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रेडक्लिफ ब्राउन के संरचनात्मक-प्रकार्यात्मक सिद्धांत की चर्चा कीजिए।

 समाजशास्त्र सामाजिक / सांस्कृतिक (सामाजिक-सांस्कृतिक) मानव विज्ञान के बहुत समीपवर्ती विषय है। इन दोनों के मध्य का संबंध इतना घनिष्ठ है कि वर्तमान समय में इनके बीच अंतर बहुत ही कम हो गया है। ऐसे कई प्रतिष्ठित मानवविज्ञानी हैं जो समाजशास्त्र एवं मानव विज्ञान, खास तौर से सामाजिक-सांस्कृतिक मानव विज्ञान के बीच घनिष्ठ संबंधों के पक्षधर हैं। उदाहरण के लिए, फ्रेजर, शायद पहले मानव विज्ञानी है, जिन्होंने सामाजिक मानव विज्ञान के प्रथम प्रोफेसर के रूप में 1908 में अपने उद्घाटन भाषण में यह परिभाषित किया कि “सामाजिक मानव विज्ञान समाजशास्त्र की एक शाखा है जिसका संबंध आदिम समाजों से है” (रैडक्लिफ-ब्राउन, 19522: सी एफ, वोगेट, 1975: 143) | फ्रैज़र के अनुसार, समाजशास्त्र को समाज के सबसे सामान्य विज्ञान के रूप में देखा जाना चाहिए। सामाजिक मानव विज्ञान समाजशास्त्र का एक हिस्सा होगा, जो "मूल अथवा प्रारंभिक चरणों, मानव समाज के प्रारंभिक चरण तक सीमित है। फ्रैज़र ने सामाजिक मानव विज्ञान को जंगली जीवन के अध्ययन तक सीमित करते हुए, मानव जाति के प्रारंभिक इतिहास एवं संस्थानों पर मनोवैज्ञानिक बल देते हुए वेट्ज़ और टेलर के विचारों को प्रतिबिंबित किया।

   रैडक्लिफ-ब्राउन (1983) के मतानुसार सामाजिक मानव विज्ञान 'तुलनात्मक समाजशास्त्र' है। 'तुलनात्मक समाजशास्त्र' शब्द से उनका तात्पर्य यह रहा होगा कि “वह्ठ विज्ञान जो मनुष्य के सामाजिक जीवन की घटनाओं एवं संस्कृति अथवा सभ्यता के अंतर्गत सम्मिलित सभी चीजों ड्वेतु प्राकृतिक विज्ञान की सामान्यीकृत पद्धति को लागू करता है (पृष्ठ 55)। इस तरह उनका विचार है कि सामाजिक मानव विज्ञान को भावसूचक दृष्टिकोण (ideographic approach) (सामान्य वैज्ञानिक तथ्यों एवं प्रक्रियाओं की खोज वह भी सामान्य कानूनों से अलग) के स्थान पर 'नियमान्वेषी' दृष्टिकोण (nomothetic approach) (समाज के सामान्य कानूनों की) की खोज करनी चाहिए। यह “सामान्य कानून” (उपरोक्तानुसार) को स्थापित करने हेतु "एक विशेष घटना या कार्यक्रम” को प्रदर्शित करने की एक पद्धति है। ऐसे कई दूसरे मानवविज्ञानी भी हैं जो लोग उनके विचार से सहमत हैं। उदहारण के लिए, इवान्स-प्रिचर्ड, एक दूसरे प्रसिद्ध मानवविज्ञानी सामाजिक मानव विज्ञान को “सामाजिक अध्ययन की एक शाखा” मानते हैं, वह शाखा जो कि मुख्य रूप से आदिम समाजों के अध्ययन पर बल देती है” (1951:11)। उनका मत है कि “जब लोग समाजशास्त्र की बात करते हैं, तो सामान्य तौर पर वे लोग सभ्य समाजों की विशेष समस्याओं का मन ही मन अध्ययन करते हैं। अगर हम दस अर्थ को शब्द का रूप देते हैं, तो सामाजिक यानव विज्ञान और समाज के बीच का अंतर केवल क्षेत्रानुगत का अंतर है (उपरोक्तानुसार)। ई.ए. होबेल के अनुसार, समाजशास्त्र एवं सामाजिक मानव विज्ञान के बीच संबंध “उनके अर्थ की व्यापकता और एकरुपता है।" दोनों के दोनों सामाजिक अंतर-संबंधों का अध्ययन हैं, अर्थात मनुष्य का मनुष्य के साथ संबंध” (1958:9) | लुसी मैयर (1965) और कई दूसरे मानवविज्ञानी सामाजिक मानव विज्ञान को समाजशास्त्र की 'शाखा' मानते हैं।

