कन्नड् के लब्धप्रतिष्ठित कहानीकार आनन्द की इस कहानी में भारतीय सामाजिक व्यवस्था को उदारता, सहदयता और विवेकसम्मत तरीके से देखने का प्रयास हुआ है। यह: कहानी पूर्वदीप्ति (फ्लैशबेक) शैली में लिखी गई है। इस कहानी का नेरेटर स्वयं लेखक है। प्राचीन भारतीय शिला शिल्पों में नेरेटर “की गहरी दिलचस्पी है। उन्हीं का अध्ययन करने के लिए वह तत्कालीन (सन् 1931) मैसूर प्रांत की यात्रा पर निकला है। घूमते-घूमते वह नागवल्ली नामक एक गाँव में पहुँचता है। वहाँ वह गाँव के प्रभावशाली व्यक्ति (मुखिया जैसे) श्री करियप्पा के यहाँ ठहरता है। करियप्पा जिस उदार भाव से उसका स्वागत करते. हैं, वह उन्तके बड़प्पन के साथ. ही उस*भारतीय जीवन मूल्य का भी संकेतक है जिसमें अतिथि देवता होता है। लेखक नें। विस्तार से आतिथ्य का वर्णन 'किया है। इस संदर्भ में कहानी के इस अंश को देखा जा सकता है-“बरामंदे की बगल में ही एक कमरा था। चर के नौकर ने- उसका दरवाजा खोलकर सफाई करके चटाई बिछाकर एक दीपक लाकर रख दिया। गाड़ीवान ने मेरा सारा,सामान उस कमरे में रख दिया। उसका पैसा चुकता करके मैंने उसे भेज दिया।' करियप्पा बोले, (अब आप कपड़े बदल सकते हैं।' मैंने कमरे में जाकर कपड़े उतारे और धोती कमीज बदलकर आ गया। इतने में किसी ने भीतर से गर्म पानी लाकर धर दिया। मैंने हाथ-पाँव और मुँह धोया। आधे घंटे में भोजन भी निबट गया। बाद में बरामदे में पान-सुपारी चबाते हुए बैठे रहे। मैंने उन्हें अपनी यात्रा के बारे में विस्तार से बताया। मेरा उनके घर में ठहरना उनके लिए बड़ी प्रसन्नता कौ बात थी। यह उनकी हर बात से झलक रहा था। बातों-ही-बातों में उनका भी परिचय मिला। खाता-पीता घर था। चार सौ रुपए लगान देते थे। घर भी खूब बड़ा-सा बना रखा था। ऐसा प्रतीत होता है कि वह गाँव का सबसे विशाल घर था। उनकी निःस्वार्थ, निश्छल नम्नता ने मुझ पर व्यापक असर डाला। उनमें यह गुण जन्मजात आया होगा, इस बात का मुझे एहसास हुआ। मुझे महसूस हुआ कि उनके घर में मेरा व्यापक स्वागत-सत्कार होगा। यह कहानी का प्रथम हिस्सा है। कहानी की वह प्राण वस्तु जिसके लिए इसको लिखा गया है, वह दूसरे खंड में है।
'नेरेटर' अर्थात् लेखक सद्गृहस्थ है। पत्र के माध्यम से लेखक अर्धागिनी लक्ष्मी को अपनी यात्रा के समाचार से अवगत कराता रहता है। नागवल्ली गाँव में थोड़े आराम और इत्मीनान के बाद वह एक विस्तृत पत्र अपनी पत्नी को लिखता है। यह कहानी उस कालखंड की कथा कहती है जब यात्राएँ बैलगाड़ी से की जाती थीं और आज की तरह ई-मेल, एस.एम. एस. या फोन और मोबाइल फोन की सुविधा नहीं थी। यह अकारण नहीं है कि पच्चीस-तीस वर्ष पहले की कविताओं और गीतों में भी चिट्ठियों का ही संदर्भ आता है। लोकगीतों में तो कबूतर, तोते और चिट्ठियों का ही संदर्भ है। इस कहानी का नेरेटर पत्र लिखकर उसे ठीक से लिफाफे में बंद कर उसकी गोपनीयता को सुरक्षित करता है। जाहिर है,
