वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली आयोग (वैतशआ ; सीएसटीटी) हिन्दी और अन्य सभी भारतीय भाषाओं के वैज्ञानिक और तकनीकी शब्दों को परिभाषित एवं नये शब्दों का विकास करता है। भारत की स्वतन्त्रता के बाद वैज्ञानिक-तकनीकी शब्दावली के लिए शिक्षा मन्त्रालय सन् 1950 में बोर्ड की स्थापना की।
सन् 1952 में बोर्ड के तत्त्वावधान मैं शब्दावली निर्माण का कार्य प्रारम्भ हुआ। अन्तत: 1960 मैं केन्द्रीय हिन्दी निदेशालय और 1961 ई. में वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली आयोग की स्थापना हुई। ।
इस प्रकार विभिन्न अवसरों पर तैयार शब्दावली को 'पारिभाषिक शब्द संग्रह' शीर्षक से प्रकाशित किया गया, जिसका उद्देश्य एक ओर वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली आयोग के समन्वय कार्य के लिए आधार प्रदान करना था और दूसरी ओर अन्तरिम अवधि में लेखकों को नयी संकल्पनाओं के लिये सर्वसम्मत पारिभाषिक शब्द प्रदान करना था।
स्वतन्त्रता के बाद भारत के संविधान के निर्माताओं का ध्यान देश की सभी प्रमुख भाषाओं के विकास की ओर गया। संविधान में हिन्दी को संघ की राजभाषा के रूप मैं मान्यता दी गयी और केन्द्रीय सरकार को यह दायित्व सौंपा गया कि वह हिन्दी का विकास-प्रसार करें एवं उसे समृद्ध करे। तदनुसार भारत सरकार के केन्द्रीय शिक्षा मन्त्रालय ने संविधान के अनुच्छेद 357 के अधीन हिन्दी का विकास एवं समृद्धि की अनेक योजनाएँ आरम्भ कीं।
इन योजनाओं में हिन्दी में तकनीकी शब्दावली के निर्माण का कार्यक्रम भी शामिल किया गया ताकी ज्ञान-विज्ञान की सभी शाखाओं में हिन्दी के माध्यम से अध्ययन एवं अध्यापन हो सके। शब्दावली निर्माण कार्यक्रम को सही दिशा देने के लिये 1950 में शिक्षा सलाहकार की अध्यक्षता में वैज्ञानिक शब्दावली बोर्ड की स्थापना की गयी।
पहले यह कार्य शिक्षा मन्त्रालय के अन्तर्गत हिन्दी एकक द्वारा किया जाता था किन्तु बाद में विभिन्न विषयों की हिन्दी शब्दावली का निर्माण करने के दौरान यह ज्ञात हुआ कि यह काम बहुत ही अधिक विशाल, गहन और बहुआयामी है।
इसके पूरे होने मैं बहुत समय लगेगा और इस कार्य के लिये सभी विषयों के विशेषज्ञों एवं आषाविदों की आवश्यकता होगी। अतः भारत सरकार ने अक्तूबर, 1961 को प्रख्यात वैज्ञानिक डॉ. डी.एस. कोठारी की अध्यक्षता में वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली आयोग की स्थापना की ताकि शब्दावली निर्माण का कार्य सही एवं व्यापक परिप्रेक्ष्य में कार्यान्वित किया जा सके।
हिन्दी तथा अन्य आधुनिक भारतीय भाषाओं को प्रशासन, शिक्षा तथा परीक्षा का माध्यम बनाने का सपना तथा संकल्प स्वंतत्रता प्राप्ति के बाद भारत के संविधान निर्माताओं ने बहुत सूझ-बूझ तथा विधार मथन के पश्चात् भारत की जनता के सम्मुख रखा। यह संकल्प, यह सपना भारत की सांस्कृतिक तथा भाषायी विविधता को ध्यान में रखकर लिया गया एक आदर्श ऐतिहासिक फैसला था।
