हंस अनैटिडाए कुल के जलपक्षियों के सिग्नसवंश के पक्षी होते हैं। वर्तमान विश्व में इसकी 6 जीवित जातियाँ हैं, हालांकि इसकी कई अन्य जातियाँ भी थीं जो विलुप्त हो चुकी हैं। हंस का बत्तख और कलहंस से जीववैज्ञानिक सम्बन्ध है, लेकिन हंस इन दोनों से आकार में बड़े और लम्बी गर्दन वाले होते हैं। नर और मादा हंस आमतौर पर जीवन-भर के लिए जोड़ा बनाते हैं।
अपनी सुंदरता और लम्बी यात्राओं के लिए हंसों को कई संस्कृतियों में महत्व मिला है। भारतीय साहित्य मैं इसे बहुत विवेकी पक्षी माना जाता है। और ऐसा विश्वास है कि यह नीर-क्षीर विवेक (पानी और दूध को अलग करने वाला विवेक) से युक्त है। यह विद्या की देवी सरस्वती का वाहन है। ऐसी मान्यता है कि यह मानसरोवर में रहते हैं। हंसों को आजीवन जोड़ा बनाने के लिए भी प्रेम-सम्बन्ध और विवाह का प्रतीक माना गया है।
हंस का प्रकाशन सन् 1930ई० में बनारस से प्रारम्भ हुआ था। इसके सम्पादकमुंशी प्रेमचन्द थे। प्रेमचन्द के सम्पादकत्व में यह पत्रिका हिन्दी की प्रगति में अत्यन्त सहायक सिद्ध हुई। सन् 1933 मैं प्रेमचन्द ने इसका काशी विशेषांक बड़े परिश्रम से निकाला। वे सन् 1930 से लेकर 1936 तक इसके सम्पादक रहे।
उसके बाद जैनेन्द्र और प्रेमचंद की पत्नी शिवरानी देवी ने संयुक्त रूप से इसका सम्पादन प्रारम्भ किया। हंस के विशेषांकों मैं प्रेमचन्द स्मृति अंक, एकांकी नाटक अंक 1938, रेखाचित्र अंक, कहानी अंक, प्रगति अंक तथा शान्ति अंक विशेष रूप से उल्लेखनीय रहे। जैनेन्द्र और शितरानी देवी के बाद इसके सम्पादक शिवदान सिंह चौहान और श्रीपत राय उसके बाद अमृत राय और तत्पश्चात् नरोत्तम नागर रहे।
बहुत दिनों बाद सन् 1959 में हंस का एक वृहत् संकलन सामने आया जिसमें बालकृष्ण राव और अमृत राय के संयुक्त सम्पादन में आधुनिक साहित्य एवं उससे सम्बन्धित नवीन मूल्यों पर विचार किया गया था।
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