इसके बाद पत्र को लेटर बॉक्स में डालना है। लेखक नहीं जानता कि लेटर बॉक्स कहाँ है। वह अपने कमरे से बाहर निकलकर देखता है तो एक लड़की बैठी हुई दिखती है। उस लड़की को बेटी संबोधित कर वह उससे लेटर बॉक्स का पता पूछता है। लड़की आग्रह करके वह पत्र लेटर बॉक्स में डालने के लिए ले लेती है। संवाद के इसी क्रम में लड़की का संक्षिप्त नाम सामने आता है-चेननी। चेन्नी अर्थात् चेन्नम्मा। कहानी की कथावस्तु इसी चेन्नी के चारों ओर चक्कर काटती रहती है। पाठकों की जिज्ञासा शांत करने के लिए लेखक ने चेनन््नी का परिचय अनुभवजनित साक्ष्यों के आधार पर अक्षरश: इन शब्दों में किया है-पहला परिचय : “वह जरा मुस्कुराई। गाँव की उस बच्ची की विनयशीलता और सरलता देखकर मुझे बड़ा संतोष हुआ।'
दूसरा परिचय : चेन्नी निष्कपट और निश्छल प्रवृत्ति की थी। इसी कारण लेखक अपना मत व्यक्त करते हुए लिखते हैं कि “चेन्नम्मा जन्म से ही मुस्कुराहट लेकर आई होगी। मैंने जब भी देखा उसके सरल मुख पर मुस्कान ही दिखाई दी। वह मृदुभाव से इधर-उधर घूमती कोपलों में घुसकर फूलों के गुच्छों से होती हुई पंरिमल से परिपूर्ण ठंडी बयार के समान हृदय में ननन््हीं तरंगे उठाने वाली सरल मुस्कान थी। आँधी में -फँस. जाए तो केवल धूप मिलती है, आँख और मुँह में मिट्टी भर उठती है। उसमें सौरभ नहीं रहता। गाँव की उस लड़की कौ हँसी! ओह! वह तो मल्लिका के फूल के समान थी। मल्लिका के फूल की शुभ्रता का क्या कहना है? कैसा परिमल?”
सौंदर्य, सरलता और सहदयता जैसे दुर्लभ गुणों के सम्मिलन से चेन्नी अर्थात् चेन््नम्मा का समग्र व्यक्तित्व निर्मित हुआ है। लेकिन इसके ठीक बाद चेननी के जीवन की उस विडंबना का पता चलता*है;*जो अंधविश्वास की कोख से पैदा हुआ है। रात के अंधेरे में चेन्नी नेरेटर के कमरे में आती है तो नेरेटर को पता चलता हैं'कि वह “बसवी' है। इस प्रसंग को समझने के लिए कहानी का निम्न अंशोइस प्रेकार है-
“अरे मालिक, ऐसा क्यों कहते हैं?-मेरी शादी नहीं हुई है, मैं बसवी हूँ:
“क्या? क्या? क्या कहां?!
“मुझे बसवी बनाकर छोड़ दिया गया है मेरे मालिक।'
“बसवी, बसवी! इसके माने?!
“भगवान के नाम पर छोड़ दिया है।'
मैंने पूछा, 'भगवान के नाम पर छोड़ दिया है? किसने?!
“माता-पिता ने'
“क्यों छोड़ दिया?'
“मालिक, आज से आठ वर्ष पहले मैं बहुत बीमार पड़ी थी। तब मेरे माता-पिता ने मरडी भगवान के नाम मन्नत माँगी कि यदि मैं ठीक हो जाऊँ तो उस भगवान के नाम पर मुझे बसवी छोड़ देंगे। मैं ठीक हो गई, मालिक।'
“तो तुम शादी नहीं करोगी?'
