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प्रशासनिक नैतिकता की आवश्यकता का परीक्षण कीजिए।

 अनैतिक व्यवहार व्यक्तिगत और संगठनात्मक कारकों के परिणामस्वरूप हो सकते हैं। वे स्पष्ट रूप से परिभाषित आचार संहिता के बावजूत भी हो सकते हैं। कुछ मामलों में, सेवा की शर्ते और मज़दूरी और लाभों के प्रति असंतोष जैसी स्थितियां व्यक्तियों को इस बात में प्रभावित कर सकती हैं कि वे महसूस करे कि वे उनके ऋणी हैं। अन्य कारक संगठनात्मक संस्कृति से संबंधित हो सकते हैं, जैसे किसी भी कीमत पर काम करवाने और परिणाम प्राप्त करने के हित की संस्कृति नैतिकता की अवहेलना को बढ़ावा देती है। फेरेल और स्किनर (1988) का तर्क है कि, नौकरशाही का केंद्रीकृत और पदानुक्रमित शक्ति आधार वास्तव में अनैतिक व्यवहार के लिए अवसर पैदा करने में मदद करता है। जैसा कि रैंक-एंड-फाइल और मध्यम स्तर के नौकरशाहों का विवके गंभीर रूप से सीमित है, ये नौकरशाह किसी भी प्रशासनिक नैतिक मानक की परवाह किए बिना, आंख बंद करके अधिकार का पालन करते हैं। फिर भी आचार संहिता स्थायी नैतिक आचरण के लिए अत्याधिक महत्वपूर्ण है।

लोक एजेंसियां, चाहे वे लोक क्षेत्र से संबंधित हों या सहकारी क्षेत्र से संबंधित हों, जनता के प्रति जवाबदेह हैं, क्योंकि वे सरकार के वित्तीय राजस्व में योगदान प्रदान करती हैं। सार्वजनिक या लोक एजेंसियों की जवाबदेही मुख्य रूप से सत्ता का दुरूपयोग और लोक संसाधनों का दुरूपयोग रोकने से संबंधित है। लेकिन इसे मूल्यों द्वारा निर्देशित करने की आवश्यकता है जैसे कि जवाबदेही, निष्पक्ष व्यवहार और अखंडता। लोक एजेंसियों को पूर्वाग्रह और मनमानी से दूर रहना चाहिए। उन्हें कार्यों और नागरिकों के लिए एक समान अवसर सुनिश्चित करने चाहिए।

भौतिकवाद, जिसे सबसे श्रेष्ठ मूल्य माना जाता है, अनैतिकता कर्मों का मुख्य कारण है। 'जो लोग भ्रष्ट आचरण में लिप्त होते हैं, वे अपने कार्यों को “व्यावहारिक” होने के रूप में सही ठहराते हैं, अन्यथा वे सत्ता की दौड़ में हार जाएंगे। इसमें आश्चर्य की बात नहीं कि प्रत्येक व्यक्ति सत्ता चाहता है, क्योंकि समाज के तौर पर हम शक्तिशाली को सलाम करते हैं। हम सबसे अमीर लोगों को अपने प्रेरणास्नोत के रूप में देखते हैं' |

हम जानते हैं कि हमें दूसरों के साथ गलत करने की कीमत चुकानी पड़ती है। नैतिक मूल्यों के क्षय का परिणाम भ्रष्टाचार होता है। मार्विन एलेक्जेंडर तर्क देता हैं कि, भ्रष्टाचार तीन कारणों से हानिकारक है। पहला, यह राष्ट्र-विरोधी है। हवाला घोटाला दिखाता है कि कैसे राष्ट्र-विरोधी आंतकवादी विदेश से हवाला के द्वारा धन प्राप्त कर रहे थे। दूसरा, भ्रष्टाचार गरीब विरोधी है, क्योंकि गरीबी उन्मूलन योजनाओं के लिए उपलब्ध संसाधनों को भ्रष्ट राजनेताओं और नौकरशाहों द्वारा छीन लिया जाता है। तीसरा, यह आर्थिक विकास विरोधी है, जैसा कि दक्षिण पूर्व एशियाई अर्थव्यवथाओं के पतन से प्रदर्शित होता है। यह प्रशासन के ढांचे और प्रशासन में लोगों के विश्वास को कम करके प्रशासनिक वैधता पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है (दत्ता, 2013) ।

