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हिंदी और राजभाषा अधिकनियम पर प्रकाश डालिए।

 संविधान सभाने. लम्बी चर्चा. के. बाद. 14. सितम्बर सन्‌ 1949 को हिन्दी को भारत की राजभाषा स्वीकारा गया। इसके बाद संविधान में अनुच्छेद 343 से 357 तक राजभाषा के सम्बन्ध में व्यवस्था की गयी। इसकी स्मृति को ताजा रखने के लिये 14 सितम्बर का दिन प्रतिवर्ष हिन्दी दिवस के रूप में मनाया जाता है। ध्यातव्य है कि भारतीय संविधान में राष्ट्रभाषा का उल्लेख नहीं है।

14 सितम्बर की शाम को संविधान सभा में हुई बहस के समापन के बाद जब संविधान का भाषा सम्बन्धी तत्कालीन भाग 4 क और वर्तमान भाग 7, संविधान का भाग बन गया तब डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने अपने भाषण में बधाई के कुछ शब्द कहे। उन्होंने कहा, "आज पहली ही बार ऐसा संविधान बना है जब कि हमने अपने संविधान में एक भाषा रखी है, जो संघ के प्रशासन की भाषा होगी।

इस अपूर्व अध्याय का देश के निर्माण पर बहुत प्रभाव पड़ेगा"। उन्होंने इस बात पर अपनी प्रसन्नता व्यक्त की कि संविधान सभा ने अत्यधिक बहुमत से भाषा-विषयक प्रावधानों को स्वीकार किया। अपने वक्तव्य के उपसंहार में उन्होंने जो कहा वह अविस्मरणीय है। उन्होंनेकहा, यह मानसिक दशा का भी प्रश्न है जिसका हमारे समस्त जीवन पर प्रभाव पड़ेगा।

हम केन्द्र में जिस भाषा का प्रयोग करेंगे उससे हम एक-दूसरे के निकटतर आते जाएँगे। आखिर अंग्रेज़ी से हम निकटतर आए हैं, क्योंकि वह एक भाषा थी। अब उस अंग्रेज़ी के स्थान पर हमने एक भारतीय भाषा को अपनाया है। इससे अवश्यमेव हमारे संबंध घनिष्ठतर होंगे, विशेषतः इसलिए कि हमारी परम्पराएँ एक ही हैं, हमारी संस्कृति एक ही है और हमारी सभ्यता में सब बातें एक ही हैं।

अतएव यदि हम इस सूत्र को स्वीकार नहीं करते तो परिणाम यह होता कि या तो इस देश में बहुत-सी भाषाओं का प्रयोग होता या वे प्रांत पृथक हो जाते जो बाध्य होकर किसी भाषा विशेष को स्वीकार करना नहीं चाहते थे। हमने यथासम्भव बुद्धिमानी का कार्य किया है और मुझे हर्ष है, मुझे प्रसन्नता है और मुझे आशा है कि भावी संतति इसके लिए हमारी सराहना करेगी। संविधान. की. धारा. 343)... के. अनुसार. भारतीय. संघ. की राजभाषा हिन्दी एवं लिपि देवनागरी है। संघ के राजकीय प्रयोजनों के लिये प्रयुक्त अंकों का रूप भारतीय अंकों का अंतरराष्ट्रीय स्वरूप (अर्थात 1, 2, 3 आदि) है।

किन्तु इसके साथ संविधान में यह भी व्यवस्था की गई कि संघ के कार्यकारी, न्यायिक और वैधानिक प्रयोजनों के लिए 1965 तक अंग्रेजी का प्रयोग जारी रहे। तथापि यह प्रावधान किया गया था कि उक्त अवधि के दौरान भी राष्ट्रपति कतिपय विशिष्ट प्रयोजनों के लिए हिन्दी के प्रयोग का प्राधिकार दे सकते हैं।

संसद का कार्य हिन्दी में या अंग्रेजी में किया जा सकता है। परन्तु राज्यसभा के सभापति या लोकसभा के अध्यक्ष विशेष परिस्थिति में सदन के किसी सदस्य को अपनी मातृभाषा में सदन को सम्बोधित करने की अनुमति दे सकते हैं (संविधान का अनुच्छेद 120)।

किन प्रयोजनों के लिए केवल हिन्दी का प्रयोग किया जाना है, किन के लिए हिन्दी और अंग्रेजी दोनों आाषाओं का प्रयोग आवश्यक है, और किन कार्यों के लिए अंग्रेजी भाषा का प्रयोग किया जाना है, यह राजभाषा अधिनियम 1963, राजभाषा नियम 1976 और उनके अन्तर्गत समय समय पर राजभाषा विभाग, गृह मन्त्रालय की और से जारी किए गए निर्देशों दवारा निर्धारित किया गया है।

यद्यपि भारत एक बहुआषायी देश था किन्तु बहुत लम्बे काल से हिन्दी या उसका कोई स्वरूप इसके बहुत बड़े आग पर सम्पर्क भाषा के रूप में प्रयुक्त होता था। भक्तिकाल मैं उत्तर से दक्षिण तक, पूरब से पश्चिम तक अनेक सन्तों ने हिन्दी में अपनी रचनाएँ कीं। स्वतंत्रताआन्दोलन में हिन्दी पत्रकारिता ने महान भूमिका अदा की। राजा राममोहन राय, स्वामी दयानन्द सरस्वती, महात्मा गांधी, सुभाष चन्द्र बोस, सुब्रहमण्य भारती आदि अनेकानेक लोगों ने हिन्दी को राष्ट्रभाषा के पद पर प्रतिष्ठित करने का सपना देखा था।

महात्मा गांधी ने 1917 में भरूच में गुजरात शैक्षिक सम्मेलन में अपने अध्यक्षीय भाषण मैं राष्ट्रभाषा की आवश्यकता पर बल देते हुए कहा था कि भारतीय भाषाओं में केवल हिंदी ही एक ऐसी भाषा है जिसे राष्ट्रभाषा के रूप में अपनाया जा सकता है क्योंकि यह अधिकांश भारतीयों द्वारा बोली जाती है; यह समस्त भारत में आर्थिक, धार्मिक और राजनीतिक सम्पर्क माध्यम के रूंप मैं प्रयोग के लिए सक्षम है तथा इसे सारे देश के लिए सीखना आवश्यक है।

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