1347 में अलाउद्दीन हासन बहमन ने राज्य की स्थापना की। वकौल-ए-मुतलक (प्रधानमंत्री), कुलीन-उल-उमरा (प्रधान सेनापति), बरबेक (राजा का निजी सहायक), दाजिब-ए-खास (खजाने का प्रमुख), सर-पारदार (उत्सव प्रभारी) आदि उसके काल के नए मंत्री और अधिकारी थे। समय गुजरने के साथ कुछ नए पद और प्रशासन की एक सुविस्तृत व्यवस्था उभरकर सामने आई। महमूद प्रथम को प्रशासनिक और संस्थागत संरचनाओं को संगठित करने का श्रेय जाता है। राजा प्रशासन व्यवस्था के शिखर पर होता था। वाकिल (प्रधानमंत्री), वजीर (मंत्री), दाबिर (सचिव), सरदार (सीमान्त रक्षक), किलेदार (किले का सेनानायक), बक्शी (भुगतान करने वाला), काजी (न्यायाधीश), मुफ्ती (कानून का व्याख्याता), कोतवाल (पुलिस), महतासिब (जन नैतिकता नियंत्रक) आदि अनेक अधिकारी उसके दायित्वों को निभाने में उसकी सहायता करते थे। उल्लेखनीय रूप में ये पद दिल्ली सल्तनत के प्रशासनिक ढाँचे के अनुरूप थे। उस काल में कुछ अन्य पदों का भी उल्लेख मिलता है। उदाहरण के लिए, बारबक (राजा का निजी सचिव), दाजिबे खास (कोषाध्यक्ष), सरपरदार (उत्सव प्रभारी) आदि। इन पदों से यह प्रतीत होता है कि बहमनियों का प्रशासनिक ढाँचा दिल्ली सल्तनत की तरह ही था।
राज्य जो मुहम्मद प्रथम के अधीन था, चार अतरफा या सूबों में विभाजित था और दौलताबाद, बरार, बिदर और गुलबर्गा इनके मुख्यालय थे। ये गवर्नरों के अधीन थे। गवर्नरों के अलग-अलग पदनाम थे-मुसंद-ए-अली (दौलताबाद) , मजलिस-ए-अली (बरार), आजम-ए-हुमाँऊ (बिदर) और मलिक नायब (गुलबर्गा)। सामरिक दृष्टि से गुलबर्गा महत्त्वपूर्ण था और इसको वफादार गवर्नरों के अधीन रखा गया था। इनको मलिक नायब या वायसराय कहा जाता था।
राजा के अधीन 200 सेना के यक््का जवाना या सिबहदारन थे। राजा के अंगरक्षकों की संख्या 400 थी और उनको खासा खेल कहा जाता था। अमीरूल उमरा प्रधान सेनापति था और आवश्यकता पड़ने पर सेना के दस्ते जुटाने कौ जिम्मेदारी बारबारदारान नामक अधिकारियों की थी। बहमनी राज्य के खुफिया एजेंट मुंहियान राजाओं को राज्य के भीतर और बाहर घटने वाली दोनों ही घटनाओं की जानकारी देते थे।
1422 से 1436 का शिहाबुद्दीन अहमद प्रथम का शासनकाल महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि इसी समय राजधानी गुलबर्गा से हटकर बिदर को बनाया गया था। तुगलकों का प्रभाव बहमनी राज्य के बिदर काल के समय घटा था और गद्दी प्राप्त करने के लिए ज्येष्ठाधिकार नियम भी इसी समय लागू हुआ था। भारत के बाहर से आए अफाकियों को आगे बढ़ाने का श्रेय उसके पूर्वज फिरूज को दिया जाता है जो दक््खन में फारस, इराक और अरब से आए थे। 1397 से 1422 तक का ताजुद्दीन फिरूज का शासनकाल विशेष महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि प्रशासन व्यवस्था में उसने हिन्दुओं (ब्राह्मणों) को शामिल किया था। उसने हिन्दू राज्य विजयनगर के साथ वैवाहिक सम्बन्ध भी स्थापित किए। कुलीनों का एक अन्य समूह उत्तर भारत से आया था, जिसे दक्खनी कहा जाता था। बहमनी राज्य के प्रशासन में नए आने वालों के प्रभाव में वृद्धि हु अहमद प्रथम के शासनकाल के समय खलफ हासन बसरी को वकील-ए-सल्तनत मुतलक (प्रधानमंत्री) बनाया गया और उसे मलिक-उत-तुज्जर (व्यापारियों का शहजादा) की पदवी से नवाजा गया। राजा की सेना में उसने इराक, खुरासान, ट्रांसॉक्सियाना, तुर्की और अरेबिया के तीरंदाज शामिल किए थे। अफाकियों को महत्त्व दिए जाने से दक्खनियों में असंतोष फैल गया, जिसके परिणामस्वरूप समूहों में झगड़े हुए और अस्थिरता पैदा हो गई।
Subcribe on Youtube - IGNOU SERVICE
For PDF copy of Solved Assignment
WhatsApp Us - 9113311883(Paid)
0 Comments
Please do not enter any Spam link in the comment box