व्याख्या-कवि कहता है कि हमारे मजदूर और
किसान दिन-रात कड़ी मेहनत कर जो कुछ पैदा करते हैं, उससे सबका
जीवन चलता है परंतु उनकी मेहनत का फल उन्हें ही नहीं मिलता। शोषक पूँजीपति न तो
स्वयं मेहनत करता है और न ही मेहनत करने बालों को उनका हक देता है। वह अपने धन के
बल पर मजदूरों का शोषण करता है। उसे किसी के दुख-दर्द से कोई लेना-देना नहीं है,
उसका लक्ष्य केबल ज्यादा से ज्यादा धन कमाना है। शोषक पूँजीपति का
यह शोषण आम जनता को भी दिख रहा है और हमारी सरकार को चला रहे राजनेताओं को भी.
लेकिन वे सब चुप हैं क्योंकि वे स्वयं स्वार्थ और भ्रष्टाचार में लिप्त हैं। बे
शोषक पूँजीपतियों का शोषण में पूरा साथ देते हैं। आम आदमी सब कुछ चुपचाप सह रहा है
और हमारी संसद उसकी दयनीय हालत पर मौन बैठी है।
विशेष- 1. प्रतीकात्मक एवं सांकेतिक भाषा
है, जो सामान्य पाठक के लिए कुछ कठिन है।
2. बचन वक्रता है
3. मार्क्सवादी विचारधारा का प्रभाव है।
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