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स्वर वर्णों की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए |

स्वर वर्णों की विशेषताएं -

  • ·         ये पूर्ण रूप से स्वतंत्र हैं।
  • ·         इनका उच्चारण अवरोध रहित होता है।
  • ·         इनके उच्चारण में अन्य वर्णों की सहायता आवश्यक नहीं।
  • ·         इनका उच्चारण देर तक किया जा सकता है।
  • ·         ये व्यंजन वर्णों क॑ उच्चारण में सहायक होते हैं।
  • ·         स्वर के उच्चारण में ध्वनि पूरे मुख विवर में गूंजती है।

 

जिस तरह स्वरों के लिए कहा गया कि उनका उच्चारण बाघा रहित होता है, इस तथ्य के विपरीत हमें व्यंजन के लिए सर्वप्रथम यह समझना चाहिए कि इनका उच्चारण बाघा रहित नहीं होता। व्यंजन के उच्चारण में मुख से बाहर निकलने वाली वायु के मार्ग में बाधा पड़ती है। दरअसल उच्चारण अवयवों अर्थात्‌ जिहवा एवं निचले ओष्ठ द्वारा मुख के विभिन्‍न उच्चारण स्थलों पर वायु के मार्ग को अवरूद्ध कर इनका उच्चारण संभव होता है। मुख विवर के ऊपरी अंग जिनमें ऊपरी ओष्ठ, दंत एवं वर्त्स, तालु, मूर्धा, कोमल तालु, कंठ एवं स्वर यंत्र हैं। ये उच्चारण स्थल हैं जिन पर उच्चारण अवयव यानी जिहवा एवं निचले ओष्ठ अपने परिचालन द्वारा अवरोध उत्पन्न कर भीतर से आती प्राण वायु को रोकते हैं। यह अवरोध क्षणांश का ही होता है और अवरोध के बाद झटके से हवा मुख विवर से बाहर निकलती है, जिससे उच्चारण संभव हो पाता है। इस कोटि में वर्ण माला के क से लेकर ह तक सभी वर्ण शामिल हैं| इनकी कुल संख्या 33 है। व्यंजन वर्णों के

संबंध में एक अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य यह है कि इनका उच्चारण स्वतंत्र नहीं होता। इनका उच्चारण स्वरों की सहायता से ही संभव हो पाता है। यही नहीं प्रत्येक व्यंजन के उच्चारण में '' स्वर की ध्वनि अप्रत्यक्ष रूप से जुड़ी हुई होती है। '' स्वर के बिना इन्हें उच्चरित नहीं किया जाता। जैसे यदि हम क, , , , या किसी भी अन्य व्यंजन का उच्चारण करते हैं तो वह क+अ-क, ख+अ>, गू+अ>, घृ+अ-घ यानी अ के संयोग से ही उच्चरित होता है। स्वर रहित व्यंजन को हलन्त से प्रदर्शित किया जाता है। हलन्त के लिए मूल व्यंजन (अ स्वर रहित व्यंजन) के साथ उसके नीचे तिरछी रेखा (. ) लगायी जाती है। इस रेखा को हल्‌ कहा जाता है तथा अ स्वर रहित व्यंजन जैसे क्‌, खू ग्‌, घ्‌ को हलन्त कहा जाता है। इस तरह हल्‌ लगाने का अभिप्राय है कि व्यंजन में स्वर वर्ण का पूरी तरह अभाव है। इस तरह के स्वररहित व्यंजन को आधा व्यंजन कहने का भी सामान्य चलन है।

 

उपरोक्त तथ्यों के आधार पर यदि व्यंजन वर्ण को परिभाषित करने का प्रयास किया जाए तो कहा जा सकता है कि व्यंजन उन वर्णो को कहा जाता है जिनका उच्चारण स्वतंत्र न होकर स्वर वर्णों पर आश्रित है एवं जिनके उच्चारण में वायु मुख में किसी न किसी रूप से बाधित होती है।

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