गीतिकाव्य के रूप में त्यागराज के कीर्तन
संत प्रवर त्यागराज के गीत साहित्य और संगीत दोनों क्षेत्रों में महत्वपूर्ण हैं। त्यागराज ने अपने संपर्ण जीवन में निरंतर साधना की है। कर्नाटक संप्रदाय के शास्त्रीय संगीत को उनका योगदान अप्रतिम है। इनके जीवनकाल में ही इस दिव्य संगीत की महक दूर-दूर तक फैल गयी थी। उनके दर्शन करने कई लोग आया करते थे। तंजावर के शासक शरभोजी ने उन्हें अपने दरबार में बलाया भी था। यह दूसरी बात है कि नर स्तुति से विमुख संत ने राजा का निमंत्रण ठकरा दिया। संगीत विद्या सीखने त्यागराज के यहां शिष्य मंडली बैठती थी। यद्यपि त्यागराज के पद तेलग भाषा में हैं, संगीत की आकर्षक शक्ति और शास्त्रीय संगीत का व्यावहारिक पक्ष आदि गुणों से, पूरे दक्षिणांचल में ये पद सीखे, गाये और सुने जाते हैं। भाषा के समझ में नहीं आने पर भी संगीत प्रेमी त्यागराज को अपनाते हैं। इस तरह उस संगीतकार और गीतकार में राष्ट्रीय एकीकरण की अद्भुत क्षमता थी।
त्यागराज के भगवान श्री राम थे। वर्णित विषय की दृष्टि से राम भक्ति गीतों का केन्द्र बिंदु है। गीतों में भाव की गहराई और अभिव्यक्ति की सुंदरता के कारण साहित्यिक महत्व इन गीतों का कम नहीं है। पुरानी परंपरा प्रबंध काव्य, काव्य शास्त्र और व्याकरण सम्मत भाषा शैली को महत्व देती थी। इसलिए पदों, सूक््तियों, लोक गीतों और लोक कथाओं को लोग उपेक्षा की दृष्टि से देखते थे। इसलिए साहित्य में त्यागराज का महत्व लोगों ने नहीं समझा। किंतु प्रभु के सामने दिल खोलकर रखने की विनय भावना, दीन भावना और मन, में उस आराध्य के सौन्दर्य को देखकर परवश होने की प्रवृत्ति इस कवि में थी। धार्मिक कट्टरता बिल्कल नहीं थी। राम कथा और कृष्ण कथा दोनों से संबंधित प्रबंध और गेयमक्तक लिखे गये। विभिन्न पृण्य क्षेत्रों की यात्रा करके वहां के देवी-देवताओं की वन्दना कीं है। इस तरह त्यागराज की दृष्टि समन्वय की दृष्टि है। गोस्वामी तुलसीदास और आन्ध्र भागवतकार पोतना की भी यही उदार दृष्टि थी। नागराज ने मन की पवित्रता पर बल दिया। मात्र बाहय विधि विधानों का पालन करने वालों पर व्यंग्य किया। इस प्रकार त्यागराज का महत्व वर्ण्य-विषय, उच्च आदर्श और शास्त्रीय संगीत के कारण है। तेलुगु के भक्ति साहित्य ने अपनी भूमिका ठीक से निभाई है।
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