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नौकरशाही की बदलती भूमिका के लिए जिम्मेदार कारकों की चर्चा कीजिये।

राज्य पर वैश्वीकरण का प्रमाव विभिन्‍न रूपों में पड़ा है और इसी के परिणामस्वरूप नौकरशाही की भूमिका में रूपांतरण आया है| राज्य, नियोजन, परामर्श, पस्पर वार्तालाप, संधिकरण व निर्णयन प्रक्रियाओं को जोड़ने का कार्य करता है। ये कार्य शासन के विभिन्‍न सस्‍तरो पर राज्य निर्मित करता है। राज्य गतिविधियों का केंद्र है जो विभिन्‍न क्षेत्रों के कई साझेदारों और पणधारियों को सहयोजित करता है। शोध अध्ययन दर्शाते हैं कि नौकरशाही के आकार और कार्यक्षेत्र को धारा प्रवाह में लाने के लिए और उन्हें बाज़ार शक्तियों तथा नागरिकों के मतों के अनुरूप बनाने के लिए विश्वस्तर पर सुधारात्मक उपायों की शुरुआत की गई है। हक के अनुसार, नौकरशाही की भूमिका : (क) विकासात्मक से प्रबंधकीय, (ख) सक्रिय (अग्रणी) से सहायक, (ग) नाग्ररिक-केंद्रित से उपभोक्ता-केंद्रित में परिवर्तित हो रही है | शैक्षिक साहित्य में नौकरशाही (नौकरशाही) और लोकतंत्र को आमतौर पर समाज के लिए शासन प्रदान करने वाले प्रतिपक्षी (विरोधी) दृष्टिकोण के रूप में देखा जाता है। एक ओर सार्वजनिक नौकरशाही को विशिष्ट रूप से सार्वजनिक या लोक कार्यक्रमों के प्रभावी प्रशासन के लिए अनिवार्यता के रूप में देखा जाता है लेकिन व्यक्तिगत नागरिकों की अभिलाषाओं व माँगों के प्रति अत्यधिक उदासीन और विधिसम्मत सत्ता के रूप में| नौकरशाही शासन के सोपानक्रमिक और सत्तावादी रूपों से भी संबद्ध होती है। मले ही, शासन, सांस्थानिकीकरण और नौकरशाही रूपों के लिए एक हिस्से के रूप में नागरिकों के साथ समाज व्यवहार सुनिश्चित करने के लिए और सार्वजनिक क्षेत्र में उपभोक्ताओं के लिए किए जाने वाले निर्णयों क॑ लिए रिकार्ड और औचित्य प्रदान करने के लिए काम कर रही है।

   शासन का स्वरूप भी परिवर्तित हो रहा है, जो पहले आगतों (निवेश) पर केंद्रित था, अब उत्पादन पर केंद्रित है। नवीन लोक प्रबंधन के अंतर्गत सार्वजनिक क्षेत्र के सुधार उत्पादन कार्यक्रमों से संबद्ध है। निष्पादन प्रबंधन विशेष रूप से निजी क्षेत्र द्वारा किए गए कार्यों को मापने (मूल्यांकन करने) की ज़रूरत पर बल देता है। प्रदान की जाने वाली सेवाओं से नागरिक संतुष्टि को मापना उसी माप का हिस्सा है, यह माप का एक रूप है जो लोगों को सहभागिता की अपेक्षा करता है जो लोकतांत्रिक आगत के रूप में भले ही निष्क्रिय रूप से कार्य कर सकता है | यह परिवर्तन बदले में सूचित करता है कि जवाबदेही लोकतंत्र के लिए ज्यादा केंद्रीय साधन बन गई है। इस प्रकार, नौकरशाडी, सार्वजनिक सहमागिता और लोकतंत्र के लिए एक महत्त्वपूर्ण लोकस (स्थली) बन गया है| प्रभावी और सक्षम संस्थाएँ सफल शासन पद्धति का आधार निर्मित करते हैं। नौकरशाही सामाजिक-आर्थिक विकास और राष्ट्र निर्णय में मुख्य भूमिका निमाता है। हाल ही में, कई कारकों के कारण नौकरशाही की भूमिका में यहुत बड़ा बदलाय आया है। समकालीन संदर्भ में, राज्य की परिवर्तनशील भूमिका के कारण नौकरशाही की रूपरेखा में भारी परिवर्तन हुए हैं। उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण का बढ़ता हुआ प्रभाव, प्रशासनिक समस्याओं में जटिलता का बढ़ना, सूचना-प्रौद्योगिकी और सामाजिक-सांस्कृतिक कायापलट के अंतःप्रवाह से भारतीय नौकरशाही के स्वरूप में काफी परिवर्तन दृष्टिगत हो रहे हैं। फलस्वरूप, अनुक्रियाशील, जवाबदेह और सक्षम प्रशासन की मांग निरंतर बढ़ रही है। नौकरशाही को सहभागिता और जवाबदेही, प्रतिस्पर्धा और दंद्व, प्रयोक्ता और नागरिक के बीच संतुलन बनाए रखना होगा। नौकरीशाही को एक ऐसा उपर्युक्त परिवेश सुनिश्चित करना होगा जिसमें नागरिकों के अधिकार संरक्षित रहे, कानून और व्यवस्था बनी रहे, स्थिरता प्रदान की जाए और लोगों के कल्याण सेवाओं को मजबूत बनाने के लिए सक्षम आघारिक संरचना उपयुक्त हो।

