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ड्रिप सिंचाई विधि की व्याख्या कीजिए। सिंचाई दक्षता बढ़ाने में सिंचाई अनुसूचीकरण की भूमिका की व्याख्या कीजिए।

 ड्रिप सिंचाई जिसे बूंद-बूंद सिंचाई या ट्रिकल सिंचाई भी कहते हैं, में जल पौधों के जड़ क्षेत्र में या उसके आस-पास कम दबाव पर बूंद-बूंद करके गिरता है। इस प्रणाली में प्लास्टिक का साजो-सामान जैसे पाईप और ड्रिपर तथा इनके साथ-साथ फिल्टर और उर्वरक उपयोग करने की युक्ति का इस्तेमाल होता है। यह विधि यदि उचित प्रकार से व्यवस्थित की जाए तो सिंचाई की सर्वाधिक जल-कुशल विधि है क्योंकि इसमें वाष्पन तथा रनऑफ के कारण होने वाली जल क्षति न्यूनतम होती है। इस विधि में सिंचाई के साथ-साथ उर्वरक का उपयोग भी किया जा सकता है और यह क्रिया जल उर्वरीकरण या फर्टिगेशन कहलाती है। यदि कोई ड्रिप सिंचाई प्रणाली लंबी अवधि तक उपयोग में लाई जाए या इससे जल उत्सर्जन की दर अधिक हो तो इससे जल भूमि में गहरे चला जाता है। चूंकि जल पौधों की जड़ों में या उनके आस-पास दिया जाता है, अतः क्षेत्र का केवल कुछ भाग ही गीला होता है। इसके परिणामस्वरूप इस प्रणाली में जल की बहुत बचत होती है। चूंकि सिंचाई जल के साथ-साथ उर्वरक का भी उपयोग किया जा सकता है, अत: प्रयुक्त किए गए उर्वरकों का भी दक्षतापूर्ण उपयोग होता है। जल और पोषक तत्वों के इष्टतम उपयोग के फलस्वरूप न केवल फसल की उत्पादकता बढ़ जाती है, वरन्‌ सतही विधि से सींची गई फसलों की तुलना में इस विधि से उगाई गई फसलों की गुणवत्ता भी श्रेष्ठ होती है। 

ड्रिप सिंचाई विधि निम्न स्थितियों के लिए उपयुक्त है

• दूर-दूर पौधों के अंतराल वालीं फसलें जैसे बागानी फसलें

• उच्च छनन दरों वाली ऊबड़-खाबड़ भूमियां

• अधिक अंतराल वाली फसलें

• लवणीय सिंचाई जल

लाभ

• चूंकि क्षेत्रफल का कुछ भाग ही गीला होता है, अतः जल की पर्याप्त बचत होती है;

• उर्वरकों का कम मात्रा में प्रयोग करना पड़ता है;

• अपेक्षाकृत लवणीय जल भी उपयोग में जा सकता है;

• उच्च सिंचाई दक्षता (>90 प्रतिशत);

• उच्च उर्वरक दक्षता;

• उच्च उपज तथा उत्पाद की बेहतर गुणवत्ता; और

• खरपतवारों का कम प्रकोप।

कमी

• उच्च आरंभिक लागत।

सिंचाई अनुसूचीकरण

सिंचाई अनुसूचीकरण से यह निर्णय लेने में सहायता मिलती है कि खेत में कब और कितना जल दिया जाए, ताकि मृदा में कम होती नमी को वांछित स्तर तक लाने के लिए जल की ठीक जितनी मात्रा की आवश्यकता हो, उतनी मात्रा में जल देकर सिंचाई की दक्षता को सर्वोच्च (अधिकतम) किया जा सके। सिंचाई अनुसूचीकरण से न केवल जल और ऊर्जा की बचत होती है, बल्कि फसल उत्पादकता में भी वृद्धि होती है। सिंचाई /अनुसूचीकरण का आधार मृदा में नमी अंश तथा मृदा नमी तनाव पर निर्भर करता है।

