व्यवहाारिक रूप से विकास प्रशासन के क्षेत्र में वे सभी गतिविधियाँ सम्मिलित की जाती हैं जो कि एक देश के प्रशासन के द्वारा उस देश के विकास के लिए सम्पन्न की जाती हैं। अत: विकास प्रशासन के क्षेत्र के अन्तर्गत वे सभी गतिविधियाँ आती है जो सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, सांस्कृतिक, औद्योगिक, कृषि , मानवीय , प्रशासनिक आदि क्षेत्रों से सम्बन्धित है एंव सरकार द्धारा संचालित हों । किन्तु इस प्रकार से विकास प्रशासन के क्षेत्र को परिभाषित करने का कोई भी प्रयास वैज्ञानिक रूप में सफल नहीं हो सकेगा । इसलिए यह आवश्यक हो जाता है कि विकास प्रशासन के क्षेत्र की कुछ सीमाएं निर्धारित की जाएं।
राष्ट्र निर्माण और सामाजिक गठबंधन/संसर्ग -
अपने उपनिवेशों में लोगों को संगठित होकर साम्राज्यवादी सत्ता को चुनौती देने से रोकने के लिए साम्राज्यवादी शक्तियों ने दमनकारी नीति अपनाने के साथ-साथ और भी कई हत्थकण्डे अपनाए। इनमें से एक प्रमुख था ‘फूट डालो और राज करो’। इसके परिणमस्वरूप साम्राज्यवादी शक्तियों नें अपने उपनिवेशों में लोगों में सामाजिक असहिष्णुता की भावना फैलाई तथा उन्हें अनेकों आधारों पर बाँटकर आपस में लड़वा दिया ताकि इन उपनिवेशों के लोग असंगठित रहे और साम्राज्यवादी सत्ता और उसके द्धारा किए जा रहे शोषण को चुनौती देने के बारे में उन्हें सोचने का अवसर ही न मिले। उदाहरण के तौर पर आजादी से पूर्व अंग्रेजों ने भारत की जनता को धर्म, जाति, प्रदेश आदि अनेकों आधारों पर बांटकर आपस में लड़वा दिया।
फलस्वरूप दूसरे विश्व युद्ध की समाप्ति के पश्चात् एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका के नव-स्वतन्त्र राष्ट्रों को धार्मिक-सामाजिक तथा सांस्कृतिक असहिष्णुता विरासत में मिली। इसीलिए इन नव-स्वतन्त्र राष्ट्रों के समक्ष न केवल आर्थिक विकास की समस्या थी अपितु राष्ट्र निर्माण व सामाजिक गठबन्धन या संसर्ग भी एक प्रमुख चुनौती थी जो कि विकास प्रशासन के क्षेत्र का एक अभिन्न अंग बन गया। विभिन्न नव-स्वतन्त्र या विकासशील देशों के प्रशासन ने पाया कि वहाँ का समाज अनेको आधारों पर बंटा हुआ था और वहां पर पुराने व संकुचित सामाजिक सम्बन्ध, जो कि भाई-भतीजावाद, जाति, धर्म, क्षेत्रवाद आदि से प्रभावित थे, विद्यमान थे। किन्तु इस प्रकार के सामाजिक सम्बन्ध राष्ट्र-निर्माण में बाधक होते हैं । इसलिए विकास प्रशासन इन सामाजिक संरचानाओं को तोड़कर नई सरंचनाएँ गठित करता है। साथ ही विकास प्रशासन विभिन्न वर्गो के मध्य सामाजिक- धार्मिक तनाव दूर करके सामाजिक सद्भावना लाने का प्रयास करता है ताकि एक स्वच्छ एंव स्वस्थ समाज का निर्माण हो सके।
विकासात्मक नियोजन
किसी भी अर्थव्यवस्था में सदैव ही संसाधन सीमित होते हैं तथा समस्यांए असीमित । यह तथ्य विकासशील देशों के सन्दर्भ में और भी अधिक सटीक है। क्योंकि विकासशील देश एक ओर जहाँ तकनीक और प्रौद्योगिकी के अभाव में अपने संसाधनों का समुचित दोहन नहीं कर पाते वहीं दूसरी ओर उनके समक्ष समस्याएं भी अधिक होती है। अत: यह नितान्त आवश्यक हो जाता है कि विकास प्रशासन सीमित संसाधनों तथा समय के समुचित उपयोग के लिए नियोजित विकास की शरण ले। अत: विकास प्रशासन समस्याओं समाधान के हेतु प्राथमिताएँ (priorities) निर्धारित करता है और के संसाधनों की उपलब्धता के अनुसार उन्हें संसाधन आवंटित करता हैं दूसरे शब्दों में हम कह सकते है कि विकासात्मक नियोजन (Development Planning) विकास प्रशासन का एक प्रमुख कार्य है तथा उसके क्षेत्र के अन्तर्गत सम्मिलित किया जाता हैं।
विकास कार्यक्रम
