधिक डरावनी कर दी गई है। यही नहीं यदि किसी तरह पढ़-लिख भी लिया तो बेरोजगारी या नौकरी में भेदभाव या यौन-उत्पीड़न की स्थिति।

   पाँचवे स्तर पर मजदर स्त्री के रूप में औरत के आर्थिक शोषण को उजागर किया है कि भरपूर और बराबर की मेहनत करते हुए भी स्त्री मजदूरों को कम वेतन दिया जाता है और स्त्री होने के कारण दुर्व्यवहर भी ज्यादा किया जाता है। यहाँ इसी बिंदु पर नाटक में स्त्री के आम उत्पीड़न के प्रश्न को विशिष्ट रूप में जनवादी अधिकारों के आंदोलन के साथ जोड़ा गया है कि स्त्री पराधीनता से मुक्ति का सवाल जनतांत्रिक अधिकारों के आंदोलन और विकास के साथ ही संभव होगा। शिक्षा का अधिकार और काम का अधिकार ही आजादी के यभ्च को भी प्रशस्त करेगा। सिफारिश, कृपा और भीख माँगने के बजाय संघर्ष की चेतना और संघर्ष का आह्वान ही समानता और उन्नति का बंद द्वार खोल सकेगा।

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