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निर्मला के चरित्र की विशेषताएँ बताइए।

 निर्मला का चरित्र निर्मल है, परन्तु फिर भी समाज में उसे अनादर एवं अवहेलना का शिका होना पड़ता है। उसकी पति परायणता काम नहीं आती। उस पषर सन्देह किया जाता है, उसे परिस्थितियाँ उसे दोषी बना देती है। इस प्रकार निर्मला विषरीत परिस्थितियों से जूझती हुई मृत्यु को प्राप्त करती है।

निर्मला में अनमेल विवाह और दहेज प्रथा की दुखान्त व मार्मिक कहानी है। उपन्यास का लक्ष्य अनमेल-विवाह तथा दहेज प्रथा के बुरे प्रभाव को अंकित करता है। निर्मला के माध्यम से भारत की मध्यवर्गीय युवतियों की दयनीय हालत का चित्रण हुआ है। उपन्यास के अन्त में निर्मला की मृत्यू इस कुत्सित सामाजिक प्रथा को मिटा डालने के लिए एक भारी चुनौती है। प्रेमचन्द ने भाल्चन्द और मोटेराम शास्त्री के प्रसंग दवारा उपन्यास में हास्य की सृष्टि की है।

निर्मला के चारों ओर कथा-भवन का निर्माण करते हुए असम्बद्ध प्रसंगों का पूर्णतः बहिष्कार किया गया है। इससे यह उपन्यास सेवासदन से भी अधिक सुग्रंथित एवं सुसंगठित बन गया है। इसे प्रेमचनद का प्रथम “यथार्थवादी” तथा हिन्दी का प्रथम “मनोवैज्ञानिक उपन्यास” कहा जा सकता है। निर्मला का एक वैशिष्ट्य यह भी है कि इसमें 'प्रचारक प्रेमचनद' के लोप ने इसे ने केवल कलात्मक बना दिया है, बल्कि प्रेमचन्द के शिल्प का एक विकास-चिन्ह भी बन गया है।

बाबू उदयभानु लाल की स्थिति 'नाम बड़े और दर्शन छोटे की थी।' उनकी वकालत खूब चलती थी, लक्ष्मी की उन पर कृपा भी थी, पर घर में जो बहुत से सम्बन्धी पड़े खाते रहते थे, उनके कारण कुछ बचता नहीं था 

वास्तविकता यह थी कि मुंशी उदयभानु लाल को पैसा बचाना आता भी नहीं था, उनकी बड़ी पुत्री निर्मला का विवाह निश्चित हुआ और पिता ने दहेजन माँगकर लेन-देन की बात उन्हीं पर छोड़ दी। उदयभानु लाल अपनी इज्जत बचाने के लिए, पर्याप्त दहेज देने के साथ ही बरातियों की ऐसी जारित करना चाहते थे कि सभी याद रखें।

पुत्री के विवाह की तैयारी उदयभानु लाल किस प्रकार कर रहे थे। इसका वर्णन लेखक ने इन शब्दों में किया है- "बाबू उदयभानु लाल का मकान बाजार में बना हुआ है। बरामदे में सुनार के हथौड़े और कमरे में दर्जी की सुड़यों चल्र रही हैं। सामने नीम के नीचे बढ़ई चारपाइयाँ बना रहा है। खपरैल में हलवाई के लिए भट्ठा खोदा गया है।

मेहमानों के लिए अलग मकान ठीक किया गया है। यह प्रबन्ध किया जा रहा है कि हर एक मेहमान के लिए एक-एक चारपाई, एक एक कुर्सी और एक-एक मेज हो हर तीन मेहमानों के लिए एक-एक कहार रखने की तंजवीज की जा रही है।

बरातियों का ऐसा सत्कार का इन्तजाम किया जा रहा है कि किसी को जबान हिलाने का मौका न मिले। वे लोग भी याद करें कि किसी के यहाँ बारात में गये थे। एक पूरा कान बर्तनों से भरा हुआ है। चाय के सैट हैं, नाश्ते की तश्तरियाँ, थाल, लोटे, गिल्लास।

