विभिन्नता में एकता लाने का प्रयास भारत सरकार ने मानक देवनागरी लिपि से किया है। लिपि के इस मानकीकरण के लिए केंद्रीय हिंदी निदेशालय ने 1983 और 2006 में 'देवनागरी लिपि तथा हिंदी वर्तनी का मानकीकरण' पुस्तिका प्रकाशित की थी। उक्त पुस्तिका में वर्तनी तथा विराम चिट्दनों के मानक लेखन के बारे में कुछ नियम दिए गए हैं,
वर्तनी
संबंधी अद्यतन नियम इस प्रकार हैं :
1)
संयुक्त वर्ण
क) खड़ी
पाई वाले व्यंजन : खड़ी पाई वाले व्यंजनों का संयुक्त रूप खड़ी पाई को इटाकर ही
बनाया जाना चाहिए, जैसे:
ख्याति, लग्न,
विघ्न व्यास
ख) अन्य व्यंजन
अ) 'क' और 'फ के संयुक्ताक्षर :
संयुक्त, पक्का, दफ़्तर आदि की तरह बनाए जाएँ।
आ) उ. छ, ठ, ठ, ढ, द और ह के संयुकताक्षर इल् चिद्दन लगाकर ही बनाए जाएँ, जैसे :
लदटू
बुड्ढा,
विद्या, चिद्दन, ब्रह्मा
आदि।
(लट्टू बुट्डा, विद्या, चिह्न ब्रह्मा नहीं)।
इ) संयुक्त 'र के प्रचलित तीनों रूप यथावत् रहेंगे। जैसे : प्रकार, धर्म, राष्ट्र |
ई) “र' का प्रचलित रूप ही मान्य हडोगा। इसे थ्र' के रूप में
नहीं लिखा जाएगा। तृ+र के संयुक्त रूप के लिए त्र का प्रयोग सही रहेगा और 'क्र' को 'क' के रूप में नहीं लिखा जाएगा।
उ) इल् चिद्दन युक्त वर्ण बनाने
वाले संयुक्ताक्षर के दृवितीय व्यंजन के साथ ड' की मात्रा का
प्रयोग संबंधित व्यंजन के तत्काल पूर्व ही किया जाएगा, न कि पूरे
युग्म से पूर्व, जैसे: कुटूटिम, द्वितीय,
बुद्धिमान, चिह्नित आदि
(कुट्टिम, द्वितीय, बुद्घिमान, चिद्दिनत
नहीं)
ऊ) संस्कृत में संयुक्ताक्षर पुरानी
शैली से भी लिखे जा सकेंगे :
संयुक्त, विद्या, विद्वान, वृद्ध,
द्वितीय, बुद्धि आदि।
2)
विभविति-चिहन
क)
हिंदी के विभक्ति-चिट्टन सभी प्रकार के संज्ञा शब्दों में प्रातिपदिक से पृथक्
लिखे जाएँ, जैसे - राम ने, राम को,
राम से आदि तथा स्त्री ने, स्त्री को, स्त्री से आदि। सर्वनाम शब्दों में ये चिह्न प्रातिपदिक के साथ मिलाकर
लिखे जाएँ जैसे - उसने, उसको, उससे,
उसपर आदि।
ख)
सर्वनाम के साथ यदि दो विभक्ति-चिट्दन डॉ तो उनमें से पडहला मिलाकर और दूसरा पृथक्
लिखा जाए,
जैसे - उसके लिए, इसमें से।
ग)
सर्वनाम और विभक्ति के बीच 'ही,, 'तक'
आदि का निपात हो तो विभक्ति को पृथक् लिखा जाए, जैसे - आप ह्डी के लिए, मुझ तक को।
3)
क्रियापद
संयुक्त
क्रियाओं में सभी अंगभूत क्रियाएँ पृथक-पृथक् लिखी जाएँ, जैसे – पढ़ा करता है, आ सकता है, जाया करता है, खाया करता है, जा
सकता है, कर सकता है, किया करता है,
पढ़ा करता था, खेला करेगा, घूमता रहेगा, बढ़ते चले जा रहे हैं आदि।
4)
हाइफन
हाइफन
का विधान स्पष्टता के लिए किया गया है।
क)
दूवंदव समास में पदों के बीच हाइफन रखा जाए, जैसे –
राम-लक्ष्मण
शिव-पार्वत्ती-संवाद, देख-रेख, चाल-चलन,
हँसी-मजाक, लेन-देन, पढ़ना-लिखना,
खाना-पीना, खेलना-कूदना आदि।
ख)
सा,
जैसा आदि से पूर्ब हाइफन रखा जाए, जैसे तु
म-सा, राम-जैसा, चाकू-से त्तीखे।
ग)
