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अनौपचारिक और औपचरिक पत्र लेखन के भेद को स्पष्ट कीजिए |

 औपचारिक पत्र

औपचारिक पत्र में औपचारिकता का निर्वा्ठ किया जाता है। औपचारिक शब्द के मूल में उपचार शब्द है जिसका शाब्दिक अर्थ व्यवस्था है अर्थात्‌ औपचारिक पत्र में एक प्रकार की व्यवस्था होती है। सामान्यतः: यह पत्र उनको लिखा जाता है जिनसे हमारा व्यक्तिगत संबंध नहीं होता। भाषा सरल, सट्ठज व शिष्ट होती है चाहे शिकायती पत्र ही क्‍यों न लिखा जा रहा हो। औपचारिक पत्रों में भाषा ही नहीं शैली व संरचना का महत्व भी बना रहता है। बड़े-बड़े और क्लिष्ट शब्दों के स्थान पर सरल और बोलने में आसान शब्दों का प्रयोग करना उचित होता है। बहुत अधिक लंबे और जटिल वाक्यों की रचना से प्रभावशीलता कम हो जाती है। पत्र की भाषा का गुण ही उसको प्रभावी बनाता है, साथ ही उस निदेश,/आदेश, संदेश को पाठक तक पहुँचाता है जो लेखक संप्रेषित करना चाहता है।

औपचारिक पत्रों को कई कोटियों में विभकत किया गया है जिनमें से प्रथम है, आवेदन पत्र, माँग पत्र आदि।

 

अनौपचारिक पत्र

इस प्रकार के पत्रों में पत्र लिखने वाले और पत्र पाने वाले के बीच नजदीकी था घनिष्ठ संबंध होता है। यह संबंध पारिवारिक तथा अन्य हो सगे-संबंधियों का भी हो सकता है और मित्रता का भी। इन पत्रों को व्यक्तिगत पत्र भी कहते हैं। इन पत्रों की विषयवस्तु निजी और घरेलू होती है। इनका स्वरूप संबंधों के आधार पर निर्धारित होता है। इन पत्रों की भाषा-शैली प्रायः अनौपचारिक और आत्रीय होती है।

पत्र के अंग

पत्र चाहे औपचारिक हो या अनौपचारिक, सामान्यतः पत्र के निम्नलिखित अंग होते हैं, जैसे-

  • ·         पता और दिनांक
  • ·         संबोधन तथा अभिवादन शब्दावली का प्रयोग
  • ·         पत्र की सामग्री
  • ·         पता की समाप्ति, स्वनिर्देश और हस्ताक्षर

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