आँकड़ा संग्रहण की अवलोकन विधि के कुछ गुण निम्नवत् बताए जा सकते हैं -
i) यह आँकड़ा संग्रहण की एक सरल विधि है।
ii) अवलोकन वास्तविक और प्रत्यक्ष अनुभव पर आधारित विविध प्रकार की परिघटनाओं का अध्ययन करने का सबसे सरल साधन है।
iii) यह प्रेक्षक को कोई व्यवहार विशेष किए जाते समय ही उसे देखने व लिपिबद्ध करने में सक्षम करती है।
iv) इस विधि से एकत्र किए गए आँकड़े अपेक्षाकृत अधिक सटीक और विश्वसनीय होते हैं क्योंकि वे दृष्टि की प्रत्यक्ष अनुभूति पर आधारित होते हैं। असहभागी अवलोकन, बहरहाल, अध्ययन किए गए सामाजिक प्रसंग का अर्थ संभवत: इतनी गहराई से न बता सके। यदि यह संदर्भगत बोध आवश्यक हो तो सहभागी अवलोकन की ही आवश्यकता होगी।
v) यह एक बार में ही समष्टि के बड़े आकार पर आँकड़े एकत्र करने में सक्षम करती है।
vi) असहभागी अवलोकन शोधकर्ता के प्रति लोगों के सहयोग पर निर्भर नहीं करता।
vii) सहभागी अवलोकन - जिसमें शोधकर्ता लोगों में शामिल होकर किसी समूह का नियमित गतिविधियों को देखते हैं ताकि उन्हें उस प्रसंग में ही देखा जा सके - शोधकर्ता को किसी सहज ही होने वाली सामाजिक गतिविधि का अध्ययन करने देता है। इससे उस परिवेश में किसी परिघटना, परिस्थिति और / अथवा वातावरण तथा सहभागियों के व्यवहार की गहन और सुस्पष्ट समझ विकसित होती है।
अध्ययन एवं आँकड़ा संग्रहण की विधि के रूप में अवलोकन, बहरहाल, अनेक नीतिपरक प्रश्नों को जन्म देता है। विशेष रूप से. सहभागी अवलोकन सभी सामाजिक विज्ञान शोध विधियों में एक विवादास्पद विधि रही है। इसका कारण निम्नलिखित बिंदुओं से समझा जा सकता है -
i) शोधकर्ता अध्ययन के अधीन लोगों के साथ अपेक्षाकृत एक लम्बी समयावधि तक रहता है, उनकी दैनिक गतिविधियों में भाग लेता है, उन्हें बहुत ही नजदीक से देखता है, और लोगों के सामाजिक, सांस्कृतिक जीवन के अंतरंग पहलुओं तक पहुँच बना लेता है। साथ ही, उसके पास प्रेक्षित घटनाओं, परिघटनाओं एवं गतिविधियों को विश्वसीय रीति से लिपिबद्ध करने का काम होता है। बर्नार्ड (1988) का कहना है कि अनौपचारिक वार्तालाप के दौरान जिसे स्पष्टतः “गप' माना जा सकता हो, शोधकर्ता के लिए आँकड़ों का हिस्सा बन सकता है। इस प्रकार के मुद्दे सामाजिक विज्ञान शोध के नीतिपरक सरोकारों का हिस्सा बन जाते हैं। प्रायः यह प्रश्न किया जाता है कि क्या शोघकर्ता लोगों से आँकड़े एकत्र करते समय उनको यह बताते हैं कि उनसे प्राप्त सूचना का क्या प्रयोग किया जाएगा?
ii) इसके अलावा, फील्ड नोट्स के माध्यम से एकत्रित सूचना के प्रकाशन के विषय में भी नीतिपरक प्रश्न उठते हैं। इसी से संबद्ध है - फील्ड नोट्स में पहचाने गए सहभागियों की अनामिकता का संरक्षण। कहा जाता है कि कंम्यूटरीकरण के साथ अनामिकता बनाए रखना किसी और माध्यम की अपेक्षा कहीं अधिक सरल होता है।
iii) सहभागी अवलोकन के दोष के विषय में एक अन्य चिंता यह व्यक्त की जाती है कि क्षेत्र कार्य के दौरान उत्तरदाताओं अथवा सूचनादाताओं के साथ शोधकर्ता द्वारा विकसित भावनात्मक संबंध की सीमा क्या हो? सहभागी अवलोकन के दौरान शोघधकर्ता प्रायः इतने निमग्न हो जाते हैं कि वे अपने अवलोकन में निष्पक्षता का क्षय करने लगते हैं। आलोचक तो यहाँ तक प्रश्न करते हैं कि 'सहभागी अवलोकन वस्तुतः कितना मान्य है? उनका तर्क है कि इस विधि में निष्पक्षता का अभाव होता है। शोधकर्ता के लिए व्यक्तिपरकता से बचना और अध्ययन के अधीन समूह के पक्षपाती विचारों को रूप प्रदान करना बहुत मुश्किल होता है।
iv) साथ ही, शोधकर्ता यह भी निर्णय लेते हैं कि क्या महत्वपूर्ण व रिकॉर्ड करने लायक है और क्या नहीं। अतः यह शोधकर्ता के मूल्यों पर ही निर्भर करता है। कुछ अतिशय उदाहरणों में शोधकर्ता रिवाज की नकल करने लगते हैं, जिसमें वे उत्तरदाताओं के साथ सहानुभूति संबंध बना लेते हैं और उनकी जीवन शैली के विश्लेषण में किसी भी नकारात्मकता को नहीं आने देते हैं।
v) शोधकर्ता के व्यक्तिगत कारक सहभागी अवलोकन में अति महत्वपूर्ण हो जाते हैं आयु, लिंग, प्रजाति, संजातीय पृष्ठभूमि, स्वयं की प्रस्तुति आदि कारकअवलोकन की प्रक्रिया को प्रभावित करते हैं। उदाहरण के लिए, डीवेट एवं डीवेट (2002) लिखते हैं कि पुरुष और महिला शोधकर्ताओं को भिन्न-भिन्न सूचना सुलभ होती है क्योंकि उन्हें अलग-अलग लोग, परिवेश और ज्ञान के स्रोत सुलभ होते हैं।
vi) शोधकर्ता की ओर से अध्ययन किए गए समूह अथवा समुदाय के सांस्कृतिक पहलुओं की बुनियादी समझ किसी भी आदर्श प्रेक्षकष के लिए अनिवार्य हो सकती है। शोधकर्ता सैद्धांतिक प्राधार और जाँच किए जाने के विचार से पूर्व-निर्धारित प्रकल्पनाओं के साथ ही अवलोकन के लिए आगे बढ़ता है। कभी-कभी ये परिकल्पनाएँ इतनी निश्चित सिद्ध होती हैं कि शोधकर्ता कार्यक्षेत्र में अन्य समानतः महत्वपूर्ण घटनाओं को अनदेखा कर देता है। यह एक व्यापक रूप से सिद्ध अवधारणा है कि सामाजिक वैज्ञानिक अवलोकन में अपने मूल्यों, विचारों एवं धारणाओं को थोपने से कितना भी बचते रहें, वे सामाजिक वास्तविकता का निष्पक्ष रूप से प्रग्रहण करने में विफल ही रहते हैं।
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