तत्पुरुष समास में हाइफन का प्रयोग केवल वहीं किया जाए, जहाँ उसके बिना भ्रम होने की संभावना हो, अन्यथा
नहीं, जैसे भू-तत्व। सामान्यत : तत्पुरुष समासों में छाइफन
लगाने की आवश्यकता नहीं है, जैसे-रामराज्य, राजकुमार, गंगाजल, ग्रामवासी,
आत्महत्या आदि।
घ) कठिन संघधियों से बचने के लिए भी हाइफन का प्रयोग किया जा सकता
है,
जैसे
दवि-अक्षर, दृवि-अर्थक आदि।
5)
अव्यय
“तक', 'साथ' आदि अव्यय सदा पृथक् लिखे जाएँ, जैसे-आपके साथ, यहाँ तक। इस नियम को कुछ और उदाहरण
देकर स्पष्ट करना आवश्यक है। हिंदी में आह ओडड, अहा, ऐ, ही, तो, सो, भी, न, जब, तब, कब, यहाँ, वहाँ, कहाँ, सदा, क्या, श्री, जी, तक, भर, मात्र, साथ, कि, किन्तु, मगर, लेकिन, चाहे, या, अथवा, तथा, यथा, और आदि अनेक प्रकार
के भावों का बोध कराने वाले अव्यय हैं। कुछ अव्ययों के आगे विभक्ति चिट्दन भी आते
हैं, जैसे- अब से, तब से, यहाँ से, वहाँ से, सदा से आदि।
नियम के अनुसार अव्यय सदा पृथक् लिखे जाने चाहिए, जैसे-आप डी
के लिए, मुझ तक को, आपके साथ, गज़ भर कपड़ा, देश भर, रात भर,
दिन भर, वड्ड इतना भर कर दे, मुझे जाने तो दो, काम भी नहीं बना, पचास रुपए मात्र आदि । सम्मानार्थक 'श्री' और 'जी' अव्यय भी पृथक् लिखे
जाएँ, जैसे - श्री श्रीराम, कन्हैयालाल
जी, महात्मा जी आदि।
समस्त
पदों में प्रति, मात्र यथा आदि अव्यय पृथक् नहीं लिखे जाएँगे,
जैसे- प्रतिदिन, प्रतिशत, मानवमात्र, निमित्तमात्र, यथासमय,
यथोचित आदि। यह्ड सर्वविदित नियम है कि समास होने पर समस्त पद एक
माना जाता है। अतः उसे विभक्त रूप में न लिखकर एक साथ लिखना ही संगत है।
6)
श्रुतिमूलक 'य', “व
क)
जहाँ श्रुतिमूलक य, व का प्रयोग विकल्प से होता है,
वहाँ न किया जाए, अर्थात् किए-किये, नई-नयी, हुआ-हुवा आदि में से पडले (सकारात्मक) रूपों
का ही प्रयोग किया जाए। यद्ठ नियम क्रिया, विशेषण, अव्यय आदि सभी रूपों और स्थितियों में लागू माना जाए, जैसे दिखाए गए, राम के लिए, पुस्तक
लिए हुए, नई दिल्ली आदि।
ख) जहाँ 'य' श्रुतिमूलक
व्याकरणिक परिवर्तन न होकर शब्द का ही मूल तत्व हो वहाँ वैकल्पिक श्रुतिमूलक
स्वरात्मक परिवर्तन की आवश्यकता नहीं है, जैसे - स्थायी,
अव्ययीभाव, दायित्व आदि। यहाँ स्थाई, अव्यईभाव, दाइत्व नहीं लिखा जाएगा।
7)
अनुस्वार तथा अनुनासिकता-चिहन
(चंद्रबिंदु)
अनुस्वार
(
+ ) और अनुनासिकता चिद्दन (
W ) दोनों प्रचलित रहेंगे।
क) संयुक्त व्यंजन के रूप में जहाँ पंचमाक्षर के बाद सवर्गीय शेष
चार वर्णों में से कोई वर्ण हो तो एकरूपता और मुद्रण, लेखन की सुविधा के लिए अनुस्वार का ही प्रयोग करना चाहिए, जैसे- गंगा, ठंडा, संध्या,
संपादक आदि में पंचमाक्षर के बाद उसी वर्ग का वर्ण आगे आता है,
अतः: पंचमाक्षर के स्थान पर अनुस्वार का प्रयोग होगा (गद्धगा,
ठण्डा, सब्ध्या, सम्पादक
का नहीं)। यदि पंचमाक्षर के बाद किसी अन्य वर्ग का कोई वर्ण आए अथवा वही पंचमाक्षर
दुबारा आए तो पंचमाक्षर अनुस्वार के रूप में परिवर्तित नहीं होगा, जैसे- वाद्मय, अन्य, अन्न,
सम्मेलन, सम्मति, चिन्मय,