   भारत में राजनैतिक और सामाजिक-आर्थिक मोर्चे पर शासन के समक्ष कई चुनौतियाँ है। इसके अतिरिक्त क्षेत्रीय विषमताएँ, केंद्र-राज्य संबंध से जुड़े मुद्दे में चुनौतियों के अंतर्गत आते है| भारत में नौकरशाही को कुछ विरोधाभास को झेलना पड़ता है। यह क्रियाविधियों से सख्ती से अनुपालन करना और विभिन्‍न दबावों, खींचातानी और हस्तक्षेप के प्रति प्रतिरोध का संयोजन है।

   नौकरशाही भारतीय प्रशासनिक प्रणाली का आधार है। सामाजिक-सांस्कृतिक और आर्थिक परिदृश्य में परिवर्तन से इसका स्वरूप भी परिवर्तित हो रहा है। नवीन लोक प्रबंधन और सुशासन सुधारों के निर्देशों व शासन का परिदृश्य बदल रहा है जिसमें नौकरशाही को ज्यादा पारदर्शी, सक्षम और जवाबदेह बनाने पर बल दिया गया है| नौकरशाही के दायित्वों, नियामक और सेवा कार्य अभिवृद्ध हुए है। समसामयिक शासन चुनौतियों को पूरा करने के लिए नौकरशाही से ज्ञान प्रबंधक की भूमिका निभाने की आशा की जाती है।

   नौकरशाही की भूमिका भिन्‍न-भिन्‍न स्तरों पर भिन्‍न-मिन्‍न होती है। शासन संरचना के शीर्ष-स्तर पर नौकरशाही के कार्य नीति-निर्माण और उपयुक्त कार्यान्वयन कार्यनीतियाँ निर्मित करने से संबंधित होते है। मध्य-स्तर पर नौकरशाही पर्यवेक्षण, समन्यय, नेटवर्किंग और संचार तथा कार्यान्वयन व निष्पादन का निरीक्षण करने के कार्यों को करता है। इसके लिए प्रशासनिक, तकनीकी और मानव-कौशलों का मिश्रण अपेक्षित है। विकास की अग्रणी अवस्था के स्तर पर नौकरशाही को अग्रलक्षी, नवप्रवर्तनशील और उद्यमी होना होगा ताकि सेवाओं को प्रदान कर सकें। संक्षेप में, उभरती हुई शासन चुनौतियों के संदर्भ से नौकरशाही भूमिका से रूपांतरण या बदलाव को निम्नलिखित शीर्षकों के अंतर्गत समझा जा सकता है :

  • ·         वैश्वीकरण का तीव्र गति से बढ़ना |
  • ·         सोशल मीडिया के कारण साइबर अपराध और संचार प्रौद्योगिकी और समस्याओं की तेज गति से वृद्धि।
  • ·         प्रौद्योगिकी से उन्‍नति और सरकारी संचालनों में विशाल स्तर पर डिज़ीटलीकरण |
  • ·         शासन के नए साधन।
  • ·         समाज के बहिष्कृत वर्गों के प्रति ज्यादा जवाबदेही और उत्तरदायित्व की भावना से समावेशी नीतियाँ।
  • ·         सहभागी और नियुक्‍ता (॥989४2०0) शासन अर्थात्‌ नागरिक समाज को बेहतर शासन में संलग्न करना, चूँकि नागरिक शासन की सबसे महत्त्वपूर्ण परिसंपत्तियाँ है।
  • ·         नए कौशलों और क्षमताओं का निर्माण।
  • ·         भीतरी और बाहरी सुरक्षा खतरे।

 

निम्नलिखित के कारण नौकरशाही की भूमिका बहुमुखी है :

  • ·         हितधारियों के हितों को स्पष्ट रूप से व्यक्त करने और जोड़ने वाला।
  • ·         समझौता करने वाला, मध्यस्थ और अधिनिर्णायक।
  • ·         विशेष स्तर, कौशलों और संसाधनों में योगदान देने वाले।
  • ·         नेटवर्क और कार्यनीति-प्रबंधन।
  • ·         अनुक्रियाशील, अभिगम्य और बहु-आयामी जवाबदेही के संवर्धक |

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