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8-13 वीं शताब्दियों में मध्य काल्पनिक वंशावलियों का गठन

दक्‍खन में जिन बहुत से शासक परिवारों ने शासन किया जैसे कल्याणी के चालुक्य, देवगिरि के यादव (सेवूनाज) और बारेंगल के काकतीय, उन्होंने अपने राजनीतिक जीवन का प्रारंभ राष्ट्रकूटों की सम्प्रभुता के अधीन छोटे सामन्‍तों के रूप में शुरू किया था। खयं राष्ट्रकूटों ने आठवीं सदी ई. के पूर्वाद्ध में दंतीदुर्ग के उदय से पूर्व तक मध्य भारत में सामंतों के रूप में शासन किया। राष्ट्रकुट दंतीदुर्ग एवं उसके उत्तराधिकारियों की सफलताओं के फलस्वरूप वे बरार के एक छोटे से वंश से एक क्षेत्रीय शक्ति के रूप में विकसित हुए। इसे एक ऐसे उदाहरण के रूप में प्रस्तुत किया जा सकता है कि किस प्रकार एक छोटे से परिवार ने न केवल अपने आपको एक राजनीतिक शक्ति के रूप में स्थापित किया अपितु एक बड़े राजकीय ढांचे को स्थापित करने में भी सफलता प्राप्त की | प्रारंभिक मध्य कालीन दवखन में शासक वंशों के उदय की प्रक्रियाओं की महत्त्वपूर्ण विशेषताएं यह हैं कि उन्होंने अपनी स्थानीय वंशों को मिथकीय परंपरा या अपने पूर्वजों का संबंध मिथकोय महाकाव्य के नायकों के वंश के साथ जोड़ने का प्रयास किया। राष्ट्रकूटों एवं यादवों ने स्वयं को पौराणिक जयक यदु का वंशज बताया । होयसलों ने भी मूल पुरुष यदु के माध्यम से चंद्र वंशी होने का दावा किया। उन्होंने स्वये को यादव पाना और कहा कि वे यादव राजकुमार कृष्ण की पेराणिक काल्पनिक राजधानी द्वारवती के स्वामी थे। इसी तरह से काकतीय नरेश गणपतिदेव के आध्यात्मिक गुरु, उनका संबंध सूर्यवंशी क्षत्रियों से जोड़ते हैं। काकतीय नोश के एक अभिलेख में काकतीय वंशावली का चित्रण मनु, इक्ष्वाकु, भागीरत, रघु, दशरथ एवं राम की काल्पनिक एवं पौराणिक विवरणों से किया गया है।

 

इस तरह के दावों को इस आधार पर अस्वीकृत कर दिया जाता है कि इनको बाद में जोड़ा गया था। यह सत्य है कि इस तरह के दावों को, जिसकी प्रेरणा मूलतः स्वच्छंद रूप से उन पौराणिक कथाओं से ली गई है जिनकी ऐतिहासिकता को सिद्ध करने के लिए किसी भी तरह के प्रमाण उपलब्ध नहीं है। लेकिन राजनीतिक प्रक्रियाओं के दृष्टिकोण से अपनी वंशावली का उद्भव सूर्य या चंद्र वंश से करना इस दृष्टि से यहत्त्वपूर्ण है कि ये कवि अपने में वास्तविक वंशक्रम को केवल छुपाए हुए हैं बरन्‌ प्रदर्शित करते हैं। उदाहरणार्थ--होयसल पहाड़ी सरदार थे और धीरे-धीरे उन्होंने अन्य पहाड़ी सरदारों पर नियंत्रण स्थापित किया और बाद में वे विस्थापन कर मैदानी क्षेत्रों में आ बसे तथा वहाँ अपनी सत्ता का केंद्र स्थापित किया । काकतीय शुद्र थे परन्तु उन्होंने उच्च प्रतिष्ठा प्राप्त कर अपनी राजनीतिक सत्ता तथा निम्न उत्पत्ति को वैधता प्रदान की । दूसरे शब्दों में, राजनीतिक प्रभुत्व को सामाजिक स्तर के अनुरूप जोड़ना आवश्यक था। कल्याण के चालुक्यों ने इस सामाजिक स्तर को प्राप्त करने के लिए यह दावा प्रस्तुत किया कि उनकी उत्पत्ति उस

पुटठी भर पानो से हुई जिसको ऋषि भारद्वाज ने उठाया था अर्थात्‌ द्रोण ने उठाया था अथवा द्रोण के पुत्र अश्वथामा द्वारा गंगा के जल को उनके हाथ से बहा दिए जाने पर हुई। चूँकि इस काल में क्षत्रिय स्तर शासक वर्ग की बैधता का प्रतीक था, इसी कारणवश गैर क्षत्रिय राजनीतिक शक्तियों ने अपने को इस प्रयास द्वारा बैधता प्रदान करने का प्रयले किया। इस समय में यदु वंश की वैधता सर्वाधिक होने से अधिकतर राज बंशों ने अपनी उत्पत्ति को यदु वंश से चित्रित करना शुरू किया।

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