लिंग विधान और लिंग परिवर्तन
उदाहरण
के लिए -
(i) पंखा चल रहा है। (ii) घड़ी चल रही है।
(iii) यह बड़ा कमरा है। (iv) यह छोटी मेज है।
उपर्युक्त
वाक्यों में पंखा, घड़ी, कमरा, मेज़ अप्राणिवाचक संज्ञा पद हैं। इनमें 'पंखा', और “कमरा' पुल्लिंग हैं
और 'घड़ी' तथा 'मेज'
स्त्रीलिंग हैं। इसीलिए इनके अनुसार क्रियारूप 'रहा है' और 'रही है' का प्रयोग हुआ है।
इसके
साथ वाक्य (॥) और (४) में पुल्लिग 'कमरा'
के साथ विशेषण रूप 'बड़ा' और स्त्रीलिंग 'मेज' के साथ 'छोटी' का प्रयोग हुआ है। अप्राणिवाचक संज्ञा पदों
में लिंग की पहचान उनके साथ लगने वाली क्रिया और विशेषण पद से ही हो सकती है।
इस
प्रकार शब्द के जिस रूप से पुरुष जाति और स्त्री जाति का बोध हो,
उसे लिंग कहते हैं। हिंदी में दो लिंग हैं - पुल्लिंग और
स्त्रीलिंग। यह बात अवश्य है कि सभी प्राणिवाचक संज्ञाओं का विभाजन पुल्लिंग और
स्त्रीलिंग में नहीं किया जाता है। कुछ संज्ञाएं एकलिंगीय भी होती हैं, चाहे वे नर हाँ या मादा; जैसे -
- ·
केवल पुल्लिग शब्द - चीता,
गीदड़, उल्लू, कौआ,
खटमल, मच्छर।
- ·
कंवल स्त्रीलिंग शब्द -
गिलहरी,
छिपकली, मछली, मैना,
मक्खी, तितली, कोयल।
कभी-कभी
इनके लिंग को स्पष्ट करने के लिए उसके पहले नर या मादा जोड़ दिया जाता है,
जैसे - नर चीता, मादा चीता, नर मैना, मादा मैना।
लिंग
परिवर्तन
संज्ञाओं
के लिंग-विधान के लिए कोई निश्चित नियम तो नहीं हैं। इसका ज्ञान भाषाव्यवहार से ही
होता है। फिर भी कुछ प्रत्ययों को जोड़कर पुल्लिंग के स्त्रीलिंग रूप बनाए जा सकते
हैं। उदाहरण के लिए –
- 1. अकारात
और आकारांत पुल्लिग को ईकारांत कर देने से स्त्रीलिंग रूप बनता है; जैसे :
अ,
आ -ई = देव-देवी, लड़का-लड़की,
घोड़ा-घोड़ी
अ,
आ -इया = बंदर-बंदरिया, चूहा-चुहिया,
बूढ़ा-बुढ़िया, कुत्ता-कुतिया
- 2. व्यवसायबोधक
पुल्लिग शब्दों के अंतिम स्वरों का लोप करके उनमें कहीं 'इन', कहीं 'आइन' और कहीं 'आनी' प्रत्यय लगाकर
स्त्रीलिंग रूप बनाए जाते हैं; जैसे -
अ-
इन = सुनार-सुनारिन, कुम्हार-कुम्हारिन
अ-
आइन = ठाकुर-ठकुराइन, पंडित-पंडिताइन
आ-
आइन = लाला-ललाइन
इ-
इन = माली-मालिन, धोबी-धोबिन
ई--
आईन = हलवाई-हलवाइन
अ- आनी = सेठ-सेठानी, नौकर-नौकरानी]
- 3. कुछ
पुल्लिग शब्दों में अन्य प्रत्यय लगाकर स्त्रीलिंग रूप बनाए जाते हैं;
जैसे -
अ-नी
= मोर-मोरनी, शेर-शेरनी
अ-आ
= अध्यक्ष-अध्यक्षा, प्रियतम-प्रियतमा
अक
- इका = अध्यापक-अध्यापिका, बालक-बालिका
वान, मान-वती, मती = सौभाग्यवान-सौभाग्यवती, श्रीमान्-श्रीमती
- 4. कुछ
पुल्लिग और उनके स्त्रीलिंग रूपों के लिए अलग-अलग शब्द मिले हैं;
जैसे -
पुरुष - स्त्री, आदमी - औरत, राजा - रानी, वर - वधू, माता - पिता।
- 5. कुछ
मूल शब्द स्त्रीलिंग हैं, उनसे पुल्लिग शब्द बनते हैं;
जैसे -
भेड
- भेड़ा,
जीजी - जीजा, भैंस - भैंसा, बहन - बहनोई
अप्राणिवाचक
संझाओं के लिंग-विधान के लिए कोई निश्चित नियम महीं है। परंपरा और कोश से ही लिंग
का निर्धारण किया जाता है। इनके लिंग की पहचान वाक्य के क्रियारूपों से ही होती
है। इसका अनुमान निम्नलिखित संकेतों से किया जा सकता है,
किंतु यह ध्यान में रहे कि ये नियम के रूप में निर्धारित नहीं किए
जा सकते हैं; जैसे -
(i) आकारांत रूप प्रायः पुल्लिंग होते हैं -
कमरा,
पैसा, लोटा, ओला,
चमड़ा, घोड़ा, केला,
हलवा, कोयला, कपड़ा,
झगड़ा, समझौता, बलल्ला,
मेला, किला, जाड़ा।
अपवाद
- कई आकारांत रूप स्त्रीलिंग भी हैं - शोभा, सभा,
ममता, लज्जा, लता आदि |
(ii) ईकारांत संज्ञाएं प्रायः
स्त्रीलिंग होती हैं, जैसे - नदी, रोटी, टोपी, धोती, चमेली |
अपवाद
- कई ईकारांत पुत्लिंग भी हैं - आदमी, पानी,
मोत्ती, घी आदि |
(iii) 'पा. पन, त्व' प्रत्यय से युक्त भाववांचक संज्ञाएं और आकारांत कृदंत पुल्लिग होते हैं;
जैसे - बुढ़ापा, लड़कपन, ममत्व|
(iv) हट-वट
संयुक्त संझञाएं प्रायः स्त्रीलिंग होती हैं -
घबराहट,
कड़वाहट, सजावट, मिलावट
आदि।
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