पूर्व दो (अर्थात, प्रकार्यात्मकवादी पर्सपेक्टिव और संघर्ष पर्सपेक्टिव) के विपरीत इंटरैक्शनिस्ट (सहभागितवादी) परिप्रेक्ष्य, सूक्ष्म ज्ञान में रुचि रखता है कि वास्तविक अन्तःक्रिया में संस्थान कैसी भूमिका निभाते हैं। यह संस्थाओं और रोजमर्रा के व्यवहारोंके ढांचे को कैसे गठित और विशिष्ट बनाता है, इसको अधिगृहीत करना चाहता है। इंटरैक्शनिस्ट परिप्रेक्ष्य का तर्क है कि संस्था हमारे दैनिक अन्तःक्रिया और व्यवहार को फ्रेम[गठित) करते हैं। हमारे दिन-प्रतिदिन की अन्तःक्रिया और व्यवहारों को उन भूमिकाओं और स्थितियों से अनुकूलित किया जाता है जिन्हें हम अनुरूप पाते हैं (और स्वीकार करते हैं), जिन समूहों को हमें नियत किया गया है (और निष्ठा का वादा करते हैं) उन संस्थानों के भीतर हम कार्य करते हैं। शिक्षा की संस्था के भीतर एक शिक्षक विशिष्ट तरीकों से अन्तःक्रिया को फ्रेम करता है। यह केवल शिक्षा की संस्था द्वारा परिभाषित छात्रों, अभिभावकों और अन्य हितधारकों (साझेदारों) की भूमिकाओं के संबंध में समझ बना सकता है। शिक्षा संस्थान विभिन्न भूमिकाओं और स्थितियों से अपने महत्व को प्राप्त करता है, जिसे लोग अपनी दिन-प्रतिदिन की अन्तःक्रिया में सुसंगत तरीके से निभाने और पूरा करने के लिए सहमत होते हैं।
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