प्रयुक्त होने वाले जल की मात्रा सिंचाईकर्ता की कार्यनीति पर निर्भर करती है। उदाहरण के लिए कोई सिंचाईकर्ता फील्ड की क्षमता के बराबर या उससे कम जल का उपयोग कर सकता है तो खेत की मृदा में मौजूद नमी घट जाती है। यदि वर्षा होने की संभावना न हो और सिंचाईकर्ता दो सिंचाइयों के बीच के अंतराल को बढ़ाना चाहता हो तो लाभदायक यह होगा कि मृदा प्रोफाइल को खेत क्षमता के अनुसार जल से पूर्णतः भर दिया जाए। यदि वर्षा होने की संभावना हो तो मृदा प्रोफाइल को खेत की क्षमता तक भरना बुद्धिमानी नहीं होगा, वरन्‌ हमें वर्षा के लिए भी कुछ गुंजाइश छोड़नी होगी।

उचित सिंचाई अनुसूचीकरण से किसानों को जल की ठीक-ठीक मात्रा के उपयोग का पता चलता है जिससे बेहतर सिंचाई दक्षता प्राप्त की जा सकती है। प्रयुक्त होने वाले जल के आयतन तथा इस्तेमाल होने वाले जल को मृदा में कितनी गहराई पर दिया जाए, इसका ठीक-ठीक ज्ञान होना आवश्यक है। सिंचाई अनुसूचीकरण से निम्नलिखित लाभ होते हैं

• फसल के जल तनाव को न्यूनतम रखने और अधिकतम उपज लेने के लिए विभिन्‍न खेतों में जल रोटेशन की अनुसूची तैयार करने में किसानों को सक्षम बनाना;

• कम सिंचाइयों करते हुए किसानों द्वारा जल और श्रम में लगाई जाने वाली लागत में कमी आती है और इस प्रकार, मृदा नमी भंडारण का सर्वोच्च उपयोग होता है;

• सतह से बह जाने वाले जल प्रवाह के रुक जाने तथा गहरे निच्छालन (रिसाव) के कम होने से उर्वरकों की लागत में भी कमी आती है;

• फसल उपज तथा फसल की गुणवत्ता बढ़ने के कारण निवल (शुद्र) लाभ में वृद्धि होती है; और

• गैर-नकदी फसलों की सिंचाई करके 'बचाए गए' जल के उपयोग द्वारा अतिरिक्त लाभ प्राप्त होता है जो अन्यथा पानी की कमी वाली अवधि में सिंचाई उपलब्ध न होने से प्राप्त न हुआ होता।

खेत में सभी स्थानों पर जल का समरूप वितरण महत्वपूर्ण है, ताकि सिंचाई अनुसूचीकरण और प्रबंधन से सर्वाधिक लाभ प्राप्त किया जा सके। ठीक-ठीक मात्रा में जल के उपयोग से अतिरिक्त या कम सिंचाई की अवस्था से बचा जा सकता है।

सिंचाई के लिए वांछित जल की मात्रा को ड्यूटी और डेल्टा के रूप में परिभाषित किया जा सकता है। ड्यूटी का तात्पर्य जल की किसी इकाई की सिंचाई क्षमता है। यह सींचे गए क्षेत्रफल तथा उस फसल की बढ़वार की पूर्ण अवधि के दौरान वांछित सिंचाई जल की मात्रा के बीच का संबंध है। डेल्टा पूरी अवधि के दौरान फसल द्वारा वांछित जल की कुल गहराई तथा खेत में फसल की उपस्थिति से संबंधित है। उदाहरण के लिए यदि किसी फसल को 20 दिनों के अंतराल पर 9 बार जल देने की आवश्यकता होती है तथा प्रत्येक सिंचाई के दौरान जल की गहराई ॥0 सें.मी. होती है तो फसल की अवधि छह माह मानते हुए जल की कुल आवश्यकता अर्थात्‌ उस फसल का डेल्टा 9 0 सेंमी. 5 90 सें.मी. 5 0.90 मीटर होगा। 

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