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गुप्त काल के पश्चात के राज्य

5वीं शताब्दी के अंत के दौरान गुप्त साम्राज्य का बिखराव शुरू हो गया था। शाही गुप्तों के समाप्त होने के साथ साथ मगध और इसकी राजधानी पाटलिपुत्र ने भी अपना महत्व खो दिया था। इसलिए, गुप्त काल के बाद की अवधि प्राकृतिक लिहाज से बहुत अशांत थी। गुप्तों के पतन के बाद उत्तर भारत में पांच प्रमुख शक्तियां फैल गयी थी। ये शक्तियां निम्नवत् थी:

हूण: हूण मध्य एशिया की वह दुर्लभ प्रजाति थी जिसका आगमन भारत में हुआ था। कुमारगुप्त के शासनकाल के दौरान, हूणों ने पहली बार भारत पर आक्रमण किया था। हालांकि, कुमारगुप्त और स्कन्दगुप्त राजवंश के दौरान वे भारत में प्रवेश करने में सफल नहीं हो सके थे। हूणों ने तीस साल की एक बेहद ही कम अवधि के लिए भारत पर राज किया था। हूणों का वर्चस्व उत्तर भारत में स्थापित हुआ था। तोरामन उनका एक सर्वश्रेष्ठ शासक था जबकि मिहिरकुल सबसे शक्तिशाली और सुसंस्कृत शासक था।

मौखरि: पश्चिमी उत्तर प्रदेश में कन्नौज के आसपास के क्षेत्र पर मौखरियों का कब्जा था। उन्होंने मगध के कुछ हिस्से पर भी विजय प्राप्त की थी। धीरे-धीरे उन्होंने बाद में गुप्तों को सत्ताविहीन कर दिया और उन्हें मालवा जाने के लिए मजबूर कर दिया।

मैत्रक: शायद अधिकांश मैत्रक ईरानी मूल के थे और वल्लभी के रूप में राजधानी के साथ गुजरात के सौराष्ट्र क्षेत्र में शासन किया। भटरक के मार्गदर्शन में वल्लभी शिक्षा, संस्कृति और व्यापार तथा वाणिज्य का केंद्र बन गयी थी। इसने सबसे लंबे समय तक अरबों से रक्षा की थी।

पुष्यभूति: थानेश्वर (दिल्ली का उत्तरी भाग) पुष्यभूति की राजधानी थी। प्रभाकर वर्धन इस वंश का सबसे विशिष्ट शासक था जिसने परम भट्टारक महाराजाधिराज की पदवी धारण की थी। उसका मौखरियों के साथ एक वैवाहिक गठबंधन था। वैवाहिक गठबंधन ने दोनों साम्राज्यों को मजबूत बनाया था। हर्षवर्धन इसी गोत्र से संबंध रखते थे।

गौड: गौड़ों ने बंगाल के एक क्षेत्र पर शासन किया और बांकि चार साम्राज्य काफी कम प्रसिद्ध थे। शशांक इनका सबसे शक्तिशाली और महत्वाकांक्षी शासक था। उसने मौखरियों पर आक्रमण कर ग्रहवर्मन की हत्या कर दी थी तथा राज्यश्री को हिरासत में ले लिया था।

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