यह एक ऐसा संकल्प था, जो भारत की मिट्टी में जन्मी प्रज्ञा को ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में मौलिकता प्रदान करने तथा भारतीयता को सुरक्षित रखने के लिए लिया गया था। यह राष्ट्रीय 'एकता तथा सामाजिक विकास के लिए आवश्यक था तथा एक ऐसा भविष्यगामी फैसला था जिसमें 'सर्वेभवन्तु सुखिन:' की भावना निहित थी।
जब कोई सपना देखा जाता है, जब कोई संकल्प लिया जाता है, जब कोई आदर्श सामने रखा जाता है, तो उसे मूर्तरूप देने के लिए कारगर योजनाओं और उनके क्रियान्वयन की आवश्यकता भी होती है। संविधान की 35वीं धारा में हिन्दी तथा अन्य भारतीय भाषाओं के लिए जो विधान किए गए, उन्हें कार्यरूप देने के लिए सरकार ने कई योजनाएं बनाई जिसमें वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली का विकास, मानकीकरण तथा एकरूपता की महत्वाकांक्षी योजना भी थी जो बाद में चलकर भारत सरकार की शिक्षा नीति में भी सम्मिलित की गई।
स्वतंत्रता के समय ज्ञान की विभिन्न विधाओं मैं अंग्रेजी भाषा का वर्चस्व था तथा परिश्चम से लिए हुए उधार के ज्ञान के लिए एक ऐसी शब्दावली भारतीय भाषाओं में विकसित करनी थी 'जिसका जन्म भारत की मिट्टी में नहीं हुआ था। इसी कारण यह एक सहज प्रयास न होकर कुछ अप्राकृतिक स्वरूप ग्रहण करने के लिए बाध्य थी।
इस सायास और नियोजित प्रयास में तकनीकी पर्यायों या समानर्थी शब्दों का विधान किया जाना था। ऐसे पर्याय, जो अन्वेषक या विद्वान की कृति नहीं, बल्कि विषय विशेषज्ञ तथा भाषाविद् दवारा मूल तकनीकी संकल्पना की सूचना अनूदित भाषा में संप्रेक्षित कर सके।
शब्दावली निर्माण की इस असहज प्रक्रिया ने उस समय कई विसंगतियों को जन्म दिया। कई विद्वानों ने उस समय वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली के विकास का काम प्रारंभ कर दिया। कुछ विद्वानों ने शब्दावली को संस्कृतनिष्ठ करना चाहा, तो कुछ ने इसे उर्दू'फारसी और हिन्दुस्तानी कही जाने वाली भाषा में ढालना चाहा।
उस समय कुछ ऐसे भी विद्वान थे जिन्होंने अंग्रेजी के तकनीकी शब्दों को देवनागरी में 'लिप्यांतरण करके स्वीकार करने की पेशकश रखी परंतु इन सबसे वैज्ञानिक तथा तकनीकी विषयों के बहुयामी तथा विशाल शब्द भंडार को अपनी भाषा के व्याकरण, उसकी प्रकृति तथा विद्यार्थियो, प्राध्यापकों, शोधार्थियों, अनुवादकों, ग्रंथ लेखकों की आकांक्षाओं की पूर्ति नहीं हो रही थी और जिस ढंग से लोग शब्दावली का निर्माण कर रहे थे उससे संविधान की गरिमा में निहित आशय की पूर्ति भी नहीं हो रही थी।
'एक ही तकनीकी शब्द के कई-कई पर्याय उपलब्ध होने से एक ऐसी अराजक स्थिति उत्पन्न हो गई जिसने शब्दावली निर्माण के नियोजन तथा प्रबंधन की ओर लोगों का ध्यान आकर्षित 'किया। ऐसे में भारत सरकार ने यह कार्य अपने हाथ में लेना ही उचित समझा और 1 अक्टूबर 1961 को स्थाई आयोग के रूम में वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली आयोग की स्थापना राष्ट्रपति के आदेश के अधीन की गई।वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली आयोग (वैतशआ ; सीएसटीटी) हिन्दी और अन्य सभी भारतीय भाषाओं के वैज्ञानिक और तकनीकी शब्दों को परिभाषित एवं नये शब्दों का विकास करता है। भारत की स्वतन्त्रता के बाद वैज्ञानिक-तकनीकी शब्दावली के लिए शिक्षा मन्त्रालय सन् 1950 में बोर्ड की स्थापना की।