उदयभानु ल्राल के पास कुछ नहीं था वे कर्जा लेने का प्रबन्ध कर चुके थे। पत्नी को यह. र फूँक तमाशा देखना सहन नहीं हो रहा था। पहले उदयभानु लाल ने विवाह का खर्च पाँच जार जोड़ा था, एक हफ्ते बाद व दस हजार पर पहुँच गये। पत्नी ने इसका विरोध किया तो बात ढ़ ढ़ गयी दोनों के उस संवाद की कुछ पंक्तियाँ इस प्रकार है -

कल्याणी - ये सारे काँटे तो मेरे बच्चों के लिए बोये जा रहे हैं। उदयभानु तो मैं क्या तुम्हारा गुलाम हूँ।

कल्याणी तो क्या मैं तुम्हारी त्रौंडी हूँ? उदयभानु ऐसे मर्द और होंगे जो औरतों के इशारों पर नाचते हैं। कल्याणी - तो ऐसी स्त्रियाँ भी और होंगी जो मर्दों की जूतियाँ सहा. करती हैं।

उदयभानु - मैं कमा कर लाता हूँ, जैसे चाहूँ हँ खर्च कर सकता हूँ किसी को बोलने व नकार नहीं।कल्याणी तो आप अपना घर संभालिए।

इससे स्पष्ट हो जाता है कि एक पढ़े-लिखे वकील के घर में उसकी पत्नी की स्थिति क्या है? उस समय स्त्रियाँ घर सँभालती थीं और पुरुष बाहर से धन कमाकर लाता था। आर्थिक अधिकार होने के कारण पुरुष स्वयं को स्वामी और स्त्री को दासीं समझता था।

बढ़-चढ़कर बोलने वाली और स्वयं को पति की दासी नसमझने वाली पत्नी को सबक सिखाने के लिए उदयभानु लाल ने आत्महत्या का नाटक करने की सोची और रात में चुपचाप घर से निकल पड़े। रास्ते में मतई नाम के बदमाश ने त्राठी मारकर उदयकानु की हत्या कर दी।

गलती उदयभानु ने की और वैधव्य का दुःख भोगना पड़ा कल्याणी को, जिसे अपनी फूल-सी पन्द्रह वर्ष की पुत्री निर्मला को चालीस वर्ष के कुरूप वृद्ध से बाँधनी पड़ी।

(2) निर्मला - इस उपन्यास के नारी पात्रों में सबसे विषम और दु:खद स्थिति निर्मला की है। उसका जीवन ज्वालामुखी का निवास है। जिन मुंशी तोताराम का उनके विवाह हुआ है। उनकी अवस्था और शारीरिक स्थिति इस प्रकार है

"वकील साहब का नाम था मुंशी तोताराम साँवले रंग के मोटे-ताजे आदमी थे। उम्र तो अभी चालीस से अधिक न थीं, पर वकालत के कठिन परिश्रम ने सिर के बाल पका दिये थे। व्यायाम करने का उन्हें अवकाश ने मित्रता था। यहाँ तक कि कभी कहीं घूमने भी नहीं जाते, इसलिए तोंद निकत्र आईं थीं। देह के स्थूल्न होते हुए भी आये दिन कोई-न-कोई शिकायत रहती थी। मंदाग्नि और बवासीर से तो उनका चिरस्थायी सम्बन्ध था। अतएव फूंक-फूंककर कदम रखते थे।"

कहाँ कनक छरी सी कामिनी पन्द्रह वर्ष की परम सुन्दरी फूल सी निर्मला और कहाँ चालीस वर्ष के मोटे, भद्दे और वृद्ध मुंशी तोताराम। एक प्रकार से मुंशी तोताराम निर्मला के पिता की अवस्था के थे। गलती की मुंशी उदयभानु लाल ने और दहेज का दानव फैलाया समाज ने पर भोगना पड़ा निर्मला को। निर्मला मुंशी तोताराम को पति समझने में क्‍यों हिचकिचाती थी, इसका वर्णन करते हुए प्रेमचन्द्र ने लिखा है