उन््मुख आदि।
ख)
चंद्रबिंदु के बिना प्रायः अर्थ में भ्रम की गुंजाइश रहती है, जैसे- इंस : हँस, अंगना : अँगना आदि में। अतएवं ऐसे
भ्रम को दूर करने के लिए चंद्रबिंदु का प्रयोग अवश्य किया जाना चाहिए। किंतु जहाँ
(विशेषकर शिरोरेखा के ऊपर जुड़ने वाली मात्रा के साथ) चंद्रब्िंदु के प्रयोग से
छपाई आदि में बहुत कठिनाई हो और चंद्रबिंदु के स्थान पर बिंदु (अनुस्वार चिद्दन)
का प्रयोग किसी प्रकार का भ्रम उत्पन्न न करे, वहाँ
चंद्रबिंदु के स्थान पर दिंदु के प्रयोग की छूट दी जा सकती है, जैसे- नहीं, में मैं। कविता आदि के प्रसंग में छंद
की दृष्टि से चंद्रबिंदु का यथास्थान अवश्य प्रयोग किया जाए। इसी प्रकार छोटे
बच्चों की प्रवेशिकाओं में जहाँ चंद्रबिंदु का उच्चारण सिखाना अभीष्ट हो, वहाँ उसका यथास्थान सर्वत्र प्रयोग किया जाए, जैसे-
कहाँ, हँसना, आँगन, सँँवारना, आदि।
8)
विदेशी ध्वनियाँ
क)
अरबी-फारसी या अंग्रेजी मूलक वे शब्द जो हिंदी के अंग बन चुके हैं और जिनकी विदेशी
ध्वनियों का डिंदी ध्वनियों में रूपांतर हो चुका है, हिंदी रूप
में ही स्वीकार किए जा सकते हैं, जैसे - कलम, किला, दाग आदि (कलम, किला, दाग नहीं)। पर जहाँ उनका शुद्ध विदेशी रूप में प्रयोग अभीष्ट हो अथवा
उच्चारणगत भेद बताना आवश्यक डो वहाँ उनके हिंदी में प्रथलित रूपों में यथास्थान
नुक्ते लगाए जाएँ, जैसे- खाना : खाना, राज
: राज, डाइफन : डाइफन। सारांश रूप में यट्ट कष्टा जा सकता है
कि अरबी-फारसी एवं अंग्रेजी की मुख्यतः पौँच ध्वनियाँ (क, ग,
ख, ज़ और फ) हिंदी में आई हैं जिनमें से दो (क
और ग) तो हिंदी उच्चारण (क, ग) में परिवर्तित हो गई हैं,
एक (ख) लगभग डिंदी 'ख में खपने की प्रक्रिया
में है और शेष दो (ज़, फ) धीरे-धीरे अपना अस्तित्व खोने /
बनाए रखने के लिए संघर्षरत हैं।
ख) अंग्रेजी के जिन शब्दों में अर्धविवृतत ओ' ध्वनि का प्रयोग होता है, उनके शुद्ध रूप का हिंदी में प्रयोग अभीष्ट डोने पर आ' की मात्रा (1) के ऊपर अर्घ॑चंद्र का प्रयोग किया जाए (ऑ, 1)। जहाँ तक अंग्रेजी और अन्य विदेशी भाषाओं से नए शब्द ग्रहण करने और उनके देवनागरी लिप्यंतरण का संबंध है, अगस्त-सितंबर, 1962 में वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली आयोग दूवारा वैज्ञानिक शब्दावली पर आयोजित भाषाविदों की संगोष्ठी में अंतरराष्ट्रीय शब्दावली के देवनागरी लिप्यंतरण के संबंध में की गई सिफारिश उल्लेखनीय है। उसमें यह कह्ठा गया है कि अंगेजी शब्दों का देवनागरी लिप्यंतरण इतना क्लिष्ट नहीं होना चाहिए कि उसके लिए वर्तमान देवनागरी वर्णों में अनेक नए संकेत-चिद्दन लगाने पड़ें। अंग्रेज़ी शब्दों का देवनागरी लिप्यंतरण मानक अंग्रेजी उच्चारण के अधिक से अधिक निकट होना चाहिए। उसमें भारतीय शिक्षित समाज में प्रचलित उच्चारण संबंधी थोड़े बहुत परिवर्तन किए जा सकते हैं। अन्य भाषाओं के शब्दों के संबंध में भी यही नियम लागू होना चाहिए।
ग) हिंदी में कुछ शब्द ऐसे हैं, जिनके दो-दो
