माया सभ्यता, जिसका काल संभवत: 500 ई.पू. से 000 ई.पू. के बीच माना जाता है, यह आधुनिक गुआटेमाला, बेलिजे, दक्षिण पूर्व मैक्सिको और होंडुरास तथा अल सेलवेडोर के पश्चिमी इलाकों में फैली हुई थी। यह कोई स्वीकृत इकाई के रूप में नहीं था, बल्कि बिखरे हुए गांवों एवं शहरों की सांस्कृतिक इकाई थी। हालांकि शहर और गांव आपस में जुड़े हुए जरूर थे, उसका बड़ा केन्द्रीय शहर राज्य के अधीन था। यहाँ एक समय में चार बड़े प्राथमिक केन्द्र थे, जिनका राजवंश क्रमश: टीकल, कलकमुल, कोपान और पालेंके था। माया बस्तियों की एक प्रमुख विशेषता यह थी कि लगभग सभी बस्तियों में शहर एवं उत्सव केन्द्र था। शहरों की बनावट इस प्रकार की थी कि उसके केन्द्र में उत्सव केन्द्र होता था, जिसके चारों ओर विशाल चौक होता था। उसके बाद शाही कर्मचारियों एवं पुरोहितों का घर होता था तथा सबसे अंत में आम जनता के घर होते थे। ऊपरी माया बस्तियों में सेनोट्स अर्थात् कुआं के भी प्रमाण मिले हैं, जिसका उपयोग रोजमर्रा की आवश्यकता के लिए होता था।
यहाँ की बस्तियों के स्थापत्य कौ विशेषता चूना-गारा और टोडा मेहराब का प्रयोग था। टोडा मेहराब में पत्थरों को एक के ऊपर एक इस प्रकार रखा जाता था कि मेहराबी छत का निर्माण हो जाता था। उसके लिए वजन और आकार के संतुलन का भी ध्यान रखा जाता था। यहाँ के भवनों का आकार-प्रकार काफी भव्य होता था। साथ ही उसमें नक्काशी का भी प्रयोग किया जाता था। यहाँ के विशाल भवनों में पिरामिड, बॉलकोर्ट, विशाल द्वार, स्नानागार आदि महत्त्वपूर्ण थे। युआक्साकटन उस सभ्यता का एक पुराना शहर था, उसमें माया सभ्यता की सारी विशेषताएँ मौजूद थीं। यहाँ की प्रमुख विशेषता थी यहाँ का प्रमुख मंदिर पिरामिड। उसमें चौड़ी सीढ़ियाँ बनी होती थीं, जिन्हें गचकारी नकाब से सजाया गया था। यहाँ तीन मंदिरों का एक समूह भी प्राप्त हुआ है, जिसमें चौड़ी सीढियाँ तथा अलंकृत छत के शिखर एक-दूसरे के सामने बने हुए हैं। धीरे-धीरे तकनीक के विकास के साथ मंदिर में कई प्रकार की इमारतें बनने लगीं। पहली शताब्दी ई. में उत्तरी एकोपोलिस पर तीन बड़े तथा दो छोटे चबूतरे बनाए गए थे। उनकी सीढ़ियों को भी गचकारी रंग से अलंकृत किया गया था। गचकारी मुखौटों पर बने देवताओं के चित्र को शासक वर्ग संभवत: अपना देवता मानते थे तथा देवी-देवता एवं शासक के बीच एक खास संबंध स्थापित हो गया था। हालांकि उस सभ्यता में भव्य इमारतों के अलावा सर्वसाधारण के रहने के लिए साधारण और देशी घरों के अवशेष भी मिलते हैं। यहाँ के निवासियों ने चौड़ी सड़कें भी बनाई थीं, जिन्हें स्केब कहा जाता था। ये सड़कें शहरों को एक-दूसरे से जोड्ती थीं। उनका निर्माण दलदलों एवं जंगलों में भी हुआ था। उनके निर्माण का उद्देश्य था कि व्यापारियों को आने-जाने में सुविधा हो तथा प्रशासनिक कार्यों को संपन्न करने में भी मदद मिलती थी। ये सड़कें न केवल अंदरूनी इलाकों को जोड़ती थीं, बल्कि बड़े-बड़े शहरों को भी जोड़ती थीं। मायावासियों द्वारा समुद्री मार्ग का भी उपयोग किया जाता था। कोलम्बस ने उनकी नौकाओं को देखा भी था।