“नहीं, मालिक।'
“यूँ ही रहोगी।'
“हाँ, मालिक।'
कहानी के इसी मोड़ पर पाठकों का विडंबना से साक्षात्कार होता है। बीमार बेटी की जीवन रक्षा के लिए माता-पिता अतिशय चिंतित हैं। उनकी एक ही अभिलाषा है कि बेटी का जीवन बच जाए लेकिन इसका दूसरा पक्ष अंधेरे से भरा है। बेटी बच जाएगी तो उसे “बसवी' बना देंगे। “बसवी' देवदासी से मिलती-जुलती एक प्रथा थी। लेखक रेखांकित करना चाहता है कि क्या ईश्वर से उसका जीवन इसलिए माँगा था कि बसवी बनाकर रोज-रोज मरनें के लिए छोड़ देंगे। वह भी ईश्वर के नाम पर। यह तो ईश्वर और धर्म को कटघरे में खड़ा करना है। ईश्वर परम औदात्य का प्रतीक है फिर वह एक बच्ची के लिए “बसवी' जैसे जीवन की सृष्टि क्यों करेगा! यह विशुद्ध अंधविश्वास का मामला है। लेखक आधी आबादी के पक्ष में इस कुरीति पर प्रहार करता है। कथा के क्रम में वह कई बार अपनी पत्ली-कों याद करता है। स्मरण बार-बार दिखाई देता है। यह लेखक के भीतर अपनी पली के प्रेम का प्रकटीकरंण तो है ही, स्त्री मात्र के प्रति उसके सम्मान के भाव का भी प्रकटीकरण है। लेखक इस बात से आहत है कि यह कौन-सी प्रथा है जो एक भावनाओं और सपनों से भरी बच्ची को बसवी बनाकर लोगों की “सेवा” के लिए प्रस्तुत करने में गरिमा और संतोष का अनुभव करती है। जाहिर है, यह ईश्वर को कलंकित करने की कोशिश है।
लेखक के साथ चेन्नी की लंबी बातचीत होती है।-बातचीत के कतिपय अंशों को उद्धृत-करने से कहानी का अर्थ स्पष्ट होता है। यहाँ लेखक अपने परंपरागत अनुभव के आधार पर चेन्नी को समझाना च्चाहता हैं। उसके भीतर धर्म और ईश्वर का जो गलत भय पैदा किया गया है, उसे निकालना चाहता है। वह कहता 'है-'तो सुनो, स्त्री के लिए मान ही प्राण है। मान खो देने वाली स्त्री का जीवन बहुत खराब होता है। तुम लोगों के -पास जो कुछ भी है वह मान ही है। तुम लोगों को उसे ऐसे ही नहीं बेचना चाहिए। ज्ञानियों का कहना है कि मानहीन स्त्री>के लिए नरक में भी स्थान नहीं है।'
चेन्नम्मा या चेन्नी:लेखक के कथन*से पूर्णतया सहमत नहीं होती।ध्यही.कारण है कि वह लेखक का प्रतिवाद करती है। चेन्नी के प्रतिवाद में उसके अंदर भर दी गई सीख का असर है।वह कहती है-'मालिक, तो शादी वाली स्त्रियों के लिए, जिनके पति हैं, आपकी बात ठीक है, वे हमारी जैसी हो जाएँ तो उन्हें जाति से बाहर कर दिया जाता है। हमारे लिए तो आप जैसे कुलीनों कीं सेवा ही .......।' लेखक फिर समझाता है-'अरे चेन्नम्मा! तुम समझती नहीं। सुनो भगवान के नाम पर स्त्रियाँ यदि मान खो दें तो कया वे पसंद करेंगे? भगवान की मन्नत की है तो भगवान की सेवा करो, कौन मना करता है। वह छोड़कर डुकर इस प्रकार मान नहीं गँवाना चाहिए?!
चेन्नम्मा इसका भी उत्तर देती है-“मालिक आप जैसे कुलीन ही हमारे लिए भगवान हैं। आपकी सेवा ही हमारा पुण्य है।'
तदोपरांत “बसवी' प्रथा पर लेखक के विचार का भावात्मक चिंतन के रूप में कहानी में प्रस्तुतीकरण हुआ है। कहानी की निम्न पंक्तियाँ दृष्टव्य हैं-“उसकी बातें सुनकर मेरे हृदय में यह उद्गार निकला, 'हाय भगवान! तुम्हारे नाम पर तुम्हें खुश करने का कितना अन्याय और पाप चल रहा है।' कुछ देर कुछ बोला नहीं। कुछ देर सोचने में लगा रहा। यह इन लोगों की कितनी बड़ी मूढ़ता है। संसार में ऐसी घृणित परिपाटी भी है। भगवान के नाम पर छोड़ देना तो सुना है। वह तो अपनी-अपनी भक्ति है। पर यह काम? इसी प्रकार लोग कैसे हीन कार्य कर रहे हैं? इनका कया बनेगा? यह लड़की सचमुच गाँव की एकदम अनजान भोली युवती है। स्त्रियों का लक्षण ही कुछ और होता है। यह अपनी जनता