"निर्मला को न जाने क्यों तोताराम के पास बैठने और हँसने बोलने में संकोच होता था इसका कदाचित यह कारण था कि अब तक ऐसा ही एक आदमी उसका पिता था। जिसके सामने वह सिर झुकाकर, देह चुराकर निकलती थी, अब उनकी अवस्था का एक आदमी उसका पति था। वह उसे प्रेम की वस्तु नहीं, सम्मान की वस्तु समझती थी। उनसे भागती फिरती, उनको देखते ही उसकी प्रफुलता पलायन कर जाती थी।

(3) रूक्मिणी - मुंशी तोताराम की रूक्मिणी सगी बहन थीं। विधवा हो जाने के कारण उनके पास रहती थीं। इसका तात्पर्य यही है कि उनकी ससुराल वालों ने उन्हें रोटी कपड़ा देना भी उचित नहीं समझा। मुंशी तोताराम के घर में उनकी जो स्थितिःथी, वह इस कथन से स्पष्ट है-

'मैंने सोचा था कि विधवा है, अनाथ है, पाव भर आटा खायेगी, पड़ी रहेगी। जब और नौकर- चाकर खा रहे हैं तो यह तो अपनी बहिन ही है। लड़कों की देखभाल के लिए एक औरत की जरूरत भी थी, रख लिया, लेकिन इसके ये माने नहीं कि वह तुम्हारे ऊपर शासन करे।"

तोताराम जी ने निर्मला के सामने तो अपनी संगी बहन को अनाथ, विधवा और नौकर के समान कहा है- उन्होंने रूक्मिणी से जो कहा, वह भी कम अपमानजनक नहीं है- "सुनता हूँ कि तुम हमेशा खुचर निकालती रहती हों, बात-बात पर ताने देती हो। अगर कुछ सीख देनी तो उसे प्यार से मीठे शब्दों में देनी चांहिए।

तानों से सीख मिलने के बदल्ले उल्टा और जी जलने लगता हूँ" इनके अतिरिक्त भालचन्द्र सिन्हा, उनकी पत्नी रंगीलीबाई और डॉ. भुवनमोहन सिन्हा की पत्नी सुधा की स्थिति भी विशेष अच्छी नहीं है। रंगीलीबाई की इच्छा के विरुद्ध उसके पति निर्मल्रा से अपने पुत्र का विवाह करने से मना कर देते हैं। इस प्रकार स्पष्ट है कि निर्मला उपन्यास नारी जीवन की करुण त्रासदी है।

मुंशी तोताराम का बड़ा पुत्र मंसाराम निर्मला का समन्वयस्क था। निर्मला ने मुंशी तोताराम को प्रसन्‍न करने के लिए हँसना, बोलना और शृंगार करना आरम्भ किया था, क्योंकि तोताराम जी उसे रिझाने के लिए छैला बन गये थे और अपनी छड़ी के द्वारा तीन तलवाधारी लुटेरों को पराजित करने की कथा सुना चुके थे।

निर्मला ने सहज ही कह दिया कि वह मंसाराम से अंग्रेजी पढ़ने लगी है तो तोताराम जी को मंसाराम और निर्मला के मध्य अवैध सम्बन्धों का सन्देह हुआ। उन्होंने समझ लिया कि यह सब बनाव- शृंगार और प्रसन्‍नता मंसाराम को रिझाने के लिए हैं। तोतारामजी ने अपने पुत्र मंसाराम को घर से निकाल कर बोर्डिंग हाउस में रहने के लिए विवश कर दिया।

मंसाराम को जब पिता के इस सन्देह का पता चला तो उसे निर्मला की दशा पर तरस आया और उसने निर्मल्रा की शुद्धता का प्रमाण देकर अपने प्राण त्याग दिये। इसका दोषारोपण निर्मला पर किया गया। मुंशी तोताराम की बहन रूक्मिणी ने तो रुपष्ट शब्दों में आरोप लगाया था कि निर्मला ही मंसाराम को घर से निकाल रही है।

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