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'मृगनयनी' की भाषा

 ग्वालियर के दक्षिण-पश्चिम में राई नामक ग्राम मे निमूमी और उसका भाई अटल रहते थे। लाखी, निम्‌मी की सखी थी। निम्‌ूमी और लाखी के सौन्दर्य और लक्ष॒यवेध की चर्चा मालवा की राजधानी माणूडू, मेवाड़ की राजधानी चित्तौड़ और गुजरात की राजधानी अहमदाबाद तक पहुची। उस समय दिल्ली के तख्त पर गयासुद्दीन खिलजी बैठ चुका था।

माणूडू के बादशाह बर्बरा और गयासुद्दीन ने निम्‌ूमी और ल्राखी को प्रापूत करने की योजनाएँ बनाई। राई गाँव के पुजारी ने उनके सौन्दर्य और ल्क्षयवेध प्रशंसा ग्‌ूवालियर के राजा मानसिंह के समक्ष की।

लाखी की माँ मर गई, इसलिए लाखी, निम्‌मी और अटल्न के पास रहने ल्गी। गयासुद्दीन खिलजी ने, नटो के सरदार को निम्‌मी और लाखी को लाने के लिए, योजना तैयार की। नटों और नटनियों ने निमूमी और लाखीं को फुसलाना प्रारम्‌भ किया।

एक दिन राजा मानसिंह शिकार खेलने राई गाँव पहुँचे। निम्‌मी के सौन्दर्य और शिकार मे लक्षयवेध से मुग्‌ध होकर विवाह करके उसे ग्वालियर ले गये।

निन्‍नी गूजर थी और राजा क्षत्रिय राजपूत इसलिये गाववालों ने मान सिंह और निम्मी के विवाह का विरोध किया। पुजारी ने उनका विवाह नही कराया | वे नटों के दल के साथ नरवर के किले की तरफ आ गये। लाखी को नटों के षडयंत्र का पता लग गया, इसलिए उसने उनके षडयन्त्र को विफल्न कर उनहे समाप्‌त कर दिया। महाराजा मानसिंह अटल और लाखी को ले गए और ग्‌वाल्नियर मे उनका विवाह हुआ |

निम्मी, विवाह के पश्चात 'मृगनयनी' के नाम से प्रसिद्ध हुई। मृगनयनी के पहले राजा के आठ पत्नियाँ थीं जिनमे सुमनमोहिनी सबसे बड़ी थी। इसी के पुत्र को राजगद्दी मिली क्योंकि निन्‍नी निचली जाती की होने के कारण इसके पुत्र को राजगद्दी ना देकर कुछ गांव दिए जिससे नाराज होकर निन्‍नी अपने पुत्रों को लेकर चली गयी और वहीं से गुज्जरों मैं तँवर गोत्र की शुरुआत हुई।

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