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सिद्धि हेतु स्वामी गए, यह गौरव की बात, पर चोरी-चोरी गए. यही बड़ा व्याघात, सखी. वे मुझसे कह कर जाते कह, तो क्‍या मुझसे वे अपनी पथ-बाधा ही पाते ?

 2. सिद्धि हेतु स्वामी गए, यह गौरव की बात,

   पर चोरी-चोरी गए. यही बड़ा व्याघात,

   सखी. वे मुझसे कह कर जाते

   कह, तो क्‍या मुझसे वे अपनी पथ-बाधा ही पाते ?

उत्तर – सन्दर्भ – यह पंक्ति गुप्तजी द्वारा रचित “यसोधरा” से ली गयी है| सिद्दार्थ गौतम सिद्धि प्राप्त करने के लिए जब अपनी पत्नी यशोधरा और पुत्र राहुल को निंद्रावस्था में छोडकर वैन में चले गये| उसके पश्चात यासोधरा इस प्रसंग से अत्यंत दुखी होकर सखी से अपने मन की बात कह रही है|

व्याख्या – सिद्धार्ट गौतन जीवन की सत्य की खोज में संसार सुखो की त्याग करके वैन में चले गये| जन कल्याण हेतु उनका सत्य की खोज में चले जाना नीचे hi गौरव और अभिमान की बात है| परन्तु यशोधरा कह रही है की we उससे छुपकर गये हैं इसलिए उसे बहुत दुःख हुआ| वह सखी से कहती है की यदि गौतम उससे अनुमति लेकर जाते तो वह उन्हें रोक नही लेती न hi उनके मार्ग की बाधा बनती, यशोधरा की वेदना यही है की उस पर विश्वास नही किया गया और उसे भी पथ की बाधा hi माना गया| यह बात यशोधरा के मन पर यह बात यशोधरा मन पर बहुत बड़ा आघात क्र गयी है|

विशेष – इन पंक्तियों में कवि ने उस मध्युगीन दृष्टी पर प्रश्न चिन्ह लगया है जो स्त्री को मुक्ति अथवा सिद्धि मार्ग में बाधा मानती है| इस प्रकार स्त्री को पुरुष से हिन् मानने की मनोवृति का खंडन किया है और नारी जागरण तथा नारी आत्म सम्मान की आदुनिक दृष्टी प्रस्तुत की गयी है| उपेछित नारी सम्मान की प्रतिष्ठा के उद्देश्य से ही गुप्त जी ने इस काव्य रचना के केंद्र में यशोधरा को रखा है|

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