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पेरियार और दक्षिण मारत में आत्म-सम्मान आंदोलन

 आमतौर पर पेरियार नाम से विख्यात ई. वी. रामास्वामी नायकर का जन्म 1879 में इरोड में हुआ था। उन्होंने कम उम्र में ही जाति पवित्रता के नियमों का विरोध किया और वे अंतर्जातीय भोजों में भाग लेते थभ्रे। गांधीवादी होने के नाते केरल में वेकोम में हुए सत्याग्रह के वे नायक बने। उन्होंने हरिजनों का जोरों से साथ दिया। 1922 तक जिस समय वे कांग्रेस के सदस्य थे, पेरियार ने पुराण विद्या त्याग दी थी । उन्हें यह विश्वास था कि यह पुराण विद्या एक भ्रष्ट प्रभाव का प्रतिनिधित्व करता था। उन्होंने यहाँ तक कह दिया कि मनु धर्मशास्त्र और रामायण को जला दिया जाएँ 1925 में कुडी अशयु नामक अखबार चलाकर वे एक अतिसुधारवादी समाज सुधारक बन गए। वास्तव में पेरियार के मद्वास प्रांतीय कांग्रेस समिति के सचिव पद से इस्तीफा दे देने का कारण कांग्रेस द्वारा चलाए गए एक गुरुकुल (स्कूल) में ब्राह्मणों और गैर-ब्राह्मणों के खाने की व्यवस्था अलग-अलग होना था। 1925 में जब उन्होंने कांग्रेस छोड़ी तब उन्होंने घोषित किया “अब से मेरा काम कांग्रेस को भंग करना है।” 1927 में वर्णाश्रम धर्म के मुद॒दे पर उन्होंने गांधी जी से भी नाता तोड़ लिया था। सोवियत संघ से लौटने के बाद पेरियार ने अपनी द्रविड़ विचारधारा में मार्क्सताद का कुछ अंश भी जोड़ दिया था। मई 1933 में कुडी अरसु नामक अपने अखबार में उन्होंने लिखा कि “आत्म-सम्मान ही आंदोलन का सही मार्ग है। पूँजीपतियों और धर्म की क्रूरताओं को खत्म करना ही अपनी समस्याओं को सुलझाने का एक मात्र रास्ता है।”

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