कर्पूरी ठाकुर फार्मूले के अंतर्गत ओ.बी.सीज. कोटा को विभाजित करके उसे विभिन्न समुदायों में उप-विभाजित किया गया। इस वर्गों को अति पिछड़ा की श्रेणी में रखा गया। इस फार्मूले को को कर्पूरी ठाकुर के नाम पर रखा गया जो बिहार के मुख्यमंत्री थे और उन्होंने 1970 के दशक में ओ.बी.सी. के लिए आरक्षण शुरू किया।
अन्य पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण के प्रावधानों की सीमाएऐं हैं। इनमें से प्रमुख सीमाएँ इस प्रकार है:- पिछड़ें वर्गों की जातियों का एक समूह है, जिनके सामाजिक, आर्थिक, शैक्षणिक और राजनीतिक स्तर असमान हैं। अन्य पिछड़े वर्गों में राजनीतिक और आर्थिक रूप में प्रभावशाली कृषि समुदाय जैसे यादव, कर्मी, जाट, बोकालिण्गा, गुर्जर इत्यादि शामिल है तथा सामाजिक रूप से उपेक्षित जातियां भी थी जो “जजमानी व्यवस्था” से जुड़ी थी, जिन्हें हम अति पिछड़े वर्ग (एम.बी.सी.) के रूप में भी जानते हैं।
हालांकि इनमें बड़ी संख्या में जातियां है, लेकिन एकल जातियों की तुलना में उनकी संख्या बहुत कम है। अति पिछड़े वर्गों का आरोप है कि अपनी प्रबल स्थिति के कारण; किसान जातियाँ या मध्यम जातियों अन्य पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण का उपयुक्त बड़ा हिस्सा प्राप्त करने में सफल रही है। उनकी यह माँग है कि अन्य जातियों के कोटा को विभिन्न जातियों में विभाजित किया जाये। इसकी मांग उत्तर प्रदेश जैसे राज्य में उठाई जाने लगी। कर्पूरी ठाकुर सूत्र का सुझाव था कि कोटे को उप-विभाजित किया जाये। जब कर्पूरी ठाकुर बिहार के मुख्यमंत्री थे, 1970 में उन्होंने पिछड़े वर्ग को अत्यंत पिछड़े वर्ग, अत्यंत पिछड़ा वर्ग (ई.बी.सी.) के नाम से विभाजित करके आरक्षण की शुरुआत की थी।
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