माया शहर के मुखिया “असली पुरुष' होते थे। यह पद न तो चयनित था और न ही मनोनीत, बल्कि यह आनुवंशिक पद था। सरदार की मृत्यु के बाद उसका पुत्र उसका अधिकारी होता था। बड़े पुत्र के अयोग्य होने की स्थिति में छोटे पुत्र को उत्तराधिकारी बनाया जाता था। ये असली पुरुष उन शहर-राज्यों के अलौकिक तथा लौकिक प्रतिनिधि हुआ करते थे। उनके अधीन स्थानीय सरदार होते थे, जिन्हें अहाउ या बाताबोब के नाम से जाना जाता था। बाताबोब पर शहर की देख-रेख की जिम्मेदारी होती थी। शहर में नगर परिषद भी होती थी, जिसके अधिकारी बाताबोब के मातहत होते थे, परंतु ये बाताबोब के कार्य पर रोक लगा सकते थे। बाताबोब झगड़ा भी निपटाया करते थे। पुजारी लोग जो सलाह देते थे उनको पालन करवाने का कार्य भी बाताबोव का ही था। इस प्रकार बाताबोब प्रांत का मुखिया होता था, पर प्रांत का नेतृत्व युद्धनायक के हाथों में होता था, जिन्हें नाकोम कहा जाता था। आवश्यकता पड़ने पर बाताबोब भी सेना का नेतृत्व करते थे। ये आमतौर पर पालकी पर घूमा करते थे। माया सभ्यता में नौकरशाही के भी प्रमाण मिलते हैं, जो कि काफी सख्त थी। उसमें समाज के प्रभुत्वशाली लोग शामिल थे। सामान्यजन या किसान अन्य वर्ग के लोगों की सेवा किया करते थे। ये भवनों के निर्माण में भी सहयोग करते थे।
मायावासी कई प्रकार की फसलों को उगाया करते थे। फलों, रंग, इत्र बनाने वाले पौधों आदि की खेती अलग-अलग ढंग से की जाती थी। मक्का यहाँ की प्रमुख फसल थी। इसके अलावा लोग फलियां, कुम्हड़ा, लौकी, मीठा कसावा आदि भी उपजाया करते थे। भूमि और नमक के भंडार पर सामुदायिक मिल्कियत होती थी। हालांकि समुदाय के सदस्यों को खेती करने तथा फसल उगाने के लिए जमीन आबंटित की जाती थी। उस क्षेत्र में पानी की समस्या थी, हालांकि वर्षा खूब होती थी। परंतु वर्षा का पानी जमीन पर टिक नहीं पाता था या फिर जमीन के भीतर चला जाता था। उनके पास कुशल कारीगर थे, जिन्होंने प्लाजा के निकट पानी सोखने वाले पूरे चूना-पत्थर, तेग को बंद करके विशाल जलाशय बनाया था। चाक उनका वर्षा का देवता था, जबकि यूम कॉक्स फसल के देवता थे। खेती के आरंभ के पहले इन देवताओं की पूजा भी की जाती थी। ये आमतौर से पौधों को रोपने के लिए शुभ दिन का इंतजार करते थे। उनके समाज में अहकिन नाम का पुजारी था, जो आमतौर से शिक्षक की भूमिका निभाता था। ये पुजारी लोगों को नक्काशीदार लिपि पढ़ना तथा पंचांग की व्याख्या करना भी सिखाते थे। यहाँ के निवासी संकट के दिनों के लिए अनाज जमा करके भी रखते थे। परंतु निचले तबके के लोगों को राजस्व एवं नजराना भी देना पड़ता था। किसान उपज का एक हिस्सा राजस्व के रूप में जमा करता था। साथ ही सरदार एवं पुजारियों के खेतों पर उन्हें बेगार का काम भी करना पड़ता था। मार्गों आदि के निर्माण में भी उन्हें मुफ्त श्रम देना पड़ता था, जिसे कौरवी कहा जाता था।