रूप बराबर चल रहे हैं। विद्वत्समाज में दोनों रूपों की एक-सी मान्यता है। फिलडाल
इनकी एकरूपता आवश्यक नहीं समझी गई है। कुछ उदाहरण हैं- गरदन,/ गर्दन, गरमी / गर्मी, बरफ/
बर्फ,
बिलकुल
/ बिल्कूल, सरदी / सर्दी, कुरसी /
कुर्सी, भरती /भर्ती, फुरसत / फुर्सत,
बरदाश्त/ बर्दाश्त, वापिस, वापस, आखीर, आखिर, बरतन/ बर्तन, दोबारा,/ दुबारा,
दूकान,/ दुकान, बीमारी
बिमारी आदि।
9)
हल् चिहन
संस्कृतमूलक
तत्सम शब्दों की वर्तनी में सामान्यतः: संस्कृत रूप ही रखा जाए, परंतु जिन शब्दों के प्रयोग में हिंदी में हल् चिह्न लुप्त हो चुका है,
उनमें उसको फिर से लगाने का यत्न न किया जाए, जैसे
- 'महान',, 'विद्वान' आदि के 'न' में। इसी तरह भगवान,
श्रीमान के /न,/में और जगत्त के /त,/ में इल लगाने की आवश्यकता नहीं है। हाँ यदि कहीं भगवन् श्रीमन् शब्दों
का प्रयोग हो तो हलू अवश्य लगाना चाहिए।
10)
स्वन-परिवर्तन
संस्कृतमूलक
तत्सम शब्दों की वर्तनी में सामान्यतः: संस्कृत रूप डी रखा जाए; हिंदी में 'उऋण' को 'उरिण' में बदलना उचित नहीं डोगा। इसी प्रकार
ग्रह्ठीत, दृष्टव्य, प्रदर्शिनी,
अत्याधिक, अनाधिकार आदि अशुद्ध प्रयोग ग्राहय
नहीं है। इनके स्थान पर क्रमश: गृह्ठीत, द्रष्टव्य, प्रदर्शनी, अत्यधिक, अनधिकार
ही लिखना याहिए। जिन तत्सम शब्दों में तीन व्यंजनों के संयोग की स्थिति में एक
द्वित्वमूलक व्यंजन लुप्त हो गया है उसे न लिखने की छूट है, जैसे-
अर्दघ/अर्ध, तत्त्व,/तत्व आदि।
11)
विसर्ग
संस्कृत
के जिन शब्दों में विसर्ग का प्रयोग होता है, वे यदि तत्सम रूप
में प्रयुक्त हों तो विसर्ग का प्रयोग अवश्य किया जाए, जैसे-
दुःखानुभूति में। यदि उस शब्द के तद्भव रूप में विसर्ग का लोप हो चुका हो तो उस
रूप में विसर्ग के ब्रिना भी काम चल जाएगा, जैसे- 'दुख-सुख के साथी ।
12)
'ऐ', 'औ'
का प्रयोग
हिंदी
में ऐ () औ (1) का प्रयोग दो प्रकार की ध्वनियों को व्यक्त करने के लिए होता है।
पहले प्रकार की ध्वनियाँ 'है', और आदि में
हैं तथा दूसरे प्रकार की "गवैया', 'कौवा' आदि में। इन दोनों ही प्रकार की ध्वनियों को व्यक्त करने के लिए इन्हीं
चिद्दनों (ऐ, " ; औ, 1) का प्रयोग
किया जाए। 'गवस्या',, 'कव्वा' आदि संशोधनों की आवश्यकता नहीं है।
13)
पूर्वकालिक प्रत्यय
पूर्वकालिक
प्रत्यय 'कर' क्रिया से मिलाकर लिखा जाए, जैसे - मिलाकर, आदि।
14)
अन्य नियम
क)
शिरोरेखा का प्रयोग प्रचलित रहेगा।
ख)
फुलस्टॉप को छोडकर शेष विराम आदि चिद्दन वही ग्रहण कर लिए लाएं जो अंग्रेज़ी में
प्रचलित हैं, यथा - (--, ;? !: 5)
(विसर्ग के चिह्न को ही कोलन का चिद्दन मान लिया जाए)
ग) पूर्ण विराम के लिए खड़ी पाई (।
) का प्रयोग किया जाए।
15)
श्रीमति, बधु शब्द गलत है - श्रीमती, वधू शब्द सही है।
Subcribe on Youtube - IGNOU SERVICE
For PDF copy of Solved Assignment
WhatsApp Us - 9113311883(Paid)
1 Comments
upayukt jaankaari
ReplyDeletePlease do not enter any Spam link in the comment box