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मानव अधिकार और नेसर्गिक अधिकारों पर नोट लिखिए।

“मानव अधिकार” शब्दावली का प्रयोग बीसवीं शताब्दी में किया गया। पहली शताब्दियों मेंअधिकारों के संदर्भ में प्रचलित शब्द "प्राकृतिक अधिकार” अथवा “व्यक्ति के अधिकार” थे। “प्राकृतिक अधिकारों के सिद्धान्त की उत्पन्ति सत्रहवीं शताब्दी में ग्रोशियस, हॉब्स तथा लॉक की रचनाओं में हुई जिन्होंने प्राकृतिक अधिकारों का आधार प्राकृतिक कानून बताया जिसके अनुसार, “किसी भी व्यक्ति को दूसरे के जीवन, स्वास्थ्य, सम्पत्ति तथा सम्पदा को नुकसान नहीं पहुँचाना चाहिए। यह प्राकृतिक कानून प्रत्येक व्यक्ति को जीवन, स्वतंत्रता तथा सम्पत्ति का प्राकृतिक अधिकार प्रदान करता है हालाँकि यह दूसरे व्यक्तियों के जीवन, स्वतंत्रता तथा सम्पत्ति का सम्मान करने का प्राकृतिक कर्त्तव्य निभाने के लिए भी कहता है। इस सिद्धान्त की सर्वोत्तम अभिव्यक्ति जॉन लॉक की पुस्तक दी दू ट्रीटाइसिस ऑन यवर्नमेंट है - में मिलती हैं। लॉक ने जीवन, स्वतंत्रता तथा सम्पत्ति के अधिकारों को प्राकृतिक अधिकार की संज्ञा दी।

इसी तरह 1776 में स्वतंत्रतां के अमरीकी घोषणापत्र में भी घोषित किया गया कि “यह एक स्वयंसिद्ध सत्य है कि सभी व्यक्ति समान पैदा हुए हैं तथा सृष्टिकर्त्ता ने उन्हें कुछ अदेय अधिकार प्रदान किए हैं जिनमें जीवन, स्वतंत्रता तथा सुख क़ी प्राप्ति प्रमुख है।" इसी तरह 1789 में फ्रांस के मानव और नागरिक अधिकार घोषणापत्र में व्यक्ति के अधिकारों की प्राकृतिक अहस्तारणीयता तथा अदेयता की एक बार फिर पुष्टि की गई। संक्षेप में इन सभी में इन अधिकारों का औचित्य एक व्यक्ति होने के नाते दिया गया न कि किसी राज्य का नागरिक होने के नाते।

सत्रहवीं तथा अठारहवीं शताब्दी की प्राकृतिक अधिकारों से सम्बन्धित घोषणाओं का बीसवीं शताब्दी में संयुक्त राष्ट्र द्वारा घोषित मानव अधिकार घोषणापत्र तथा इनसे सम्बन्धित कई अन्य समझौतों तथा अभिसमयों के माध्यम से और विस्तार किया गया। इस तरह मानव अधिकार पुराने प्राकृतिक अधिकारों के सीधे उत्तराधिकारी हैं। द्वितीय विश्व युद्ध के तुरंत बाद नवनिर्मित संयुक्त राष्ट्र द्वारा घोषित किए गए मानव अधिकार युद्ध के दौरान हिटलर के फासीवादी शासन द्वारा किए गए नरसंहार के विरुद्ध तीखी घृणा भी थी। इस घृणा के परिणामस्वरूप युद्ध के बाद विजयी देशों ने कई जर्मन नेताओं के ऊपर उन अपराधों के , लिए मुकदमें चलाए जिनका राष्ट्रों की कानून की किताबों में कोई वर्णन नहीं था परन्तु जो अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय के फैसलों पर आधारित थे। इन अपराधों को “मानवता के विरुद्ध अपराध" का नाम दिया गया । न्यूम॑बर्ग मुकदमें ने इतिहास में पहली बार यह निर्धारित किया कि यदि मूल मानवतावादी मूल्यों की सुरक्षा करने वाले अन्तर्राष्ट्रीय कानूनों तथा किसी राज्य विशेष के कानून में विरोधाभास हो तो प्रत्येक व्यक्ति का कर्त्तव्य है कि वह राज्य के कानून का उल्लंघन करें। न्यूम॑बर्ग मुकदमों के कानूनी ढाँचे ने सैनिक अनुशासन के सिद्धान्त को चुनौती दी तथा राष्ट्र की प्रभुसत्ता की धारणा पर भी प्रहार किया। तथापि समकालीन अन्तर्राष्ट्रीय कानून न्यूरमबर्ग न्यायालय के निर्णय को स्वीकार करता है तथा शान्ति एवं मानवतावाद के विरुद्ध किए गए अपराधों को सर्वोच्च शक्ति की आज्ञापालन के नाम पर रद्द करता है। भविष्य के लिए एक मानदण्ड स्थापित करने के लिए 1948 में संयुक्त राष्ट्र ने मानव अधिकारों का सार्वमौमिक घोषणापत्र तैयार किया जिसमें बाद में दो प्रसंविदाएं जोड़ी गईं एक आर्थिक-सामाजिक-सांस्कृतिक अधिकारों पर तथा दूसरा नागरिक एवं राजनीतिक अधिकारों पर। इस घोषणापत्र तथा प्रसंविदाओं को लगभग सभी सदस्य राज्यों ने स्वीकार कर लिया है।

इस प्रकार दो विश्व युद्धों के अंतराल में पनपे सर्वश्रधिनायकवाद तथा द्वितीय विश्व युद्ध की विभीषिका से निकल कर युद्धोत्तर अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय ने सार्वभौमिक घोषणापत्र के माध्यम से लोगों के अधिकारों की सुरक्षा का बीड़ा उठाया है। इस घोषणापत्र को आधार बनाकर विभिन्‍न देशों के अपने नागरिकों के प्रति व्यवहार की जाँच की जा सकती है।

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