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शांति ने शर्म से गर्दन झुका ली। जवान होने के बाद आज वह पहली बार उससे बोला था। उसके शरीर को छुआ था, इसलिए वह खुश हो गई थी।

शांति ने शर्म से गर्दन झुका ली। जवान होने के बाद आज वह पहली बार उससे बोला था। उसके शरीर को छुआ था, इसलिए वह खुश हो गई थी। उसके प्रति मन में पैदा हि चिढ़ कम हो गई थी, लेकिन उसके मन में उथल-पुथल सका ई थी। नितांत निराश आवाज में वह बोलने लगा, “कैसी है यह ? जहां बेटा मां को भंगी-काम करने पर तुच्छ समझता है! द्वेष करता है, उसके हाथ का अन्न खाने से झिझकता है। इस संस्कृति ने अस्पृश्यता पैदा नहीं की होती तो मैं अपनी बूढ़ी मां को प्रचंड पीड़ा देने वाला दैत्य नहीं बना होत्ता। मां!.....

उत्तर- प्रसंग: प्रस्तृत गद्याश बाबू राव बागुल की कालजयी कहानी “विद्रोही' से अवतरित है। इस कहानी में एक मुख्य पात्र जय की माँ भंगी का कार्य करती है। उसी कारण वह अपनी माँ को तुच्छ समझता है औरूडसके साथ कहीं आता जाता भी नहीं। रास्ते में मिल जाने पर उसे माँ कहकर भी नहीं पुकारता। पर आज माँ के प्रति सही व्यवहार की सलाह देते हुए पिता की डाँट ने उसकी आत्मा को झकझोर दिया। पास खड़ी अपनी पत्नी शांति के. कंधे पर हाथ रखकर वह रूँधे हुए कंठ से उससे पूछ बैठता है कि “क्या यह सच है शांति?” यह प्रसंग उसी अवसर का है।

व्याख्या: अपने कंधे पर अपने पति जय का हाथ पाकर शांति का गर्दन शर्म से झुक गईं क्योंकि जवान होने के बाद जय उससे पहली बार बोला था और उसको स्पर्श भी किया था। इस कारण बह काफी खुश थी तथा उसके प्रति उसके मन की चिढ़न में भी कमी आई थी। उसके साथ ही जय के मन की उथल-पुथल-भी अभी जारी थी। प्रायश्चित के रूप में निराश आवाज में उसने अपने मन की बात कह डाली कि यह कैसी संस्कृति और कैसा समाज है जिसमें बेटा अपनी माँ के प्रति इस कारण वितृष्णा का भाव रखता है कि वह भंगी जैसा निम्न श्रेणी का काम करेती-है। वह अपनी माँ को इसकी कारण तुच्छ समझता है और उसके हाथ का खाना खाने से भी झिझ्कता&है। वह* आज की संस्कृति को कोसतेहुए कहता है कि अगर इस संस्कृति ने अस्पृश्यता>पैदा नहीं की होती तो वह एक रोक्षस का रूप धारण कर अपनी माँ को ऐसी तीत्र पीड़ा देने वाला कार्य क्यों करतां। इसके साथ ही उसके मुख से “माँ” शब्दनिकल पड़ता है। और वह माँ के चरणों में गिर पड़ता है तथा उसे क्षमा करने कौ गुहार लगाने लगता है।

विशेष: (i) इन पंक्तियों में भंगी का कोर्य करने वाले-समुदाय कौ, भावनाओं का मार्मिक चित्रण किया गया है।

(ii) लेखक की भाषा, विषय के अनुकूल तथा समाज को “ललकारती हैंई सी प्रतीत होती है।

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