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निर्मला ज्योंही द्वार पर पहुँची उसने सुधा को ताँगे से उतरते देखा। सुधा उसे देखते ही जल्दी से उतरकर उसकी ओर लपकी और कूछ पूछना चाहती थी, मगर निर्मला ने उसे अवसर न दिया, तीर की तरह झपटकर चली।

 (क) निर्मला ज्योंही द्वार पर पहुँची उसने सुधा को ताँगे से उतरते देखा। सुधा उसे देखते ही जल्दी से उतरकर उसकी ओर लपकी और कूछ पूछना चाहती थी, मगर निर्मला ने उसे अवसर न दिया, तीर की तरह झपटकर चली। सुधा एक क्षण तक विस्मय की दशा में खड़ी रही। बात क्या है, उसकी समझ में कुछ न आ सका। वह व्यग्र हो उठी। जल्दी से अन्दर गई महरी से पूछने कि क्‍या बात हुई है। वह अपराधी का पता लगायेगी और अगर उसे मालूम हुआ कि महरी या और किसी नौकर ने उसे कोई अपमान-सूचक बात कह दी है तो वह उसे खड़े-खड़े निकाल देगी। लपकी हुई वह अपने कमरे में गई अन्दर कदम रखते ही डॉक्टर साहब को मुँह लटकाये चारपाई पर बैठा देखा।

उत्तर – सन्दर्भ:- प्रस्तुत पाले निर्माणा उपन्यास पे लिया गया है। इसके उपन्यासकार प्रेमचन्द्र जी है। इन पंकियो मे जब निर्मली एक दिन सुधा से मिलने उसके घर जाती है, पर उसकी मुलाकात सुधा से नहीं हो पाती है। क्योंकि वह उस समय गंगा स्नान के लिए गई होती है। इधर डॉकर साहब अवसर पाकर निर्मला से प्रणय निवेदन कर बैठते हैं इस अनुचित व्यवहार से निर्मला वापस घर लॉट आती है। तभी इस कथन का वर्णन किया गया है।

व्याख्या :- जब डॉक्टर साहेब अवसर पाकर निर्मला से प्रणय निवेदन कर बैठते है तो निर्मला इस अनुचित व्यवहार से वह घर जाना चाहती थी जिसे ही वहू द्वारा पर पहुँची है, वह देखती है कि सुरक्षा ताँगे से उतर रही है। सुधा भी उसे देखी और जल्दी से उतर कर उसकी ओर ही गई।। वह उससे कुछ पहुँ पूछना चाहती थी। पर निर्मला को डॉक्टर साहब के व्यवहार के कारण उसे का दुख लगा था जिस कारण वह सुधा को मौका ही नहीं दिया वह चुप से आगे बढ़ गई। सुधा को निर्मला की इस व्यवहार समझ नहीं आयी। क्योंकि निर्मला उसे अवसर ही नहीं दिया।

(ख) मुझे वहाँ थोड़ी देर खड़ा रहना भी अस॒ह्य हो गया। मुझसे कुछ भी नहीं बोला गया। बुआ के गले से लगकर मैं यहाँ थोड़ा रो लेता तो ठीक होता। पर वह संभव न हुआ। मैं दबे पाँव लौट आया। वष् दिन था कि फिर युआ की हँसी मैंने नहीं देखी। इसके पौँच-छह महीने बाद युआ का ब्याह हो गया। मैंने जल्दी-जल्दी तत्परता के साथ सब व्यवस्था कर दी। बुआ का उसी दिन से पढ़ना छूट गया था। वह उस दिन से सीने-पिरोने, झाड़ने-बुह्ारने और इसी तरह के और कामों में शांत भाव से लगी रहती थीं। काम करते रहने के अतिरिक्त उन्हें और किसी बात से मतलब न था।

उत्तर – संदर्भ:- प्रस्तुत गंधाश जैनेन्द्र के उपन्यास त्याग-पत्र से लिया गया है। प्रस्तुत प्रकरण में जब पहली बार माँ ने बुआ को बैट से मारा था उस पर प्रमोद की निष्क्रिय संवेदना का वर्णन किया गया है। और इसका गहरा सम्बन्ध अपराध बोध से है।

व्याख्या:- जब प्रमोद की माँ को यह पता चल्रता है कि शीला के भाई से मृणालु के शारीरिक सम्बन्ध बन गए है। इस कारण जब माँ ने बुआ को बैट से मारा, तब प्रमोद ने उसे दुहराने का कोई प्रयास नहीं किया। वह चुपचाप मार खाती रही। अन्याय को बिना प्रतिरोध के स्वीकार कर लिया। मानो यही उसकी नियत है। मानों यही उसकी नियत है। प्रमोद की मौ से मार स्थाने के बाद भी वह दिन था कि फिर बुआ की हँसी मैने नहीं देखी। बाद में प्रमोद उसके कमरे मे जाकर देखता है कि बुआ औधी पड़ी हुई है उसको स्पेय महसूस हुआ मुझसे कुछ भी नहीं बोला गया। बुआ से गले लगाकर मैं थोड़ा सा रो लेता तो ठीक ही होता। पर वह संभव न हुआ। यही प्रमोद की निष्क्रिया संवेदना है। इसके पाँच या छह महीने बाद बुआ का विवाह भी हो जाता है। प्रमोद जल्दी-जल्दी सब व्यवस्था कर देता है। उसी दिन से बुआ की पढ़ाई भी घुट जाती है। बुआ अब ऐकात रहने । लगती है। वह अपनी कामों मे लगी रहती है।

