लोक-निजी साझेदारी में एक सरकारी एजेंसी और एक निजी क्षेत्र की कंपनी के बीच सहयोग शामिल होता है, जिसका उपयोग लोक परिवहन नेटवक्र और सम्मेलन केंद्रों जैसी परियोजनाओं को वित्त, निर्माण और संचालित करने के लिए किया जाता है। यह निर्दिष्ट समय-सीमा बजट मात्रा और गुणवत्ता के साथ नागरिकों को सेवाएं प्रदान करने या प्रदान करने के लिए सरकार और निजी संगठनों, जिन्हें प्रदाता भी कहा जाता है, के बीच एक अनुबंधित समझौता है। इस साझेदारी व्यवस्था के तहत ध्यान में रखने वाली एक महत्वपूर्ण बात यह है कि लोक सेवाओं के वितरण के लिए जवाबदेही लोक क्षेत्र द्वारा रखी जाती है, जबकि निजीकरण के तहत, निजी क्षेत्र पर जवाबदेही हीती है।
विश्व बैंक (2012) पी.पी.पी. अवधारणा को “लोक संपत्ति या सेवा प्रदान करने के लिए निजी कंपनी और सरकारी एजेंसी के बीच एक दीर्घकालिक अनुबंध के रूप में परिभाषित करता है, जिसमें निजी कंपनी एक महत्वपूर्ण जोखिम और प्रबंधन जिम्मेदारी वहन करती है।“
आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (ओ ई सी डी, -2012) औपचारिक रूप से पीपीपी को “सरकार और एक निजी साझेदार के बीच लंबी अवधि की संविदात्मक व्यवस्था के रूप में परिभाषित करता है, जिसमें निजी साझेदार,संबंधित जोखिमों को साझा करते हुए, पूंजीगत संपत्ति का उपयोग करके लोक सेवाओं को वितरित और वित्तपोशित करता है।”
पी.पी.पी. को 3 पी (3Ps) भी कहा जाता है। भारत सरकार एक 375 को “लोक क्षेत्र की इकाई ([प्रायोजन प्राधिकरण) और एक निजी क्षेत्र की इकाई (एक कानूनी इकाई जिसमें 51% या अधिक इक्विटी निजी साझेदार के पास है) के बीच एक साझेदारी के रूप में परिभाषित करती है,जो लोक उद्देश्य के लिए, वाणिज्यिक शर्तों पर एक निर्दिष्ट अवधि (रियायत अवधि) के भीतर बुनियादी ढांचे का निर्माण और /या प्रबंधन करती है। इसमें निजी भागीदार का चुनाव एक पारदर्शी और खुली खरीद प्रणाली के माध्यम से किया जाता है। भारत सरकार कई प्रकार के पी.पी.पी. को मान्यता देती है, जिनमें शामिल हैं: उपयोगकर्ता-शुल्क आधारित बिल्ड ऑपरेट ट्रांसफर , कार्य संपादन आधारित प्रबंधन/रखरखाव अनुबंध और संशोधित डिजाइन-बिल्ड (टर्नकी)।
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