प्रसंग-प्रस्तुत काव्यांश जयशंकर प्रसाद की “आँसू” से अवतरित है| जीवन में प्रत्येक अभिलाषा को पूरी करने के लिए संघर्ष करना पड़ता है और उसमें असफल होने पर व्यक्ति चिंता, दुःख, असंतोष और कुण्ठा से पीड़ित होता है। आँसू इस प्रकार की प्रेमभावनाओं की चरम परिणति है। आँसू का संपूर्ण महत्व कवि के करुणाकलित हृदय से मुखरित विफल रागिनी में देखा जा सकता है। आँसू में कवि ने लौकिक-ग्रेम की व्यक्तिगत विरहानुभूति को अभिव्यक्त किया है।
व्याख्या- आँसू का मुख्य भाव विरह-श्रंगार
है। आँसू का आधार असीम व्यक्ति है, जिसके मिलन सुख की
स्मृति ने कवि के हृदय में वेदना-लोक की सृष्टि की है। कवि के हृदय में प्रिय की
स्मृतियों की एक बस्ती ही बस गई है। उनके हृदय में विरह की आग जल रही है|
कवि को अपनी प्रिया की लज्जा की याद आती है। कवि के मन के निर्मल
आकाश में प्रियतम की मधुर स्मृतियों का झंझावात आकर चलने लगता है। प्रियतम की मधुर
स्मृतियों ने आकर कवि के हृदय में एक वेदना विहल कोलाहल भर दिया है। आँसू के नायक
को दुर्दिन में अपने गत वैभव-विलास पूर्ण जीवन का स्मरण हो आता है, उसकी प्रेयसी की मदमाती छवि उसकी आँखों में बस जाती है। उसे याद आता है,
मानो हाफिज़ के शब्दों में माशूकों के जयाव में सम्नाट एक ही थ।
गिनती में वे हजारों थे मगर उसके दिल कोचुराने वाला एक ही था| स्मृति के जागृत
होते ही वह उदास हो जाता है। अपने प्रिय के प्रथम आममन-प्रथम परिचय की अवस्था को
रह-रहकर बिसूरने लगता है। कभी वह सोचता है, वह इस पृथ्वी की
न थी, स्वर्गीय आभा थी, जो उससे मिलने
को नीचे आई थी। वह प्रियतम का मधुर, लजानेवाला मुख देखते ही
उसकी ओर खींच गया था। प्रिय का सौंदर्य उसके शून्य-हृदय को आत्म-विभोर कर देता है
तभी वह एकदम उसके साथ एक होकर कहने लगा था|
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