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क्या आप ऐसा सोचते हैं कि पंथनिरपेक्षता का भारतीय समझ पंथनिरपेक्षता की सामान्य समझ से भिन्न है? अपने उत्तर के समर्थन में तर्क दीजिए।

 हां, मुझे लगता है कि धर्मनिरपेक्षता की भारतीय समझ धर्मनिरपेक्षता की सामान्य समझ से अलग है। मेरे उत्तर के समर्थन में तर्क इस प्रकार है:

ऐतिहासिक रूप से, चर्च और राज्य के विभाजन के संदर्भ में यूरोप में धर्मनिरपेक्षता की उत्पत्ति हुई। धर्मनिरपेक्षता की पश्चिमी समझ धर्म और राज्य को पूरी तरह से अलग करने के विचार पर आधारित है, इस प्रकार धर्म को पूरी तरह से व्यक्तिगत मामला माना जाता है। इसके विपरीत, धर्मनिरपेक्षता की भारतीय समझ सर्व धर्म समभाव (सभी धर्मों के लिए समान सम्मान) के विचार पर आधारित है, जो भारत में धर्मों की विविधता को पहचानता है और उनका सम्मान करता है।

इसके अलावा, भारतीय संविधान अनुच्छेद 25-28 के तहत धर्म की स्वतंत्रता के अधिकार को मान्यता देता है और उसकी रक्षा करता है। यह अनुच्छेद 15 के तहत धर्म के आधार पर भेदभाव पर भी रोक लगाता है और अनुच्छेद 1 के तहत एक धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक गणराज्य की स्थापना करता है। इस प्रकार, धर्मनिरपेक्षता की भारतीय अवधारणा केवल धर्म और राज्य को अलग करना नहीं है, बल्कि यह एक समावेशी और बहुलवादी दृष्टिकोण भी है जो व्यक्तिगत धार्मिक विश्वासों की स्वतंत्रता की गारंटी देता है।

इसके अलावा, भारतीय धर्मनिरपेक्षता केवल धार्मिक स्वतंत्रता की सुरक्षा तक ही सीमित नहीं है, बल्कि इसमें अंतर-धार्मिक सद्भाव और विभिन्न धर्मों के प्रति सम्मान को बढ़ावा देना भी शामिल है। इसे भारतीय संविधान की प्रस्तावना में देखा जा सकता है, जिसमें 'धर्मनिरपेक्ष' और 'समाजवादी' शब्द शामिल हैं जो सभी धर्मों की समान भागीदारी और सामाजिक समानता के महत्व को रेखांकित करते हैं।

अंत में, धर्मनिरपेक्षता की भारतीय समझ धर्मनिरपेक्षता की पश्चिमी समझ से अलग है। धर्मनिरपेक्षता की भारतीय अवधारणा में न केवल धर्म और राज्य को अलग करना शामिल है, बल्कि सभी धर्मों के लिए समानता और सम्मान, सामाजिक सद्भाव और लोकतांत्रिक मूल्यों को बढ़ावा देना शामिल है।

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