सार्वजनिक इमारतों के निर्माण के लिए लोगों से मुफ्त श्रम लिया जाता था। आम जनता के द्वारा दिये गए राजस्व पर सरदार, पुजारी, सैनिक एवं असैनिक अधिकारी मौज किया करते थे। उस सभ्यता में बड़ी संख्या में कुशल कारीगर भी उपलब्ध थे, जो मंदिरों एवं भवनों को सजाया करते थे। युद्ध के समय बंदी बनाये गए सैनिकों को दास बना लिया जाता था। उनसे तरह-तरह के काम लिये जाते थे। कभी-कभी ईश्वर को प्रसन्न करने के लिए उनकी बलि भी चढ़ाई जाती थी। खेतों में कार्य करने के अलावा बुनाई भी मायावासियों का एक प्रमुख रोजगार था। पुरुष और महिला दोनों के द्वारा यह कार्य किया जाता था। विनिमय एवं व्यापार भी नियमित रूप से होता था। पंचांग और चित्रलिपि माया सभ्यता की प्रमुख उपलब्धि है। मायावासियों के पास तीन तरह के कैलेण्डर थे। हाब में वर्ष 8 महीनों में विभाजित था, जबकि जोलकिन कैलेण्डर में 260 दिन हुआ करते थे। तीसरे कैलेण्डर में लम्बी अवधि की गणना की जाती थी। चित्रित लिपि के अभिलेखों से भी कैलेण्डर होने की पुष्टि होती है।
ऐसा प्रतीत होता है कि 9वीं शताब्दी में उस सभ्यता में इमारतें बननी बंद हो गई थीं, जो कि उसके पतन को दर्शाता है। विद्वानों ने उस सभ्यता के पतन का कारण अनुमान के आधार पर मलेरिया या पीले बुखार जैसी बीमारी को माना है। कुछ का यह भी मानना है कि उसका पतन सूखा या भूकंप जैसी प्राकृतिक आपदा के कारण हुआ होगा, जबकि कुछ उसके पतन का कारण किसान विद्रोह को भी मानते हैं। जैसे प्रतीत होता है कि जनसंख्या में वृद्धि के कारण संसाधनों पर दबाव बढ़ने लगा। हालांकि उस सभ्यता से प्राप्त कंकालों से ज्ञात होता है कि उनकी मौत किसी बीमारी के कारण हुई होगी। ऐसा माना जाता है कि जनसंख्या का दबाव बढ़ने के कारण लोगों द्वारा बार-बार खेतों को जोता जाता था तथा भूमि के विस्तार के लिए व्यापक तौर पर जंगलों को भी काटा गया होगा, जिसके परिणामस्वरूप पारिस्थितिक संतुलन बिगड़ा होगा। यही परिस्थिति असंतुलन आपदा में परिणत हुई होगी तथा सभ्यता का विनाश हो गया होगा।
हालांकि पतन का एक कारण कृषक विद्रोह भी माना जाता है। बोनामपाक से प्राप्त भित्तिचित्रों में कृषक विद्रोहियों को बंदी के रूप में चित्रित किया गया है। हालांकि विद्वानों में उस चित्र को लेकर मतभेद भी हैं। कुछ का मानना है कि यह चित्र कुलीनों का भी हो सकता है। हालांकि कुलीनों की संख्या उतनी नहीं थी कि उनके खत्म होने से पूरे सभ्यता का अंत हो जाए। हालांकि कृषकों ने जनसांख्यिकी को परिवर्तित करने का कोई प्रयास नहीं किया होगा। माया सभ्यता का पतन नि:संदेह एक जटिल प्रक्रिया है। पश्चिम के व्यापारिक मार्गों पर विभिन्न बस्तियों द्वारा नियंत्रण स्थापित करने के प्रयास में अक्सर युद्ध हुआ करते थे। हालांकि अंदरूनी विद्रोह की सम्भावना से भी इन्कार नहीं किया जा सकता, क्योंकि शासकों द्वारा किसान वर्ग का शोषण होता था और समय के साथ उन किसानों ने जनता के नाम या शासक वर्ग के शोषण से अपने आपको मुक्त करने के प्रयास के तहत विद्रोह किया होगा। हालांकि माया सभ्यता की विभिन्न बस्तियों के पतन के अलग-अलग कारण हो सकते हैं।
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