इस तथ्य के बावजूद कि मानव समाज सदैव अपराध समाप्त करने के लिए प्रयासरत रहे हैं, उसने निरंतर अपना अस्तित्व कायम रखा है, और तो और, जैसे-जैसे सभ्यताएँ विकसित हुईं, तथ्य और व्यापक हो गया। तदनुसार, दर्खाइम लिखते हैं - "ऐसा कोई तथ्य नहीं है जो सामान्यता के सभी लक्षण इससे अधिक अकाट्य रूप से प्रकट करता हो, क्योंकि यह सामूहिक जीवन की सभी शर्तों से गहरे जुड़ा लगता है।" बहरहाल, दर्खाइम अपराध को न सिर्फ अपरिहार्य मानते हैं, वह इसे उपयोगी भी मानते हैं, "... जन स्वास्थ्य में एक कारक, किसी भी स्वस्थ समाज में एक संपूर्णात्मक तत्व। हम अपराध को 'अनैतिक' और '“व्याधिकीय' मानते हैं क्योंकि वह हमारे मूल्यों और मान्यता पद्धतियों का निरादर करता है। अपराध विज्ञानी भी इसे एक 'व्याधिकीय' तथ्य मानते आए हैं, और अपराधियों के मस्तिष्क में मनोवैज्ञानिक कारण तलाशते रहे हैं।" तो फिर दर्खाइम के इन शब्दों का क्या अर्थ है - अपराध समाज में एक आवश्यक और उपयोगी भूमिका निभाता है?
अपनी पुस्तक द डिवीजन ऑफ लेबर में दर्खाइम ने दर्शाया है कि अपराध में एक ऐसी क्रिया शामिल होती है जो सशक्त, सुस्पष्ट सामूहिक भावनाओं को आहत करती है। ऐसी कार्यवाहियों को रोकने के लिए सामूहिक अंतश्चेतना को इतना मजबूत करना होगा कि आचरण में हल्की-सी कोताही अथवा अपरंपरागत व्यवहार भी अपराध की तरह लिया जाए। ऐसा करना सहज ही सामाजिक जीवन के अनुरूप नहीं होगा क्योंकि कोई भी समाज ऐसे संतों का समूह नहीं होता जो कभी पथश्रष्ट न हुए हों। "समस्त अनुपालन को आदर्शों की ओर धकेलने वाला कोई भी समाज इतना दमनकारी होगा कि लोगों के लिए रचनात्मक होना और समाज में सम्मिलित होना मुहाल हो जाएगा। अतः इनमें से कुछ अप्रचलित कार्यवाहियों द्वारा किसी अपराध का स्वरूप धारण कर लिया जाना आवश्यक हो जाता है" (कोसर, 1977; जोन्स, 1986) |
दर्खाइम के अनुसार, अपराध उपयोगी भी होता है, प्रत्यक्ष और परोक्ष दोनों रूप से। यदि आदर्शों से कोई प्थांतरण अथवा उनका गाहे-बगाहे उल्लंघन नहीं होता तो मानव व्यवहार में कोई परिवर्तन नहीं आएगा और न ही अपने आदर्शों को सिद्ध अथवा संशोधित करने के लिए समाज को कोई अवसर प्राप्त होगा। यह दर्शाने के लिए कि अपराध नैतिकता एवं कानून के सामान्य विकास में उपयोगी होता है, दर्खाइम ने प्राचीन यूनानी विद्वान सुकरात का उदाहरण प्रस्तुत किया, जो कि देश के कानून के हिसाब से अपराधी थे क्योंकि उन्होंने विचारधारा की स्वतंत्रता का दावा करने का दुस्साहस किया था। परंतु उनका अपराध उनके समाज के लिए उपयोगी साबित हुआ क्योंकि इससे नव नैतिकता और आस्था का उदय हुआ, जिसकी उनके साथियों को जरूरत थी; इसने मानव जाति की भावी पीढ़ियों के लिए विचारधारा की स्वतंत्रता का मार्ग भी प्रशस्त किया। जोन्स (1986: 68) के अनुसार - “नैतिक अंतश्चेतना के नितांत विकास हेतु. इसीलिए, वैयक्तिक रचनात्मकता की अनुमति होनी ही चाहिए। इस प्रकार, अपराधी आदश्शंवादी के लिए चुकाई गई कीमत के रूप में सामने आता है। अधिक स्पष्ट शब्दों में, जैसा कि सुकरात के उदाहरण में हमने देखा, अपराधी और आदर्शवादी कभी-कभी एक होता है, और अपराध उस नैतिकता की प्रत्याशा बन जाता है जिसे अभी जन्म लेना है।”
दर्खाइम ने भी अपराध के परोक्ष परिणाम स्पष्ट किए। उनकी विवेचना के अनुसार, “आपराधिक कार्य अपराध के विरुद्ध सामूहिक अंतश्चेतना जगाकर समुदाय द्वारा नकारात्मक प्रतिबंध लगाए जाने की ओर प्रवृत्त करते हैं। अत: यह परोक्ष रूप से समाज में नियामक एकमत मजबूत करने में परिणत होता है।" कोसर (1977: 142) से उद्धत दर्खाइम के शब्दों में - “अपराध विभिन्न लोगों की निश्छल अंतश्चेतना को एक जगह संकेन्द्रित करता है।“
दर्खाइम का 'सामान्य' एवं व्याधिकीय' सामाजिक तथ्य विषयक अद्वितीय दृष्टिकोण, और अपराध की सामान्यता समझ लेने के बाद, आइए, अब कुछ ऐसी “व्याधिकीयप्रक्रियाओं एवं वास्तविकताओं के विषय में जानें जिनको उन्होंने पहचाना। जैसा कि हमने ऊपर उल्लेख किया, दर्खाइम ने जीवनयापन और समाज का अध्ययन असंख्य बदलावों और भारी उथल-पुथल के दौर में किया, जहाँ पुरानी व्यवस्था चरमराती जा रही थी और नयी व्यवस्था अभी पाँव नहीं जमा सकी थी। अगले खंड में हम श्रम विभाजन के असामान्य अर्थात् व्याधिकीय' स्वरूपों के विषय में दर्खाइम की अवधारणाओं तथा 'आत्महत्या' के विषय में उनकी प्रसिद्ध पुस्तक छुड्साइड पर चर्चा करेंगे।
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