विभिन्न क्षेत्रों (सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक, राजनैतिक आदि ) में निर्धारित उद्देश्यों के सन्दर्भ में विकास योजनाओं को लागू करने के लिए विकास प्रशासन अनेक कार्यक्रम तैयार करता है तथा उन्हें लागू करता है। अत: विकास कार्यक्रम भी विकास प्रशासन के क्षेत्र का अभिन्न अंग हैं। यदि हम भारत के परिप्रेक्ष्य में देखें तों भारतीय प्रशासन ने स्वतन्त्रत प्राप्ति के पश्चात् से आज तक विभिन्न वगोर्ं के विकास के लिएअनेकों कार्यक्रम चलाए है।
इन कार्यक्रमों में समाज के विभिन्न वर्गो को लक्ष्य बनाया गया तथा उनके विकास के लिए कार्य किया गया। उदाहरण के तौर पर सूखा सम्भावित क्षेत्रीय कार्यक्रम, कमाण्ड क्षेत्र विकास कार्यक्रम, पर्वतीय विकास कार्यक्रम, जनजाति विकास कार्यक्रम आदि क्षेत्रीय विकास के कार्यक्रम है। सघन कृषि क्षेत्रीय कार्यक्रम, समग्र कृषि विकास कार्यक्रम, अधिक उपज किस्म कार्यक्रम आदि कृषि उत्पादन के सम्बन्धित कार्यक्रम है। ग्रामीण निर्माण कार्यक्रम, ग्रामीण रोजगार के लिए सघन कार्यक्रम, काम के बदले अनाज कार्यक्रम, राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार कार्यक्रम, ग्रामीण युवाओं के लिए स्वरोजगार प्रशिक्षण, ग्रामीण भूमिहीन रोजगार गारण्टी कार्यक्रम, जवाहर रोजगार योजना प्रधानमंत्राी रोजगार योजना, स्वर्णजयन्ती ग्राम स्वरोजगार योजना, सम्पूर्ण ग्राम रोजगार योजना आदि ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार उपलब्ध करवाने तथा गरीबी दूर करने के उद्देश्य से चलाये गये कार्यक्रम है।
संस्था निर्माण
विकास-प्रशासन की गतिविधियां केवल योजनाओं, नीतियों व कार्यक्रमों के निर्माण तक ही सीमित नहीं है अपितु इनका सफल एंव प्रभावपूर्ण क्रियान्वयन भी विकास प्रशासन का उत्तरदायित्व है। विकास नीतियों, योजनाओं व कार्यक्रमों को लागू करने के लिए विकास प्रशासन को कुछ सरंचनाओं की आवश्यकता होती है। इस उद्देश्य से विकास प्रशासन सर्वप्रथम पहले से विद्यमान संस्थाओं का सहारा लेता है। कई बार ये संस्थाए विकास कार्यक्रमों को लागू करने में सहायक होती है। किन्तु अनेकों अवसरों पर विकास प्रशासन को इन संस्थाओं में कुछ आवश्यक परिवर्तन भी करने पड़ते हैं ताकि ये संस्थाऐ विकास कार्यक्रमों के सफल क्रियान्वयन में सहायक बन सकें। इसके अतिरिक्त कई बार विकास प्रशासन को सर्वथा नई संस्थाए भी स्थापित करनी पड़ती हैं क्योंकि वर्तमान विद्यमान संस्थाएं किसी या किन्हीं विशेष विकास कार्यक्रम या कार्यक्रमों के प्रभावपूर्ण कार्यान्वयन में सहायक सिद्ध नहीं हो पाती।
मानवीय तत्व या पक्ष का अध्ययन
विकास प्रशासन के क्षेत्र में मानवीय पक्ष का अध्ययन अपरिहार्य है। क्योंकि लोक प्रशासन (और इसलिए विकास प्रशासन का उददेश्य ‘सेवा करना’ (To Serve) है। यूं तो सभी प्रशासन के अध् ययन क्षेत्र में मानवीय तत्व का अध्ययन अवश्यंभावी है किन्तु विकास प्रशासन में इस तत्व का महत्व और भी बढ़ जाता है क्योंकि यह (विकास प्रशासन) अधिक संवेदनशील है। विकास प्रशासन को अनेकों बार समाज के उन नागरिकों के लिए कार्यक्रम बनाने तथा लागू करने होते हैं जो कि बाकि समाज से पिछड़े हुए हैं। जैसे कि भारत में विकास प्रशासन के लाभार्थियों में महिला एवं शिशु , अनुसूचित जाति एंव जनजातियों के लोग, पिछड़ी जातियों या वगोर्ं के लोग सम्मिलित है। ऐसे वगोर्ं को सेवित करने के लिए यह आवश्यक हो जाता है कि विकास प्रशासन की प्रणाली तथा कार्यवाहियाँ मानवतापूर्ण हों। इसलिए “विकास प्रशासन में विविध समस्याओं को हमें मानवीय व्यवहार के परिप्रेक्ष्य मे देखना चाहिए। इस प्रकार हम इसके अन्र्तगत सामाजिक मानक, मूल्यों, व्यवहार, विचारों आदि का अध्ययन करते हैं।”
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