सन् 1952 में बोर्ड के तत्त्वावधान मैं शब्दावली निर्माण का कार्य प्रारम्भ हुआ। अन्तत: 1960 मैं केन्द्रीय हिन्दी निदेशालय और 1961 ई. में वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली आयोग की स्थापना हुई। ।
इस प्रकार विभिन्न अवसरों पर तैयार शब्दावली को 'पारिभाषिक शब्द संग्रह' शीर्षक से प्रकाशित किया गया, जिसका उद्देश्य एक ओर वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली आयोग के समन्वय कार्य के लिए आधार प्रदान करना था और दूसरी ओर अन्तरिम अवधि में लेखकों को नयी संकल्पनाओं के लिये सर्वसम्मत पारिभाषिक शब्द प्रदान करना था।
स्वतन्त्रता के बाद भारत के संविधान के निर्माताओं का ध्यान देश की सभी प्रमुख भाषाओं के विकास की ओर गया। संविधान में हिन्दी को संघ की राजभाषा के रूप मैं मान्यता दी गयी और केन्द्रीय सरकार को यह दायित्व सौंपा गया कि वह हिन्दी का विकास-प्रसार करें एवं उसे समृद्ध करे। तदनुसार भारत सरकार के केन्द्रीय शिक्षा मन्त्रालय ने संविधान के अनुच्छेद 357 के अधीन हिन्दी का विकास एवं समृद्धि की अनेक योजनाएँ आरम्भ कीं।
इन योजनाओं में हिन्दी में तकनीकी शब्दावली के निर्माण का कार्यक्रम भी शामिल किया गया ताकी ज्ञान-विज्ञान की सभी शाखाओं में हिन्दी के माध्यम से अध्ययन एवं अध्यापन हो सके। शब्दावली निर्माण कार्यक्रम को सही दिशा देने के लिये 1950 में शिक्षा सलाहकार की अध्यक्षता में वैज्ञानिक शब्दावली बोर्ड की स्थापना की गयी।
पहले यह कार्य शिक्षा मन्त्रालय के अन्तर्गत हिन्दी एकक द्वारा किया जाता था किन्तु बाद में विभिन्न विषयों की हिन्दी शब्दावली का निर्माण करने के दौरान यह ज्ञात हुआ कि यह काम बहुत ही अधिक विशाल, गहन और बहुआयामी है।
इसके पूरे होने मैं बहुत समय लगेगा और इस कार्य के लिये सभी विषयों के विशेषज्ञों एवं आषाविदों की आवश्यकता होगी। अतः भारत सरकार ने अक्तूबर, 1961 को प्रख्यात वैज्ञानिक डॉ. डी.एस. कोठारी की अध्यक्षता में वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली आयोग की स्थापना की ताकि शब्दावली निर्माण का कार्य सही एवं व्यापक परिप्रेक्ष्य में कार्यान्वित किया जा सके।
हिन्दी तथा अन्य आधुनिक भारतीय भाषाओं को प्रशासन, शिक्षा तथा परीक्षा का माध्यम बनाने का सपना तथा संकल्प स्वंतत्रता प्राप्ति के बाद भारत के संविधान निर्माताओं ने बहुत सूझ-बूझ तथा विधार मथन के पश्चात् भारत की जनता के सम्मुख रखा। यह संकल्प, यह सपना भारत की सांस्कृतिक तथा भाषायी विविधता को ध्यान में रखकर लिया गया एक आदर्श ऐतिहासिक फैसला था।