   यद्यपि समाजशात्र से पहले मानव विज्ञान (मौतिक मानव विज्ञान सहित एकीकृत मानव विज्ञान) का प्रादुर्भाव हुआ और शुरुआत से ही इन दोनों के विषय वस्तुयों में खास तौर से सामाजिक-सांस्कृतिक मानव विज्ञान के बीच अंतर करना बहुत ही कठिन था। जहाँ मानव जाति एवं उससे संबंधित पहलुओं के समग्र अध्ययन के रूप में मानव विज्ञान को बनाया गया वहीं अगस्ट कॉम्टे ने यह भी माना है कि समाजशास्त्र मानव समाज का गहन अध्ययन होगा, और इस कारण समाजशास्त्र को “सभी विज्ञानों की रानी" कहा जाना चाहिए। मानव विज्ञान एवं समाजशास्त्र ने भी प्राकृतिक विज्ञान के महत्वपूर्ण तत्वों को किसी न किसी तरीके से आत्मसात करते हुए खुद को स्थापित किया, हालांकि मानव विज्ञान (एकीकृत मानव विज्ञान) की विषय-वस्तु ने खास तौर से भौतिक मानव विज्ञान एवं पुरातात्विक मानव विज्ञान के घटकों के कारण भौतिक विज्ञान के साथ इसके संबंध के कारण समाजशास्त्र की सीमा को पार किया है। यहां तक कि जब समाजशास्त्र एवं सामाजिक-सांस्कृतिक मानव विज्ञान के विषय स्थापित किये गए थे तब भी उनके बीच संबंध मौजूद थे। ये संबंध मुख्य रूप से उनकी विषय वस्तु एवं पद्धति में समानता के कारण हैं। फ्रेड डब्ल्यू वोगेट (1975) के अनुसार, समाजशास्त्र एवं मानव विज्ञान (खास तौर से सामाजिक-सांस्कृतिक मानव विज्ञान) के बीच का अंतर व्यापकता, अक्धारणा एवं विधि के स्तर के स्थान पर अनुप्रयोग स्तर पर अधिक है। वे कहते हैं कि:


प्रक्रियात्मक अंतर जिनके द्वारा प्रारंभिक समाजशास्त्रियों ने मानव विज्ञान एवं समाजशास्त्र को एक दूसरे से अलग करने और जोड़ने का प्रयास किया उससे संबंधित विषयों का ऐतिडासिक विकास हुआ। मानव विज्ञान एवं समाजशास्त्र दोनों विषयों ने विज्ञान, संयुक्त विवरण और सामान्यीकरण के मॉडल का अनुसरण किया । इन दोनों विषयों के बीच व्यावहारिक अंतर उस समय आया जब उनके संबंधित प्रतिपादकों ने फील्डवर्क शुरू किया (वोगेट, 1975: 144)

 

सच्चाई यह है कि कई ऐसे विश्वविद्यालय एवं कॉलेज थे जहां विश्व के कई विश्वविद्यालयों में एक ही विभाग में समाजशास्त्र एवं सामाजिक मानव विज्ञान मौजूद थे। 20वीं शताब्दी की शुरुआत में इन दोनों के संबंधित शैक्षिक विषयों की स्थापना के साथ उनके बीच अंतर अधिक दिखाई देने लगा। वर्तमान समय में यह संबंध और भी घनिष्ठ हो रहा है जिसके चलते विषय आधारित चारदीवारी के रखरखाव के बावजूद भी दोनों के बीच अंतर करना मुश्किल हो रहा है। इन दोनों विषयों का संबंध इनकी अवधारणाओं का एक दूसरे में उपयोग की आवश्यकता एवं समान सैद्धांतिक एवं अनुसंधान समस्याओं तथा उनके निष्कर्षों की जरुरत की वजह से भी है। सच्चाई यह है कि इन दोनों विषयों को अपने आप को मजबूत करने और समाज के अध्ययन की व्यापकता हेतु न्याय करने के लिए एक-दूसरे की जरूरत है ।

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