(ग) देखी यह विडम्बना कि एक ओर राम-भक्ति पाने के लिए मन तड़पता है और दूसरी ओर पण्डितों से संस्कृत कवि के रूप में वाहवाही पाने की छटपटाहट भी है। एक ओर दुनिया से विराग भी है और दूसरी ओर यह वाहवाही का लोभ भी। इसी द्ंद्व से मेरी सच्ची चाहना को निकालने हेतु नियति ने मानो मेरे लिए काशी में भी संघर्ष का एक वातावरण प्रस्तुत कर दिया।

उत्तर – संदर्भ : - प्रस्तुत कर दिया। प्रस्तुत पेलि 'मानस का हंस' से लिया गया है। इसके लेखक अमृत लाल नगर है। इस उपन्यास मे महाकवि. महात्मा तुलसी दास के भीतर एक सहज साधारण मनुष्य को स्थापित कर दिया है। यानी एक ही प्रतिमा में जीवन का संसार किया है। एक ऐसा व्यक्ति जो सामान्य मनुष्य की तरह जाति-धर्म वर्ग के बंधनो का तिरस्कार कर एक युवती से टूटकर प्यार करता है। जो आश्रम में आने वाली स्त्रियों के आकर्षण को अनुभव करता है। इस उपन्यास में अमृतलाल नागर इतिहास कल्पना, के साथ साथ तुलसीदास को साहित्य को कथा का आधार बनाते है। 'मानस का हंस' वास्तव में अमृतत्रात्र नागर को उपन्यासकार के रूप में भारतीय साहित्य में अमर कर देता है।

व्याख्या:- जब तुलसीदास को अपमानित और बदनाम करने के षड॒यंत्र रचे जाने लगते है तो उनका मन इन घटनाओं से दुःखी हो जाता है और वे काशी प्रस्थान कर जाते हैं।

कासी में गुरु भाई गंगाराम और उनके मित्र होडर जी की सहायता फिर से रामचरित मानस की रचना मे लीन हो जाते हैं। उनका मन काशी मे मात्र राम कथा की रचना में ही मन लगता है। वे राम चरित्र मानस के अंशो का पाठ भी करते है जो आमजन को बहुत पंसद आते है।

(घ) मेरी कविता नहीं, तुम्हारी कविता। और, कारीगरी के ध्यान की कविता। मेरे शब्द कारीगरों को जो सूझ नहीं दे के उसकी तुम्हारे दिये हुए मेरे भाव ने उसको दिया। कारीगरों ने योग साधा, उनके ध्यान में वह भाव मूर्त हुआ और टॉकी हथौड़े ने तुम्हारी कविता और मेरे भाव को पत्थरों में उतार कर बसा दिया।

उत्तर – संदर्भ-प्रस्तुत पेलि वृंदावनलाल वर्मा के उपन्यास 'मृगनयनी' से त्रिया गया है। इस उपन्यास में खालि के राजा मानसिंह तोमर और राई गाँव की गरीब गुज कन्या निन्‍नी उर्फ मृगनयनी के प्रेम और विवाह का वर्णन किया गया है। इस उपन्यास में लाखी निन्‍नी के सहेली है, जो बाद मे उसके भाई अटल से विवाह करती है। यह विवाह भी प्रेम विवाह होता है, दोनो का अन्तर्जातीय विवाह होता है। इस प्रकरण मे राजा मानसिंह के विवाह प्रस्ताव से होता है।.

व्याख्या:- इस स्थिति से उबरने के लिए मानसिंह अपना हाथ आगे बढ़ाता है और कहता है कि इस भाषा को तो सारा संसार समझता है। वैसे भी प्रो मे कई बार भाषा असमर्थ और अप्रांसगिक हो जाती है। आगे वह कहता है कि अपना हाथ मेरे हाथ मे दे दो। यह प्रेम की स्वीकृति का वृक्षण होगा। एकाए इस प्रस्ताव को सुनकर मृगनयनी गरदन मोड़े हुए लेकिन सीधे आँखो से उसे देख पाने मे समर्थ नहीं होती है। वह अपनी एक आँखो से राजा को देखती है। उसका कलेजा धड़कने लगता है। उसके होठो मे वह स्मृति याद आ जाती है। जो उसके संकोच एवं प्रसन्‍नता का लक्षण है। किसान पुत्री होने के कारण उसका हाथ घुत्र से भरा हुआ था।

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