यह प्रवृतियां प्रशासनिक नैतिक मूल्यों के पालन के महत्व को स्पष्ट रूप से रेखांकित करती है। ऐसी असंगत नीतियों के साथ सार्वजनिक या लोक एजेंसियों के लिए काम करने वाले कर्मचारियों को अक्सर असहज स्थिति में रखा जाता है। वे उन लोगों की हानि के लिए संगठनात्मक नीतियों को बनाए रखने का प्रयास करते हैं, जो संगठन सेवा करने के लिए होते हैं। अपने ग्राहकों की जरूरतों को पूरा करने के लिए कर्मचारी संगठनात्मक नीतियों का उल्लंघन करते हैं और खुद को जोखिम में डालते हैं। इस अनावश्यक नैतिक दुविधा को समाप्त करने के लिए ऐसी नीतियों की समीक्षा करने की आवश्यकता है। तब तक संगठनात्मक हित से अधिक ग्राहक के हित को चुनना सभी का सबसे नैतिक कार्य हो सकता है।

इस प्रकार, श्रष्ट प्रथाओं का एक संभावित इलाज संगठनात्मक आचार संहिता में निहित है। स्ट्रेट (1998) का तर्क है कि लोक कर्मचारियों को तीन लक्ष्यों के ढांचे के भीतर बने रहने में सक्षम होना चाहिए: संगठन के प्रति वफादारी, जनता की जरूरतों के प्रति जवाबदेही और कर्मचारियों के अपने उद्देश्यों और इच्छाओं के लिए विचार। ये लक्ष्य एक ऐसा वातावरण प्रदान करते हैं, जो नैतिक दुविधाओं से भरा हुआ है।

लोक कर्मचारियों को निर्णय लेने या निर्णयों को लागू करने में अक्सर संगठन की नीतियों को मानने और अपने ग्राहक की आवश्यकताओं को पूरा करने के बीच दुविधा का सामना करना पड़ता है। एक नौकरशाही ढांचे में, प्रत्येक प्राधिकरण और कर्तव्य व्यक्ति विशेष की सेवा विवरण के द्वारा निर्देशित होती है, जिसका परिणाम यह होता है कि उसे आंख बंद करके, बिना किसी दुविधा की परवाह किए कार्य करना होता है। यह प्रवृति स्पष्ट रूप से प्रशासनिक नैतिक मूल्यों का पालन करने के महत्व पर बल देती है। ऐसी असंगत नीतियों के साथ सार्वजनिक एजेंसियों के लिए काम करने वाले कर्मचारी अक्सर असहज स्थिति में पड़ जाते हैं। वे संगठनात्मक नीतियों को बनाए रखने का प्रयास करते हैं, जिन लोगों के लिए संगठन सेवा कर रहा है। अपने ग्राहकों की आवश्यकता को पूरा करने के चुनाव में कर्मचारी संगठन की नीतियों का उल्लंघन करते हैं और स्वयं को जोखिम में डालते हैं। अनावश्यक नैतिक दुविधा को समाप्त करने के लिए ऐसी नीतियों की पुनःसमीक्षा की जाने की आवश्यकता है। तब तक, संगठन के हित के ऊपर ग्राहक के हित का चयन करना ही संभवतः सभी के लिए नैतिक कार्य होगा | भ्रष्ट आचरण के लिए एक संभावित इलाज संगठनात्मक आचार संहिता में निहित है। स्ट्रेट का तर्क है कि लोक कर्मचारियों को 'तीन लक्ष्यों के ढांचे के भीतर बने रहने में सक्षम होना चाहिए: संगठन से निष्ठा, जनता की आवश्यकताओं के प्रति उत्तरदायी, और कर्मचारियों का अपने उद्देश्यों और इच्छाओं की ओर ध्यान (स्ट्रेट, 1998) |

परंतु एक यथोचित प्रभावी, जवाबदेही, उत्तरदायी, लोकतांत्रिक प्रशासन विफल हो जाएगा यदि वह बड़े पैमाने पर लोगों की संतुष्टि के लिए सेवाएं देने के लिए उचित नैतिक मानकों का पालन नहीं करता। वहीं दूसरी ओर, लोग स्वयं आर्थिक रूप से पीड़ित होने के लिए बाध्य हैं और सामाजिक वंचन और सुशासन के लाभों को खो देते हैं, यदि वे स्वयं या तो अपने व्यक्तिगत जीवन जीने के तरीके में भ्रष्टाचार को संरक्षण देते हैं या उसको आचरण में लाते हैं (मुखोपाध्याय, 2013)।

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