के हीन रिवाज की शिकार भोली-भाली लड़की है। इसका दृढ़ विश्वास है कि जो यह कह रही है, उससे भगवान की मन्नत पूरी होगी। हाय भगवान! माता-पिता ही अपनी बेटी को पाप के गर्त में धकेलते हैं। उनका क्या होगा? इसका क्या होगा? उन्होंने यह समझा होगा कि उनके मन्नत मानने से बेटी मरने से बच गई। परंतु प्रत्येक दिन वह जो काम करती है, उससे उसके जीवन का स्त्रीत्व ही दिन-दिन मर रहा है। यह उन्हें कैसे समझाए, जब यह बच्ची थी तब एक क्षण में मर जाने के बदले अब हर दिन, हर क्षण, तिल-तिल करके मर रही है, क्या वे यह बात समझते हैं? नहीं, यही तो आश्चर्य की बात है, उसका पूर्ण विश्वास है कि वह जो कर रही है, ठीक है। वह कार्य भगवान को प्रिय है। उसके बचाए जीवन को इस प्रकार उपयोग में लाए तो उसकी प्रिय सेवा होगी? विवाहित स्त्री जिस कार्य को बुरा मानती है, वह अपने उसी कार्य को जीवन का धर्म मानकर चल रही है। इसमें उसके माता-पिता सहायक हैं। बेचारे, वे भी भला कया करें? वे भी जाति के रिवाजों की बलि हो गए हैं।”
प्रस्तुत कहानी इसी तथ्य को वर्णित करने हेतु रची गई है। वाद-विवाद के उपरांत चेन््नी लेखक कीं बातों: का मर्म समझ जाती है। उसे इस बात का बोध हो जाता है कि उससे जो कुछ कराया जा रहा है, उससे भगवान कभी प्रसन्न नहीं होंगे। यह भगवान की इच्छा नहीं है। भगवान अपनी संतान से कोई ऐसा कर्म क्यों कराएँगे जिससे -मान सम्मान और आत्मा को क्षति पहुँचती हो। लेखक रोते हुए कहता है-'चेन्नम्मा, भगवान तुम्हारी रक्षा करें।'
कहानी का समापन इस मायने में सुखांत माना जा सकता है कि चेन््नी का सत्य से.'साक्षात्कार' हो जाता है लेकिन अपनी पूर्णता में यह कहानी दुख के आवरण में लिपटी हुईं है। सुबह में नेरेटर को पता चलता है कि कुएँ में चेन्नम्मा की लाश मिली है। यह खबर सुनकर वह बेहोश हो जाता है। लोग पानी छिड़ककर उसे होश में लाते हैं। कह सकते हैं कि इस घटना से लेखक को काठ मार गया है। उसकी समझ में नहीं आ रहा है कि यह क्या हो गया है! रात में जब वह लौटी थी तब लेखक को लगा था कि उसने एक बच्ची को नरकौय जीवन से उबार लिया है लेकिन यहाँ तो पक्षी ने पिंजड़ा ही छोड़ दिया और इस तरह की घटनाओं में जैसा होता।है, वैसा ही चेन्नम्मा के साथ भी हुआ। चेन्नम्मा ने पुलिस रिकॉर्ड के अनुसार आत्महत्या की है। बीस वर्ष की उम्र में जब/सपने आकार लेना शुरू करते हैं, चेन्नम्मा मृत्यु की गोद में सो गई। वह एक घृणित प्रथा की बलि चढ़ गई।तथ्यात्मक रूप से उसने आत्महत्या.की लेकिन दरअसल वह एक हत्या थी। उसके माता-पिता भी घृणित प्रथा के निरीह शिकार थे। चेन्नम्मा यदि जीवित रहते हुए बसवी रहने से इंकार कर देती तो अंधविश्वास में डूबा समाज उसे जीने नहीं देता। मृत्यु उसकी चाहत नहीं, विवशंत्रा है। लेखक आत्माग्लानि के महासागर में डूबते-उतरते हुए सोचता है कि अगर उसने चेन्नी को सही/गलत॑ (के-बारें'में न बताया होता, तो संभवत: वह मौत को गले न लगाती। स्पष्ट है कि यह लेखक के अंतर्मन से निकली मानकताहकी आवाज है। कहानी के शीर्षक से इसी आत्मग्लानि का पता चलता है। कहानी:की आखिरी पंक्ति इस दृष्टि से विशेषे है कि इस कहानी में वर्णित चेन्नी की त्रासद मृत्यु पर लेखक की पत्नी लक्ष्मी'की कैसी प्रतिक्रिया रहती है अर्थात् एक स्त्री के दुख, बसवी की प्रथा और एक युवती की अकाल मृत्यु पर एक स्त्री की प्रतिक्रिया सर्वोपरि होगी। आशा की जाती है कि लक्ष्मी में वैसा ही विवेक और आदर्श होगा जैसा उसके पतिःयानी लेखक में है।
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