यह एक ऐसा संकल्प था, जो भारत की मिट्टी में जन्मी प्रज्ञा को ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में मौलिकता प्रदान करने तथा भारतीयता को सुरक्षित रखने के लिए लिया गया था। यह राष्ट्रीय 'एकता तथा सामाजिक विकास के लिए आवश्यक था तथा एक ऐसा भविष्यगामी फैसला था जिसमें 'सर्वेभवन्तु सुखिन:' की भावना निहित थी।
जब कोई सपना देखा जाता है, जब कोई संकल्प लिया जाता है, जब कोई आदर्श सामने रखा जाता है, तो उसे मूर्तरूप देने के लिए कारगर योजनाओं और उनके क्रियान्वयन की आवश्यकता भी होती है। संविधान की 35वीं धारा में हिन्दी तथा अन्य भारतीय भाषाओं के लिए जो विधान किए गए, उन्हें कार्यरूप देने के लिए सरकार ने कई योजनाएं बनाई जिसमें वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली का विकास, मानकीकरण तथा एकरूपता की महत्वाकांक्षी योजना भी थी जो बाद में चलकर भारत सरकार की शिक्षा नीति में भी सम्मिलित की गई।
स्वतंत्रता के समय ज्ञान की विभिन्न विधाओं मैं अंग्रेजी भाषा का वर्चस्व था तथा परिश्चम से लिए हुए उधार के ज्ञान के लिए एक ऐसी शब्दावली भारतीय भाषाओं में विकसित करनी थी 'जिसका जन्म भारत की मिट्टी में नहीं हुआ था। इसी कारण यह एक सहज प्रयास न होकर कुछ अप्राकृतिक स्वरूप ग्रहण करने के लिए बाध्य थी।
इस सायास और नियोजित प्रयास में तकनीकी पर्यायों या समानर्थी शब्दों का विधान किया जाना था। ऐसे पर्याय, जो अन्वेषक या विद्वान की कृति नहीं, बल्कि विषय विशेषज्ञ तथा भाषाविद् दवारा मूल तकनीकी संकल्पना की सूचना अनूदित भाषा में संप्रेक्षित कर सके।
शब्दावली निर्माण की इस असहज प्रक्रिया ने उस समय कई विसंगतियों को जन्म दिया। कई विद्वानों ने उस समय वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली के विकास का काम प्रारंभ कर दिया। कुछ विद्वानों ने शब्दावली को संस्कृतनिष्ठ करना चाहा, तो कुछ ने इसे उर्दू'फारसी और हिन्दुस्तानी कही जाने वाली भाषा में ढालना चाहा।
उस समय कुछ ऐसे भी विद्वान थे जिन्होंने अंग्रेजी के तकनीकी शब्दों को देवनागरी में 'लिप्यांतरण करके स्वीकार करने की पेशकश रखी परंतु इन सबसे वैज्ञानिक तथा तकनीकी विषयों के बहुयामी तथा विशाल शब्द भंडार को अपनी भाषा के व्याकरण, उसकी प्रकृति तथा विद्यार्थियो, प्राध्यापकों, शोधार्थियों, अनुवादकों, ग्रंथ लेखकों की आकांक्षाओं की पूर्ति नहीं हो रही थी और जिस ढंग से लोग शब्दावली का निर्माण कर रहे थे उससे संविधान की गरिमा में निहित आशय की पूर्ति भी नहीं हो रही थी।
'एक ही तकनीकी शब्द के कई-कई पर्याय उपलब्ध होने से एक ऐसी अराजक स्थिति उत्पन्न हो गई जिसने शब्दावली निर्माण के नियोजन तथा प्रबंधन की ओर लोगों का ध्यान आकर्षित 'किया। ऐसे में भारत सरकार ने यह कार्य अपने हाथ में लेना ही उचित समझा और 1 अक्टूबर 1961 को स्थाई आयोग के रूम में वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली आयोग की स्थापना राष्ट्रपति के आदेश के अधीन की गई।
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