एक पागल “तो हिंदुस्तान, पाकिस्तान और पाकिस्तान के चक्कर में कुछ ऐसा गिरफ्तार हुआ कि और ज़्यादा पागल हो गया। झाड़ू देते-देते वह एक दिन दरख्त पर चढ़ गया और टहनी पर बैठकर दो घंटे निरंतर तकरीर करता रहा, जो पाकिस्तान और हिंदुस्तान के नाजुक मसले पर थीं, सिपाहियों ने जब उसे नीचे उतरने को कहा तो वह और ऊपर चढ़ गया। जब उसे डराया-धमकाया गया तो उसने कहा: “मैं न हिंदुस्तान में रहना चाहता हूँ न पाकिस्तान में.....मैं इस दरख्त पर रहूँगा.... --।” बड़ी देर के बाद जब उसका दौरा सर्द पड़ा तो वह नीचे उत्तरा और अपने हिंदू-सिख दोस्तों से गले मिल-मिलाकर रोने लगा। इस ख्याल से उसका दिल मर आया था कि वह उसे छोड़कर हिंदुस्तान चले जाएंगे......।
उत्तर- प्रसंग : प्रस्तुत गद्यांश सहादत हसन मंटो की कहानी “टोबा टेक सिंह” से उद्धृत है। यह कहानी भारत-पाक के विभाजन से जुड़ी विभीषिकाओं का हृदयस्पर्शी चित्रण करती है। बँटवारे के बाद दोनों देशों की सरकारों को ख्याल आता है कि साधारण कैदियों की तरह पागलों की आबादी का भी बाँटवारा होना चाहिए जिनके अभिभावक एक से दूसरे देश में चले गए हैं। इस गद्यांश में उन्हीं में से एक पागल के माध्यम से साँझी संस्कृति और मानवीय संवेदना के एहसास की तीव्र भावना को चित्रित किया गया है।
व्याख्या : इस गद्यांश में बताया गया है कि पागलों में से एक व्यक्ति इन पागलों के बाँटवारें कौ बात सुनकर और अधिक पागल हो जाता है और झाड़ू लगाने का काम करते-करते वह इसी पागलपन में एक पेड़ पर चढ़ जाता है। वहाँ एक टहनी पर बैठकर वह भारत और पाकिस्तान जैसे नाजुक मसले पर भाषण देना शुरू कर देता है। जब पुलिस के सिपाहियों ने उसे पेड़ से नीचे उतरने को कहा तो तो वह उनकी बात पर अमल न करता हुआ पेड़ के और ऊपर वाले हिस्से में चला जाता है। जब उसे बलपूर्वक डरा धमकाकर नीचे उतरने को कहा गया तो उसने जो इच्छा व्यक्त की वह आश्चर्यवकित करने वाली थी। उसने कहा कि मैं न तो पाकिस्तान में रहना चाहता हूँ और न ही हिन्दुस्तान में। मैं तो बस इस पेड़ पर ही रहना चाहता हूँ। जब उसका पागलपन का दौरा कुछ कम होता है तो वह नीचे तो उतर आता है किंतु अपने हिंदू सिख साथियों से गले मिलकर रोने लगता है क्योंकि उसको ख्याल आता है कि पागलों के इस बाँटवारे के चक्कर में उसके कुछः/झ्ाथी उसे छोड़कर दूसरे देश हिंदुस्तान चले जाएँगे। इस साथ छूटने की बात सोचकर उसका दिल भर आता है।
विशेष : (i) इन पंक्तियों में एक पागल की असंतुलित मन:स्थिति के माध्यम से लेखक ने बँटवारे से जुड़ी मानवीय संवेदनाओं की टीस का सजीव वर्णन किया है।
(ii) गद्यांश की भाषा सारगर्भित एवं विषय के अनुकूल है।
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