घरेलू हिंसा से महिलाओं की सुरक्षा अधिनियम 2005 का निर्माण घरेलू हिंसा की समस्या को नागरिक कानून के अंतर्गत सुलझाने की आवश्यकता को देखते हुए किया गया। इस कानून का मुख्य उद्देश्य इस उत्पीड़न से पीड़ितों की सहायता के लिए किया गया है न कि अपराधकर्ता को सजा देने के लिए; अतः यह कानून महिला द्वारा अपने जीवन के विभिन्न चरणों में अनुमव किए गए घरेलू संबंधों के व्यापक दायरे को सम्मिलित करता है जैसे एक बहन के रूप में अपने माँ बाप के घर में, एक पत्नी, विधवा अथवा माँ के रूप में अपने विवाहित घर में रहते हुए अथवा ऐसी महिलाएँ जो वैवाहिक स्थिति जैसी परिस्थितियों में रह रही हैं। अतः, यह कानून महिलाओं द्वारा अपने घर में अनुभव की जाने वाली हिंसा को मान्यता देता है और इससे "साझी गृहस्थी” की धारणा वैवाहिक गृहस्थी की परंपरागत धारणा से कही आगे हैं।
यह कानून किसी भी ऐसी महिला पर लागू होता है जो एक साझी गृहस्थी में रहती है जैसे पत्नी, विधवा, माँ, बहन, संयुक्त परिवार में चचेरे, ममेरे बच्चे, या कोई ऐसी महिला जो अपने पुरुष साथी के साथ लिविंग रिलेशनशिप में रह रही है। अतः यह कानून काफी व्यापक है तथा यह केवल दाम्पत्य संबंधों तक सीमित नहीं है। इसी तरह शब्द “दुर्व्यवहार की परिभाषा भी काफी व्यापक है। यह दुर्व्यवहार वास्तविक अथवा दुर्व्यवहार का डरावा दोनों ही हो सकता है और यह दुर्व्यवहार इस कानून के दायरे में आने वाले किसी भी व्यक्ति के साथ शारीरिक, लैंगिक, मौखिक, भावनात्मक, वित्तीय आदि कुछ भी हो सकता है।
अतः इसमें हिंसा की एक पूरी श्रेणी पर ही प्रतिबंध लगा दिया गया है। शारीरिक हिंसा से अभिप्राय है: प्रहार करना, पीटना या ठोकर मारना अथवा किसी अन्य तरीके से शारीरिक हानि पहुँचाना या हानि पहुँचाने का डर देना। लैंगिक दुर्व्यवहार का अर्थ है बाल लैंगिक दुर्व्यवहार महिला की अक्षतता की बेइज्जती करना, या उसे नीचा दिखाना; मौखिक तथा भावनात्मक दुर्व्यवहार का अर्थ है गाली देना, संतोषजनक दहेज न लाने के लिए बेइज्जत करना, लड़का पैदा न करने के कारण बेइज्जती करना, किसी लड़की को अपनी मर्जी के लड़के के साथ शादी करने से मना करना या उसके चरित्र अथवा चाल चलन पर लांछन लगाना। इसी प्रकार वित्तीय दुर्व्यवहार का अर्थ है: जीवन निर्वाह के मूल साधन उपलब्ध न करवाना जैसे पैसा, खाना, कपड़ा, दवाइयाँ, महिला को नौकरी करने से मना करना, किसी महिला को जबरदस्ती घर खाली करने के लिए मजबूर करना या उसके गहनों को बेच देना आदि | इस कानून में वित्तीय दुर्व्यवहार को सम्मिलित करने से यह काफी गतिशील हो गया है क्योंकि अधिकतर मामलों में अपराधकर्ता पीड़ित को वित्तीय, उसका घर में रहने समेत, साधनों से वंचित कर देता है। महिलाएँ केवल इसलिए कानून का सहारा नहीं लेती थीं क्योंकि उन्हें आश्रय तथा बच्चों, दोनों के खोने का डर होता था। इस कानून के अंतर्गत सभी अपराध गैर-जमानती हैं। इसमें एक साल की सजा तथा 20 हजार रुपये तक के जुर्माने का प्रावधान है।
इस अधिनियम के कार्यान्वयन के लिए एक पद्धति भी प्रदान की गई है जिसके अंतर्गत पीड़ित की सहायता करने के लिए राज्य सरकार द्वारा प्रत्येक जिले में एक प्रोटेक्शन अधिकारी नियुक्त करने का प्रावधान है। इस अधिकारी का कार्य पीड़ित महिला को मजिस्ट्रेट के सामने शिकायत दर्ज करने में सहायता करना तथा उसके लिए उपयुक्त सहायता प्राप्त कराना है। महत्वपूर्ण बात यह है कि यदि यह अधिकारी अपनी ड्यूटी को सही प्रकार से नहीं निभाता तो उसके विरुद्ध कार्रवाई की जा सकती है। इस अधिनियम की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह न्यायालय द्वारा जारी किए जाने वाले संरक्षण आदेश के माध्यम से तुरंत राहत तथा पूर्ण संरक्षण प्रदान करती है ताकि अपराधकर्ता को शिकायतकर्त्ता अथवा उसके परिवार के साथ संपर्क साधन अथवा उन्हें उनके साथ मारपीट करने या डरावा देने का अवसर ही न मिल सके | यह संरक्षण आदेश अपराधकर्ता को किसी भी प्रकार की घरेलू हिंसा के कृत्यों पर पीड़ित व्यक्ति के साथ किसी प्रकार का संपर्क स्थापित करने, उसके कार्य स्थल पर जाने अथवा स्कूल (यदि बच्चे हैं तो) या पीड़ित पर निर्मर अथवा उसके रिश्तेदारों के साथ किसी प्रकार की हिंसात्मक गतिविधियों पर प्रतिबंध लगाता है। इस संरक्षण आदेश का उल्लंघन एक दण्डनीय अपराध है जिसमें एक साल तक की सजा तथा 20,000 रुपये तक जुर्माना हो सकता है। मजिस्ट्रेट यदि चाहे तो वह अपराधकर्त्ता को घरेलू हिंसा के परिणामस्वरूप हुए शारीरिक तथा मानसिक चोटों के लिए हर्जाना देने के आदेश भी दे सकता है। प्रोटेक्शन अधिकारी तथा संरक्षण आदेशों के प्रावधानों द्वारा अधिनियम को काफी कठोर बना दिया है।
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